लॉकडाउन प्रेम रावत जी के साथ – Day 10 (30 मार्च, 2020) Hindi – Audio

Mar 31, 2020

प्रेम रावत जी

सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

मैं आज जो आपसे कहना चाहता हूँ, आज के दिन। वैसे मैं लोगों के प्रश्न पढ़ रहा था। प्रश्न मेरे पास हैं, जो आप लोगों ने भेजें हैं। परन्तु मैं अगले शनिवार, इतवार को उनका जवाब दूंगा। तबतक यह प्रोग्राम ऐसे ही चलता रहेगा। जब मैंने वो प्रश्न पढ़े, तो मेरे को एक बात याद आयी, क्योंकि जब मैं विदेश आया था, 14 साल का था मैं तब, 13 साल का था मैं तब, जब मैं आया था विदेश। एक हमारा रूटीन था कि हर रोज जब — पहले तो प्रोग्राम हो गया, फिर उस प्रोग्राम के बाद हर रोज लोगों को हम बताते थे कि हम कहाँ ठहरे हुए हैं और लोग सवेरे-सवेरे आकर के कमरे में, लिविंग रूम में या कहीं भी जहां बड़ा कमरा है, वहां आकर के सब लोग इकट्ठा होते थे और घंटे-दो घंटे के लिए प्रश्न-उत्तर होते थे हर रोज। वह समय, बड़ा अच्छा समय था, मजेदार समय था। लोग प्रश्न पूछते थे और तभी से मेरे को एक बात अच्छी तरीके से मालूम है कि सभी लोग अपने मन में धारणाएं बनाते हैं और उसके हिसाब से चलते हैं।

तो मतलब एक छोटी-सी कहानी यह है कि एक आदमी कहीं जा रहा था। चलते-चलते उसने देखा कि एक कांच का टुकड़ा रोड पर पड़ा हुआ है। वह आदमी अच्छा आदंमी था, दयालु था। उसने सोचा कि यह कांच का जो टुकड़ा है, इस पर अगर किसी का पैर लगेगा तो उसको हानि पहुंचेगी तो, उसने उस कांच के टुकड़े को उठाकर फेंक दिया, अलग फेंक दिया, दूर फेंक दिया। वह चलता रहा। थोड़ी देर के बाद एक ऐसा आदमी आया, जो हीरे का बिज़नेस करता था। उसका व्यापार हीरे बेचने और खरीदने का था। तो चलते-चलते उसकी आँख — जो पहले हीरा फेंका हुआ था उस तरफ गयी। तो वह अपनी किस्मत को क्या कहे ? इतना खुश हुआ वह, इतना खुश हुआ वह, इतना खुश हुआ कि उसने वह — वहां गया और उस हीरे के टुकड़े को उठाया और अपनी किस्मत के बारे में सोचने लगा कि मैं कितना किस्मत वाला हूँ कि मेरे को इतना बड़ा हीरा रोड के किनारे मिला। उसने उस हीरे को अपनी जेब में रखा और बहुत खुश होकर के आगे बढ़ता रहा।

अब देखिये, इस कहानी में क्या है ? एक ने देखा और उसको समझा कि वह कांच का टुकड़ा है और किसी को उससे हानि पहुंचेगी। ठीक है, उसको मालूम नहीं था। उसने उस हीरे को समझा कि वह कांच का टुकड़ा है। परंतु जिसको मालूम है उसके लिए वह कांच का टुकड़ा नहीं था। उसके लिए वह हीरा था।

बात यह है कि अगर एक दृष्टिकोण से देखें तो यह बात है कि वह जो टुकड़ा, कांच का टुकड़ा था, एक के लिए और एक लिए हीरा था। तो जिसने सोचा कि वह कांच का टुकड़ा है, उसने उसको फेंक दिया ताकि किसी को लगे ना। और जिसने उसको हीरा समझा, उसने भी वही किया। उसको वहां रखा नहीं, उसको अपनी जेब में डाल लिया। तो हानि तो किसी को पहुंचेगी नहीं। पर एक की किस्मत खुल गयी और एक ने अपने हाथ में जो आया हुआ हीरा था, उसको भी फेंक दिया। अब यह बात जरूर है कि फेंका अच्छे कारण से, पर फेंक दिया। क्योंकि उसको परख नहीं थी कि वह क्या फेंक रहा है!

लोग धारणाएं बनाते हैं, यह ऐसा है, यह ऐसा है, यह ऐसा है, यह ऐसा है। और उन धारणाओं पर चलते हैं। तो जब मैं पहली बार 1970 में आया था विदेश, तब से मेरे को यह बात याद है कि जितने भी लोग प्रश्न पूछते थे, यह इन धारणाओं के ऊपर आधारित थे, जैसी भी लोगों की धारणाएं थीं। और इन धारणाओं के कारण हम असली चीज क्या है उसको समझ नहीं पाते हैं। क्योंकि इन चीजों की परख होना कि क्या, क्या है — क्रोध क्या है; कामना क्या है और स्पष्टता क्या है; दयालुता क्या है ? इन चीजों की हमको अगर परख नहीं होगी तो हम इन चीजों को अपनी जिंदगी के अंदर, चाहे हम कितनी भी कोशिश करें अपना नहीं पाएंगे। और वही चीजों को अपनाएंगे, जिनके हम गुलाम बने हुए हैं।

जहाँ भी जाते हैं, गुस्सा साथ है। चीजें वैसी नहीं हो रही हैं, जैसी तुमने सोचा था होनी चाहिए। तुम्हारे प्लान के अनुकूल चीजें नहीं हो रही हैं। क्या होता है ? गुस्सा आता है। बच्चा माँ-बाप से प्यार करता है। माँ-बाप चाहते हैं कि वह अच्छा पढ़े-लिखे और आगे चलकर उसकी जो किस्मत है, उसकी जो जिंदगी है वह अच्छी हो। वह कमा सके, खा सके अच्छी तरीके से। यह तो माँ-बाप का दृष्टिकोण है और वह चाहते हैं कि उसका बच्चा खूब मेहनत करे। चाहे खुद मेहनत की, नहीं की — जब वो बच्चे थे, मेहनत की या नहीं की यह किसी को नहीं मालूम, उनको मालूम है। परंतु बच्चा अपना रिपोर्ट कार्ड लाये और रिपोर्ट कार्ड में लिखा है फेल, तो माँ-बाप नाराज होते है, दुःखी होते हैं।

क्या यह संभव है कि हमारे दुःख का कारण ये जो हमारी कल्पनाएं हैं, जो ये हमारी धारणाएं हमने जो बना रखी हैं, ये हैं, यही कारण है। क्योंकि जो कुछ हो रहा है इसको हम समझ नहीं पा रहे हैं। क्या हो रहा है ? जैसे मैंने पहले सुनाया यह दोहा —

नर तन भव वारिधि कहुं बेरो।

इस भव सागर से पार करने का यह साधन है। यह नहीं कहा है कि “ये करने का, वो करने का, यहां जाने का, वहां जाने का यह साधन है।” नहीं!

नर तन भव वारिधि कहुं बेरो।

सनमुख मरुत अनुग्रह मेरो।।

मेरी कृपा। अब कृपा के लिए, भगवान की कृपा। सबको चाहिए। मंदिर में जाते हैं, क्यों जाते हैं ? भगवान की कृपा चाहिए, भगवान की कृपा बनी रहे, कृपा बनी रहे, कृपा बनी रहे, कृपा बनी रहे, कृपा बनी रहे और कृपा है और जो है कृपा — जिसको भगवान कह रहे हैं कि यह मेरी कृपा है, उसको कोई समझने के लिए तैयार नहीं है। उलटी भाषा हो गयी। उलटी बात हो गयी कि जो कृपा है, जो स्पष्ट है। जो अंदर तुम्हारे आ रही है और जा रही है —

नर तन भव वारिधि कहुं बेरो।

सनमुख मरुत अनुग्रह मेरो।।

और इसको समझने के लिए कोई तैयार नहीं है। इसको अपनाने के लिए कोई तैयार नहीं है। बड़े-बड़े प्रश्न पूछते हैं। और यह मेरे को दोहा इसलिए पसंद है। क्योंकि इसमें बड़े साधारण रूप से यह बात स्पष्ट कर दी गयी है कि मेरी कृपा क्या है और यह तुम्हारा जीवन किसलिए है! इस भवसागर से पार होने के लिए है। इन दुःखों से पार होने के लिए है। और हम करते क्या हैं ? हम ऐसी-ऐसी चीजें करते हैं, जिससे कि हम इन दुःखों में फंसे रहते हैं। जो भी हम कर रहे हैं इस संसार के अंदर अगर वो — जो कृपा हम पर बनी हुई है उसको स्वीकार करने की बात है, तो बात अलग है। उसको समझने की बात है, वह बात अलग है। और इस शरीर के लिए कहा है कि —

बड़े भाग मानुष तन पावा।

सुर दुर्लभ सब ग्रन्थन्हि गावा।।

क्यों, क्यों है यह दुर्लभ ? वह इसलिए कि —

साधन धाम मोक्ष कर द्वारा।

यह मोक्ष का दरवाजा है। मोक्ष किस चीज से ? कोई समझता है जन्म-मरण से। मैं कहता हूँ सुख और दुःख जो इस दुनिया के हैं, इन दुःखों से अगर हमको मोक्ष मिल जाये, तो कितना सुन्दर यह जीवन हो जाएगा। तो यही बात समझने की है कि अगर हम उन, जो कल्पित धारणाएं हैं इनको हटाकर के सच्चाई जो है सामने, इसको अगर स्वीकार करें, तो इसमें जो आनंद मिलेगा वह अलग है, वह अलग है। और इस समय में, जो यह कोरोना वायरस की, कोविड-19 की महामारी है, बीमारी है, इस समय में, इन परिस्थितयों में यह और भी गंभीर बात है कि हम उस चीज को समझें कि —

सनमुख मरुत अनुग्रह मेरो।।

इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है।

इस चीज को समझने के लिए हमको यह बात समझनी पड़ेगी कि यह जो हम फोटो बनाकर के हर एक चीज की — “मेरी बीवी कैसी होनी चाहिए, मेरा पति कैसा होना चाहिए; मेरा बच्चा कैसा होना चाहिए; मेरा घर कैसा होना चाहिए; मेरी कार कैसी होनी चाहिए; मेरा गधा कैसा होना चाहिए; मेरी बिल्ली कैसी होनी चाहिए; मेरा कुत्ता कैसा होना चाहिए। हर एक चीज के लिए, हर एक चीज के लिए हमने एक तस्वीर यहाँ अपने दिमाग में खींच रखी है। हमारे दुःखों का कारण ही यह है। मूल में यही है — ऐसा होना चाहिए, ऐसा होना चाहिए, ऐसा होना चाहिए, ऐसा होना चाहिए।

अब लोग कहते हैं, “भगवान मैं हूँ और तू जैसा चाहता है वैसा ही होगा।” और जब कुछ नहीं होता है तब लोग कहते हैं, “अहं! अब क्या करूँ, अब क्या करूँ ?”

यह भगवान के ऊपर ब्लेम (blame) लगाने की, दोष लगाने की बात नहीं है।

सो परत्र दुख पावहीं, सिर धुन धुन पछताय।

कालहिं कर्महिं ईश्वरहिं, मिथ्या दोष लगाय।।

दोष लगाते हैं, हर एक — जब यह नहीं काम कर रही है, वो फोटो जो बनाई हुई है, वो फोटो क्यों नहीं सत्य हो रही है, उसका दोष सबको देते हैं।

कालहिं कर्महिं ईश्वरहिं, मिथ्या दोष लगाय।।

तो उसको हटाकर के अगर हम अपने जीवन में सत्य क्या है उसको देखें, जो आज का सत्य है उसको देखें। जो सत्य हमारे सामने आ रहा है, जा रहा है उसको देखें, इस स्वांस को देखें कि यह इस भवसागर, इन दुःखों से पार होने का यह साधन है। और दुःख कहाँ हैं ? दुःख भी मेरे अंदर है। और सुख कहाँ हैं ? सुख भी मेरे अंदर है। और बाहर परिस्थिति बदले या न बदले, मैं तो बदल सकता हूँ। बाहर परिस्थिति बदले या न बदले, मैं तो बदल सकता हूँ। और इन परिस्थितयों में, इस कोरोना वायरस की परिस्थितयों में, अगर आप यह बात समझने लगें कि आपकी खुशी इन परिस्थितियों के कारण खराब नहीं होनी चाहिए। आपकी जो परिस्थिति है, वह सुख में, आनंद में इन परिस्थितयों में भी होते हुए आप उस चीज का अनुभव कर सकते हैं। वह आपके अंदर है। अगर यह हो गया तो वाह-वाह है। फिर दुःख से डरने की बात नहीं है। किसी भी चीज से डरने की बात नहीं है। हां! सावधान रहने की बात अलग है। सावधान तो रहना चाहिए।

देखिये! हिंदुस्तान में जो कुछ भी हो रहा है, अभी अगर आंकड़ों को देखें, तो बहुत अच्छा हो रहा है। बहुत अच्छा तो तब होता, सबसे बढ़िया तो तब होता कि कुछ भी नहीं हो रहा होता, कोई भी नहीं मरता। परन्तु हिंदुस्तान की जो जनसंख्या है, वह सारे संसार में नंबर -2 है, नंबर दो है । पहली थी चीन की फिर है हिंदुस्तान की। और अमेरिका की जनसंख्या इतनी बड़ी नहीं है जितनी हिंदुस्तान की है, परन्तु अमेरिका में बहुत सारे लोग, केसेज़ (cases) इस कोरोना वायरस के हो रखे हैं। और कितने ही गुना ज्यादा लोग मर रहे हैं, अमेरिका में। यह बात धन की नहीं है, यह बात टेक्नोलॉजी की नहीं है, यह बात इन चीजों की नहीं है। यह बात है कि जो कुछ भी हो रहा है, लोग उसको किस प्रकार ले रहे हैं। क्या सचमुच में लॉकडाउन में हो रहे हैं या नहीं ? लॉकडाउन में होगें, लोगों की मदद हो और लोग समझें इस बात को कि यह जो कुछ भी किया जा रहा है, यह किसी की मन-मर्जी की बात नहीं है। इससे लोगों का ही लाभ होगा। और लोगों का लाभ होना चाहिए।

तो लोग समझें और हर एक चीज और बढ़िया हो सकती है, और बढ़िया हो सकती है, और बढ़िया हो सकती है। परंतु यह तो समय ही ऐसा है। सबसे बढ़िया बात होगी कि आप अपने जीवन के अंदर आनंद से, सुख से, चैन से रह करके यह समय बिताएं और इसका पूरा-पूरा, इसका भी पूरा-पूरा लाभ आप अपने जीवन में उठाएं।

सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

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