चरण आनंद जी के साथ एक साक्षात्कार – जन का व्यक्ति

जून 26, 2023

प्रेमरावत.कॉम:  लेखक मर्सिआ न्यूमन ने चरण आनंद से बात चीत की, जो अपने जीवन भर आंतरिक शांति का समर्थन करते आये हैं, जिसको  प्रेम रावत और प्रेम के पिता गुरु लोगो को सिखाते हैं। 

चरण आनंद जो अभी 92 वर्ष के हैं, पिछले 7 से भी अधिक दशकों से पूरे संसार भर में कई हजारों लोगों से मिले हैं, जो आत्म ज्ञान के अनुभव के बारें में जानना चाहते हैं, जिसे प्रेम रावत बिना किसी शुल्क के लोगो को उपलब्ध कराते हैं। 

यह इंटरव्यू हमारे पाठकों के लिए, चरण आनंद की सरल शुरुआत, असाधारण अनुभवों और आत्म ज्ञान का अभ्यास करने के महत्व पर उनके अनोखे नजरिये के बारें में जानने का एक दुलर्भ मौका है।

प्रेमरावत.कॉम:  आज हम से जुड़ने के लिए धन्यवाद चरण आनंद। हाल ही में अपना 92वा जन्मदिन मनाने के लिए बधाई।

चरण आनंद: मेरी भावनाओं को आपके साथ साझा करने के इस मौके के लिए बहुत धन्यवाद हालांकि मेरा शरीर 92 साल का है, लेकिन मैं अंदर से उम्र हीन महसूस करता हूं।

प्रेमरावत.कॉम:  चलिए आज से शुरू करते हैं। आप एवेंचुरा फ्लोरिडा में कैसे हैं ? और इन दिनों किस चीज का आनंद ले रहे हैं ?

चरण आनंद: मैं बहुत खुश (हँसते हुए) महसूस कर रहा हूं, और वास्तव में बहुत अच्छा समय बिता रहा हूं। मुझे ज्ञान का अभ्यास करने और प्रेम का संदेश सुनने में मजा आता है। मैं बाहर की ताजी हवा का आनंद लेता हूं और रोजाना थोड़ा सा व्यायाम करता हूं। जब कभी भी संभव हो, मैं आज भी गोल्फ खेलने का आनंद लेता हूं।

प्रेमरावत.कॉम:  यह सुनकर अच्छा लगा कि आप एकदम ठीकठाक हैं। चलिए शुरू करते हैं। आज आप उस व्यक्ति को आत्मज्ञान कैसे समझाएंगे जो इसके बारे में उत्सुक हो।

चरण आनंद: यह बहुत ही सरल है। प्रेम रावत एक दैनिक अभ्यास सिखाते हैं, जिसे ‘‘ज्ञान” या  ‘‘स्वयं का ज्ञान” कहते हैं। यह एक स्वाभाविक तरीका है अपने ध्यान को अंदर की तरफ मोड़ने और उस शांति को अनुभव करने का जो कि पहले से ही आपके अंदर मौजूद है। मेरे लिए यह एक ऐसा अनुभव है जिसका एकदम से आनंद लिया जा सकता है।

प्रेमरावत.कॉम: आप प्रेम रावत के साथ अपने रिश्ते को कैसे बयां करेंगे?

चरण आनंद: मैं उनको अपने शिक्षक के रूप में प्यार और सम्मान देता हूं और उन्हें अपने सबसे प्रिय मित्र के रूप में अपने दिल के करीब रखता हूं।

प्रेमरावत.कॉम: आपको निक एसक्यू की सोल बायोग्राफीज श्रंखला में दिखाया गया है। इस खूबसूरत वीडियो में आपने बताया कि आप एक छोटे से समुदाय के अंदर, एक प्यार करने वाले भारतीय परिवार में पले बढ़े हैं। अपने बचपन के बारे में कुछ बताइए।

चरण आनंद: मेरा जन्म भारत में राजस्थान के एक छोटे से गांव सुदारपुरा (कोटपुतली के पास) में हुआ। यह दो पहाड़ियों के बीच सुंदर ग्रामीण इलाकों से घिरा हुआ है। मेरे पिता बहुत ही ख्याल रखने वाले, उदार और दयालु व्यक्ति थे। जब मैं 8 साल का था तो हमारे क्षेत्र में भयानक सूखा पड़ा और गांव के किसानों ने जीवित रहने के लिए कर्ज लिया। मेरे पिता जिनका बढ़ईगिरी (कार्पेंट्री) का व्यवसाय था, उन्होंने गांव के लोगों के कर्ज के लिए जमानत दी। जैसे अकाल बना रहा और कर्जदाताओं का दबाव बढ़ा, मेरे पिताजी ने अपने साथियों के साथ गांव के बाहर जाने का निर्णय लिया ताकि वह और पैसा कमा सकें और गांव वालों की कर्ज चुकाने में मदद कर सकें। मुझे स्कूल से बाहर निकाल लिया गया ताकि मैं यात्रा करने वाले लोगों के लिए खाना बनाने में और साथ ही बढ़ईगिरी (कार्पेंट्री) में भी मदद कर सकूं।

इस कारण से मैंने 2 साल की ही औपचारिक शिक्षा पूरी की। हालांकि मैंने खाना बनाना बहुत अच्छे से सीखा, एक ऐसी कला जो मुझे सालों साल बहुत काम आई। जैसेजैसे मैं बड़ा हुआ, मैं बढ़ई गिरी (कार्पेंट्री) की ललित कला को और सीखना चाहता था। इसलिए मैंने दिल्ली में रहने वाले अपने एक रिश्तेदार से संपर्क किया जो कि इस कला में बहुत ही निपुण थे। उन्होंने मुझे अपने साथ दिल्ली में रहने के लिए आमंत्रित किया। मैं उस समय 17 वर्ष का था।

प्रेमरावत.कॉम: तो क्या यहां पर आपने पहली बार श्री महाराज जी (प्रेम रावत जी के पिताजी) द्वारा सिखाये जाने वाले शांति के संदेश के बारे में सुना?

 

चरण आनंद: हाँ, मैं अपने रिश्तेदार प्रह्लाद जिसको ज्ञान था, के साथ रहने के लिए दिल्ली गया। एक दिन उन्होंने मुझे ओम प्रकाश जी नाम के एक व्यक्ति को सुनने के लिए आमंत्रित किया, जो अपने गुरु श्री महाराज जी की ओर से बोल रहे थे। ओम प्रकाश, श्री महाराज जी के एक करीबी शिष्य थे और उन्हें अपने गुरु के संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए कहा गया था। वह हमेशा अपने हृदय से बोलते थे। मुझे उनकी बातें बहुत ही प्रेरणादायक लगती थी। वह इस बात पर जोर देते थे कि तुम्हें अपने अंदर स्थित शांति को पाने के लिए एक व्यवहारिक तरीके को जानने की जरूरत है। 

 

यह 1948 के आसपास की बात है। ओम प्रकाश जी के पास लोगों को ज्ञान की क्रियाएं सिखाने के लिए श्री महाराज जी की आज्ञा थी। लेकिन जब मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने कहानहीं, अच्छा होगा कि तुम और समय लो…..अगर तुम्हें सच में ज्ञान चाहिए, तो तुम्हें यह जरूर मिलेगा। 

उन्होंने मुझे और अधिक सुनने के लिए श्री महाराज जी को व्यक्तिगत रूप से मिलने के लिए प्रोत्साहित किया। ओम प्रकाश जी बोलेमैंने तुम्हें श्री महाराज जी और ज्ञान के उनके उपहार के अपने अनुभव बारे में बताया है। लेकिन अब मैं चाहता हूं कि तुम उनसे मिलो और अपना कनेक्शन महसूस करो।

प्रेमरावत.कॉम: आप पहली बार श्री महाराज जी से कब मिले? उस समय की आपकी क्या यादें हैं उनके बारे में?

 

चरण आनंद: एक दिन आखिरकार मैंने श्री महाराज जी की एक तस्वीर देखी। उस रात उन्हें देखने की मेरी लालसा इतनी तीव्र हो गई। वास्तव में, मैंने अपने सपने में देखा कि श्री महाराज जी एक सुंदर रथ पर बैठकर दिल्ली रहे हैं। आसमान रोशनी से भर गया था। अगली सुबह किसी ने मुझे बताया कि श्री महाराज जी दिल्ली गए थे और यह सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई। मुझे उन्हें सुनने के लिए आमंत्रित किया गया। जब मैंने उन्हें पहली बार देखा तो मैं देखता ही रह गया कि वह कितने सुंदर और शाही लग रहे थे, और उनके चेहरे पर कितनी चमक थी। मेरा सपना सच हो गया था। 

उनका शांति का संदेश एकदम सरल, सीधा और दिल को छू लेने वाला था। उस कार्यक्रम में जिन लोगों ने भी आगे बढ़कर सच्चे भाव से उनसे ज्ञान मांगा, उन्होंने कहा, “ठीक है उस समय मुझ में साहस नहीं था कि मैं दूसरे लोगों के सामने खड़े होकर अपनी इच्छा जाहिर कर सकूं। मैंने सोचा कि शायद ओम प्रकाश जी मेरी तरफ से पूछेंगे या कम से कम मेरा परिचय श्री महाराज जी से कराएंगे। (हंसते हुए)

प्रेमरावत.कॉम: अंततः आपने श्री महाराज जी से ज्ञान मांगने की  हिम्मत जुटाई।

 

चरण आनंद: श्री महाराज जी का कार्यक्रम 3 दिन तक चला। मैं रात को एक तीव्र भावना के कारण सो नहीं पायाएक तड़प। मेरे सपनों में, मैं ज्ञान के इस उपहार को प्राप्त करने के लिए कह रहा था। अगली सुबह जब श्री महाराज जी का कार्यक्रम समाप्त हुआ और मैं अपने काम पर जा रहा था तब मैं प्रहलाद से मिला जिसने मुझे बताया कि ओमप्रकाश जी मुझे श्री महाराज जी से मिलवाने के लिए उनके घर दिल्ली ले जाना चाहते थे। जब हम वहां पहुंचे तो श्री महाराज जी ने ओमप्रकाश से पूछा कि मैं कौन हूं। 

ओमप्रकाश ने श्री महाराज जी को बताया कि मैं उनके सत्संग को सुन रहा था और एक जिज्ञासु था (वो जो ज्ञान के उपहार को पाने की इच्छा रखता है) श्री महाराज जी ने मेरी तरफ देखा और पूछा, “तुम्हारी उम्र क्या है?”

 मैंने जवाब दिया, “मैं 18 साल का हूं।

श्री महाराज जी ने पूछा,” तुम्हें अभी ज्ञान क्यों चाहिए? तुम अभी जवान हो, जाओ मजे करो।

 

मैंने अपने अंदर की सच्चाई और गहराई से श्री महाराज जी को जवाब दिया,” हां, मेरा जीवन बहुत ही सुंदर है। लेकिन मुझे लगता है कि बिना ज्ञान के मेरा जीवन खाली रहेगा। मुझे लगता है कि इस जीवन में और भी बहुत कुछ है। इसलिए, मैं विनम्रता पूर्वक अनुरोध करता हूं कि मुझे आपका ज्ञान प्राप्त हो।

मैं उनकी उपस्थिति में बहुत ही सहज महसूस कर रहा था और हृदय से उनके प्रश्नों का जवाब दे रहा था। 

तब श्री महाराज जी बड़ी खूबसूरती से मेरी ओर झुके और कहा किठीक है फिर उन्होंने ओम प्रकाश जी को कहा मुझे क्रियाएं सिखाने के लिए और उस दिन मैं ज्ञान के इस सुंदर उपहार को पाकर धन्य हो गया।

CharanAnand_Europe Younger – Europe 1974

चरण आनंद – यूरोप 1974

प्रेमरावत.कॉम: मुझे पता चला है कि आपके गांव से 50 से भी अधिक लोगों को, जिनमें से कई आपके रिश्तेदार भी थे, आखिरकार ज्ञान प्राप्त हुआ। क्या यह सच है?

चरण आनंद: हां, मेरे बड़े भाई को भी इसमें रूचि पैदा हुई और उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने सब लोगों को बोला, “यह बहुत सुंदर उपहार है, तुम्हें भी यह लेना चाहिए। “

मेरी भी बहुत गहरी इच्छा थी, श्री महाराज जी को अपने गांव में आमंत्रित करने की। वह 2 बार वहां पर गए। एक बार वह बारिश के समय में गए थे और उनकी बस कीचड़ में फंस गई। श्री महाराज बस से उतरे और नंगे पाँव गांव की ओर चलना शुरू कर दिया। आयोजकों में से एक परेशान हो गया और ऐसे दुर्गम स्थान पर कार्यक्रम की व्यवस्था करने के लिए मुझे बुरा भला कहने लगा। मुझे याद है श्री महाराज जी ने इस बात पर कैसे प्रतिक्रिया व्यक्त की। वह उस आयोजक की तरफ मुड़े और बोले,”ऐसे मत कहो। यह अगर मुझे हृदय से बुलाएगा तो मैं कहीं भी जाऊंगा। जो कोई भी मुझे हृदय से बुलायेगा, मैं जाऊंगा। “

भले ही मुझे उस स्थिति के बारे में बुरा लग रहा था पर श्री महाराज जी ने मुझे सांत्वना दी।

प्रेमरावत.कॉम: कितने दयालु और समर्पित गुरु थे! क्या उस गांव की घटना के तुरंत बाद श्री महाराज जी ने आपसे उनके संदेश को आगे ले जाने में सहायता करने के लिए पूछा?

चरण आनंद: एक दिन मुझे श्री महाराज जी से अकेले में बात करने का मौका मिला।

उन्होंने मुझसे पूछा,” तुम कहां रहते हो?”
“दिल्ली में “
“तुम क्या करते हो?”
“मेरा बढ़ई गिरी का व्यवसाय है। “
“ज्ञान के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है?”
मैंने जवाब दिया,” यह मेरे जीवन में सबसे सुंदर चीज है। “
“तुम्हें लगता है कि इस ज्ञान को और भी लोगों तक पहुंचाना चाहिए?”
“बिल्कुल”, मैंने जवाब दिया।
“तो फिर यह कौन करेगा?”
“श्री महाराज जी आप और आपके शिष्य मिलकर। “
“तो तुम कौन हो? क्या तुम मेरे शिष्यों में से एक नहीं हो?”
“जी, हां। “
“क्या बढ़ईगिरी, मेरे काम में मेरी मदद करने से ज्यादा जरूरी है?”
मैंने कहा,” बिल्कुल नहीं। “
फिर उन्होंने कहा,” तो फिर देरी क्या है?”
मैंने कहा,” कोई देरी नहीं।”

फिर भी मुझे अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को संभालने में कुछ समय लग गया। दुर्भाग्यवश मेरे पिता गुजर गए थे और मेरी मां की आंखें खराब हो गई थी। मेरे छोटे भाई और उनकी पत्नी ने मेरी मां की देखभाल का जिम्मा उठाया।

जब मैंने श्री महाराज जी की मदद करना शुरू किया, उन्होंने मेरे परिवार वालों से कहा,” यह व्यक्ति इस संदेश को और लोगों तक ले जाने में मेरी बहुत मदद करने वाला है। “

यह सितंबर 1957 की बात है, प्रेम के जन्म से 3 महीने पहले।

CharanAnand_Europe Younger – Europe 1974

चरण आनंद लीसेस्टर, यूके में बोलते हुए – 1971

प्रेमरावत.कॉम: आपने फिर रामानन्द महात्मा , जो की जगह-जगह जाते थे, उनके साथ मिलकर पूरे भारवर्ष में यात्रा करना शुरू किया और अलग-अलग लोगों के साथ उनके घर में रहे। ये सब कैसा था आपके लिए ?

चरण आनंद: हां हम जयपुर से शुरुआत करते हुए नए शहरों में गए। कुछ स्थान ऐसे थे जहां हम मुफ्त में रह सकते थे। मैं जाता था और कार्यक्रम की घोषणा करता था और लोग आकर सुनते थे। कुछ प्रेरित हो जाते थे और फिर हमें रात के खाने के लिए अपने घर पर आमंत्रित करते थे। धीरे, धीरे, धीरे इस तरह यह सब शुरू हुआ। अंततः हम मुंबई पहुंचे। उस समय वहां किसी भी व्यक्ति को ज्ञान नहीं था। अब, प्रेम के विश्व भर में होने वाले कार्यक्रमों से, भारत और सभी जगह बहुत कुछ हो रहा है!

उस शुरुआती समय के दौरान, मैंने अपनी पहली उड़ान श्री महाराजी के साथ मुंबई से दिल्ली के लिए ली। उन्होंने मुझे नाश्ता करने के लिए कहा जो विमान में दिया जा रहा था। क्योंकि वो नाश्ता नहीं ले रहे थे और मैं पहले हवाई जहाज में कभी नहीं बैठा था, इसलिए मुझे हिचकिचाहट हुई। श्री महाराजी ने जोर देकर कहा कि मुझे खाना चाहिए। जब हम दिल्ली पहुंचे और मैं उनके साथ उनके कमरे में बैठा हुआ था, तभी उन्होंने मुझसे कहा, ‘‘क्या तुम जानते हो मैंने तुमसे विमान में खाना खाने को क्यों कहा था?‘‘

मैंने कहा, ‘‘नहीं।‘‘

तब श्री महाराजी ने समझाया, ‘‘भविष्य में तुम लोगों को ज्ञान से परिचित कराने के लिए पश्चिम की यात्रा करोगे, इसलिए मैं चाहता था कि तुम हवाई यात्रा की आदत डालो।“

जब मैंने यह सुना, तो मैं बहुत खुश हुआ और आश्चर्यचकित भी हुआ। मैंने उनसे विनम्रता से पूछा, ‘‘श्री महाराजी, अगर मैं अंग्रेजी नहीं बोल सकता तो मेरा पश्चिमी देशों में जाना कैसे संभव होगा ?‘‘

उन्होंने कहा, ‘‘जब विश्वास और प्रयास होता है, तो कुछ भी संभव है।“

इस घटना ने मुझे अंग्रेजी सीखने के लिए प्रेरित किया। बाद में, जब प्रेम रावत ने मुझे 1969 में इंग्लैंड भेजा, तब मुझे पता चला कि श्री महाराजी की भविष्यवाणी मेरे जीवन में सच हो गई थी। इसके बाद से लेकर, 2020 में महामारी तक, मैं उनके संदेश के साथ दुनिया भर में यात्रा करता रहा हूँ।

प्रेमरावत.कॉम: बहुत खूब! पीछे मुड़कर देखें तो, जुलाई 1966 में, चरणानंद आप श्री महाराजी के साथ राजस्थान के अलवर में एक कार्यक्रम में मदद कर रहे थे। यह आखिरी बार था जब आपने उन्हें देखा होगा। श्री महाराजी का निधन कुछ ही दिनों में 66 वर्ष की आयु में हो गया था। उस समय के बारें में आपको क्या याद है ?

चरण आनंद: हाँ, मैं पहले से ही अलवर में था, कार्यक्रम की तैयारी में सहायता कर रहा था। हमने अलवर के गवर्नर को भी आमंत्रित किया था, जो कार्यक्रम में आने वाले थे। श्री महाराजी अलवर पहुंचे। उस रात, उन्होंने रामानन्द और मुझसे बात की और कहा कि उन्हें अपनी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी। श्री महाराजी ने हमसे कहा कि हम उनका संदेश, प्यार और आशीर्वाद कार्यक्रम में आये सभी लोगों तक पहुंचा दें। बिहारी सिंह ने श्री महाराजी से पूछा, ‘‘क्या आप अपने घर देहरादून जाना चाहेंगे?‘‘

श्री महाराजी ने उत्तर दिया, ‘‘नहीं, मुझे दिल्ली जाना है।“

बिहारी श्री महाराजी को दिल्ली में उनके घर, शक्ति नगर, ले गए। श्री महाराजी अकेला रहना चाहते थे और किसी से बात नहीं करना चाहते थे। उन्होंने पूरे दिन ज्ञान का अभ्यास किया, खाने और पीने के लिए भी नहीं उठे। इसी शांतिपूर्ण तरीके से उन्होंने अपने शरीर को छोड़ने का निर्णय लिया।

मेरे लिए यह ध्यान में रखने योग्य बात है। श्री महाराजी को अपने परिवार से और अपने शिष्यों से प्यार था। लोग हमेशा उनसे मिलने आते थे। लेकिन जब उनके शरीर को छोड़ने का समय आया, वो किसी से मिलना नहीं चाहते थे। यह मुझे बहुत प्रेरणादायक लगता है। यह भगवद गीता में बताई गयी उस बात पर प्रकाश डालता है , जब अर्जुन भगवान कृष्ण से पूछते हैं, “उस व्यक्ति का स्वभाव कैसा होता है जो अपने आंतरिक अनुभव से जुड़ा होता है?”

तो कृष्ण ने उत्तर दिया, ‘‘वह व्यक्ति कछुए की तरह होता है। वह अपने अंगों के साथ बाहर और आसपास रेंगता है। लेकिन जब उसका बाहर का खोल किसी चीज से टकराता है, तो वह अपने अंगों को अंदर की तरफ खींच लेता है। जो व्यक्ति अपने अंदर के अनुभव से जुड़ा होता है, वह अपना ध्यान दुनिया से हटा कर अपने अंदर की ओर ले जा सकता है।“

श्री महाराजी को पता था कि उनके लिए सबसे प्रिय क्या था – वह अंदर का आनंद।

प्रेमरावत.कॉम: श्री महाराजी के साथ अपने अनुभवों को हमारे साथ बांटने के लिए बहुत धन्यवाद । प्रेम रावत जिस तरह से शांति का सन्देश देते हैं, उसमे आपको क्या खास लगता हैं ?

चरण आनंद: पहली बार जब मैंने प्रेम को देखा, तब वह तीन महीने के थे। जब मैंने पहली बार उन्हें गोद में लिया, उनके शांत और प्रकाशमय चेहरे को देखकर मुझे एक शक्तिशाली अनुभूति हुई। कुछ दिनों बाद, जब उन्हें उनके पिता श्री महाराजी ने गोद में लिया, उन्होंने कहा, ‘‘जो मेरा संदेश दुनिया में ले जाने वाला है, वह मेरी बाँहों में है।“

जब प्रेम चार साल के थे, मैं उन्हें देहरादून में बरामदे के नीचे बैठे हुए, अपने भीतर लीन देखता था। वह हर सुबह ऐसा ही करते थे। मैं यह देखकर आश्चर्यचकित और प्रेरित होता था। फिर वो अतिथिगृह में मेरे कमरे के दरवाजे पर खटखटाते और मुझे कहते , ‘‘उठो और ज्ञान का अभ्यास करो। “मैं मुस्करा कर उन्हें उत्तर देता और कहता, ‘‘आप भी मेरे साथ अभ्यास करें। “ तब वह मेरे साथ बैठ जाते थे और मैं अभ्यास करता था।

उस दौरान, एक बुजुर्ग व्यक्ति श्री महाराजी से मिलने आए और उन्होंने मुझे उनसे बात करने के लिए कहा। हमारी बातचीत शुरू हुई, जिसके दौरान संत जी (प्रेम) आए, मेरी गोद में बैठे और देखते रहे कि क्या हो रहा है। वह व्यक्ति बहुत विद्वान था और अपनी पढ़ी हुई किताबों के उदाहरण देते हुए मेरे साथ वाद-विवाद करने लगा। एक बिंदु पर, संत जी ने उस व्यक्ति को रोका और पूछा, ‘‘आप कितने साल के हैं?‘‘

75,‘‘ उसका जवाब था।“

“क्या आपने वह शांति पा ली है जिसे आप खोज रहे हैं? ‘‘

“नहीं, अभी तक नहीं।“

तब संत जी ने उन्हें थोड़े गुस्से से कहा, ‘‘चरण आनंद के साथ वाद-विवाद न करें। वह अपने अनुभव से बात कर रहे हैं, न कि अपनी पढ़ी लिखी बातों से। अपना समय व्यर्थ न करो। आपकी पहले ही काफी उम्र हो चुकी है। श्री महाराजी से ज्ञान का उपहार मांगे, जो आपको अपने अंदर की शांति का अनुभव करने में मदद करेगा।“

इसके बाद, संत जी ने मुझे कुछ समय के लिए अपने साथ आने को कहा। जब मैं लौटा, तो मैंने देखा कि वह व्यक्ति ध्यानपूर्वक सोच रहा था।

उसने मुझसे पूछा, ‘‘वह लड़का कौन था?‘‘

मैंने कहा, ‘‘वह श्री महाराजी के सबसे छोटे बेटे हैं।“

व्यक्ति ने कहा, ‘‘मैं अपने जीवन में इतने लोगों से मिला हूँ, लेकिन किसी ने मुझे उनकी तरह अवाक नहीं किया। उनका सवाल इतना सीधा था, और मुझे मानना पड़ा कि मुझे अपनी पढ़ाई से शांति नहीं मिली थी।“

कुछ समय बाद, उसने श्री महाराजी से ज्ञान का उपहार प्राप्त किया। यह देखना बहुत प्रेरणादायक था कि इतनी कम उम्र में भी प्रेम किस तरह दूसरों को उनके अपने सच्चे स्वरूप से जोड़ने में कितने प्रतिभाशाली थे।

श्री महाराजी हमेशा प्रेम के बारे में बहुत प्यार, प्रशंसा और आत्मविश्वास से बात करते थे। वे सचमुच जानते थे कि प्रेम कौन हैं।

इसलिए, उन्होंने प्रेम को एक अंग्रेजी स्कूल में भेजा ताकि वो अच्छे से अंग्रेजी भाषा सीख सकें। समय-समय पर उन्होंने इस बात का ऐलान किया, ‘‘जो व्यक्ति ज्ञान को सारे संसार में ले जायेगा, वह यहाँ हमारे बीच में है।

एक दिन एक पंडित ने श्री महाराजी से पूछा, ‘‘आप संत जी को अंग्रेजी स्कूल के बजाय संस्कृत स्कूल में क्यों नहीं भेजते? “

श्री महाराजी ने पूछा, ‘‘उन्हें संस्कृत क्यों सीखनी चाहिए? “

पंडित ने कहा, ‘‘इससे वह हमारे प्राचीन शास्त्रों को पढ़ सकेगा। “

श्री महाराजी ने जवाब दिया, ‘‘उन्हें शास्त्र पढ़ने की जरूरत नहीं है। जब वह बोलेंगे, नए पन्ने लिखे जाएंगे। “

एक और बार, जब मैं मुंबई में उनके साथ था, श्री महाराजी ने मुझसे उनकी पत्नी, माता जी, को पत्र लिखने को कहा, और उन्होंने यह चिंता व्यक्त की कि इस साल वह गुरु पूजा त्यौहार में शामिल नहीं हो पाएंगे। उन्होंने संत जी (प्रेम) को उनकी कुर्सी पर बैठने और अपने सभी शिष्यों को उनके साथ मिलकर त्यौहार मनाने की कामना की। “

इसके बाद, जब प्रेम केवल सात साल के थे, उन्होंने देहरादून में श्री महाराजी के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया, उस समय श्री महाराजी पंजाब में यात्रा कर रहे थे। प्रेम ने एक संदेशक के माध्यम से श्री महाराजी को निमंत्रण भेजा।

संदेश पहुंचने पर, श्री महाराजी ने कहा, ‘‘मुझे वहां जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि संत जी वहां हैं और वह सब कुछ संभाल लेंगे। “

संदेशक ने जवाब दिया, ‘‘संत जी ने मुझसे व्यक्तिगत रूप से अपनी याचना व्यक्त करने के लिए कहा है। “

श्री महाराजी ने एक क्षण चिन्तन किया और इतना प्रभावित महसूस किया कि उन्होंने कहा, ‘‘मुझे जाना चाहिए। मैं संत जी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं चाहता क्योंकि मैं उनसे बहुत प्यार करता हूँ!‘‘ उन्होंने अपने सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए और उसी रात देहरादून के लिए चल दिए।

श्री महाराजी प्रेम के कार्यक्रम आयोजन के तरीके से बहुत प्रभावित हुए। इतनी बारीकी से हर बात पर ध्यान दिया गया था कि आगामी कार्यक्रमों में भारत के आयोजक उनका अनुसरण करने का प्रयास करते थे। प्रेम ने अपने स्कूल के अध्यापकों और साथ ही शहर के कईं प्रमुख लोगों को भी आमंत्रित किया था। इस कार्यक्रम का आयोजन गर्मीयों की एक शाम को एक सुंदर पार्क में हुआ था। चाँदनी रात थी और माहौल बहुत ही सुहावना था। अपने सत्संग के दौरान, श्री महाराजी ने संत जी को मंच पर बुलाया और बोलने के लिए कहा। मुझे आज भी याद है प्रेम के सन्देश का सार, जो उन्होंने अंग्रेजी और हिंदी दोनों में, हिन्दुस्तान के सभी लोगों के लिए उस रात दिया।

युवा प्रेम ने कहा, ‘‘तुम कब तक विदेशी सहायता पर आश्रित रहोगे? तुम्हारे पास अपने देश को विकसित करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं। तुम्हें बस अपने लोगों को शिक्षित करना है और मिलकर काम करना है। अन्य राष्ट्रों ने अपने देशों को विकसित किया है, यह तुम भी यह कर सकते हो। लेकिन ज्ञान और हमारी प्राचीन समझ और विवेक को नहीं भूलना चाहिए। अकेले भौतिक विकास से मनुष्य के जीवन में सच्ची संतुष्टि और सुख नहीं लाया जा सकता है। तुम्हें आत्मा के ज्ञान को आधुनिक प्रौद्योगिकी के साथ मिलाना होगा।‘‘

जब प्रेम बोल रहे थे, मैं श्री महाराजी से उनके बेटे की तरफ देख रहा था और श्री महाराजी को बहुत सारी प्रशंसा और आनंद से भरा हुआ पाया। मेरे लिए सात साल के संत जी को श्री महाराजी और दर्शकों के सामने अंग्रेजी और हिंदी दोनों में, बड़े आत्मविश्वास, स्पष्टता और आसानी से बोलते हुए देखना, बहुत प्रेरणादायक था। मेरी आँखें खुशी के आसुंओ से भर गई थी। प्रेम के बोलने के बाद, श्री महाराजी ने अपने गले से माला निकाली, प्रेम के गले में डाली और गर्व से उनके बारे में बोले।

श्री महाराजी ने कहा, ‘‘उनका शरीर छोटा है, लेकिन आत्मा महान है। वह निस्संदेह इस ज्ञान को दुनिया के लोगों के लिए उपलब्ध करायेंगे। मैं उनकी प्रशंसा करता हूं, इसलिए नही कि वो मेरे बेटे हैं, बल्कि उनके महान विवेक और काबिलियत के कारण।“

जीवन इतना मूल्यवान है। जीवन विशेष है।
आइए इस उपहार की सराहना करें जब तक की हमारे पास समय है।

चरण आनंद

चरण आनंद: प्रेम सिर्फ आठ साल के थे जब उनके पिता और गुरु का शरीर पूरा हुआ। उनके परिवार और आस-पास के लोगों में बहुत दुख और भ्रम था। उस कोमल उम्र में, स्वाभाविक रूप से, प्रेम भी बहुत दुखी थे। फिर भी, उस दौरान एक रात को, प्रेम ने मुझसे कहा, ‘‘मुझे लगता है कि श्री महाराजी हमारे आस पास ही हैं यह देखने के लिए कि क्या हम अपने दुख में खो गए हैं या यह याद रखा है कि ज्ञान का प्रचार उन्हें कितना प्रिय था ।“

मुझे आश्चर्य हुआ कि इतने छोटे बच्चे में इतना आत्म बल है कि वो इस गहन दुःख के समय से ऊपर उठकर, अपने पिता के संदेश से अभी भी जुड़ा है जो उनके लिए कितना महत्वपूर्ण था। अगले दिन, 31 जुलाई 1966 को, मेरी आंखों के सामने, मैंने उन्हें हजारों रोते हुए लोगो से बात करते हुए देखा, ‘‘रोओ मत , तुम्हे रोने की जरूरत नहीं है। जिस चीज़ के कारण आप श्री महाराजी से प्यार करते हैं, वह हमेशा आपके साथ रहेगी। कोई आपसे वह चीज छीन नहीं सकता।“

बात करते हुए प्रेम, आंसूओं को खुशी में, भ्रम को स्पष्टता में, निराशा को आशा में बदल रहे थे। मैं उन प्रभावशाली पलों को कभी नहीं भूलूंगा। यह हम सभी उपस्थित लोगों के लिए एक परिवर्तन का समय था। प्रेम ने हमारे दिलों को गहराई से छुआ और हमें उन्हें हमारे गुरु के रूप में पहचानने में मदद की। प्रेम ने मुझे कभी भी किसी अचानक हुए परिवर्तन का अनुभव नहीं कराया, क्योंकि मैंने वहीँ प्यार और अहसास का अनुभव किया।

कुछ महीने बाद, नवम्बर 1966 में, दिल्ली में प्रेम के लिए एक बडे कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसका आयोजन शुरुआत में श्री महाराजी के लिए किया गया था। दिल्ली के मेयर ने प्रेम रावत का स्वागत किया। यह उनके नौवें जन्मदिन से कुछ ही समय पहले हुआ। मेयर प्रेम के बोलने की काबिलियत से बहुत ही प्रभावित हुए, “यदि वह इतनी छोटी उम्र में लोगों के दिलों को इतना गहराई से छू सकता है, तो जब वह बड़ा होगा तो क्या क्या करेगा?”

उस समय से, स्कूल की छुट्टियों में, प्रेम ने भारत के विभिन्न हिस्सों में हजारों लोगों के सामने बोलना शुरू किया। कुछ ही सालों में, उन्होंने अपना संदेश दुनिया के बाकी हिस्सों में भी पहुंचाया। मैंने अक्सर देखा था कि श्री महाराजी, अपनी आंखों में आंसू भरे हुए, इस ज्ञान के उपहार को पूरी दुनिया में उपलब्ध कराने की अपनी गहन इच्छा व्यक्त करते थे।

मेरी भावना से, जब गुरु अपने हृदय से कुछ करने की इच्छा व्यक्त करते हैं, तो यह जरूर होता है चाहे जल्दी हो या देर से हो। ऐसा मानों कि वे इच्छाएं कहीं इकठी हो जाती हैं, जब तक कोई सही व्यक्ति उन्हें उठाने और साकार करने के लिए नहीं आता। जब वह व्यक्ति इसे करना शुरू करता है, तो सभी प्राकृतिक संसाधन उसे पूरी करने में मदद के लिए आ जाते हैं। मैं देखता हूं कि प्रेम रावत के प्रयासों के माध्यम से और उन लोगों के साथ जो उनके शांति संदेश का समर्थन करते हैं, अब यह हो रहा है।

मेरी भावना से, जब गुरु अपने हृदय से कुछ करने की इच्छा व्यक्त करते हैं, तो यह जरूर होता है चाहे जल्दी हो या देर से हो।

चरण आनंद

प्रेमरावत.कॉम: वाह, बहुत खूब! धन्यवाद। 1969 में, प्रेम ने आपको अपने सन्देश को पश्चिम में ले जाने को कहा, पहले इंग्लैण्ड में और फिर अमेरिका में। यह आपके लिए जरूर एक सांस्कृतिक झटका रहा होगा।

चरण आनंद: हाँ, मेरा पहले से ही पश्चिमी देशों से आए हुए युवा लोगों से परिचय हो चुका था जो अपने जीवन में कुछ और अधिक ढूंढने के लिए भारत आए थे। उस समय, उनकी जीवनशैली मेरे लिए अजीब थी। वे पार्क में सोने, मारीयुआना पीने और हिपी की तरह रहने में संतुष्ट थे। उनमे से कई लोगों ने मुझे अपनी व्यक्तिगत कहानियां बताई। मुझे पता चला की वे कितने भाग्यशाली थे की उन्हें अच्छी शिक्षा, अच्छा पारिवारिक माहौल, और भी बहुत कुछ मिला था। लेकिन फिर भी वे पूरी तरह से खुश नहीं थे। ये युवा पश्चिमी यात्री भारत में आए थे ताकि वे भारत के प्राचीन ज्ञान के बारे में और अधिक सीख सकें। उनमे से कुछ ऐसे लोग, जिनके साथ मैं अभी भी संपर्क में हूं, जिनकी अब उम्र काफी हो चुकी है, और वे प्रेम के इस सुन्दर शांति संदेश को लोगों तक पहुंचाने में आज भी सक्रिय हैं।

जब प्रेम ने मुझे इंग्लैंड भेजने का फैसला किया, तो उन्होंने कहा, ‘‘चलो देखते हैं तुम्हे कितनी अंग्रेजी आती है।“

उन्होंने कुछ शब्द अंग्रेजी में बोले और मुझसे हिंदी में अनुवाद करने को कहा। मैंने इसे सही रूप से किया।

वो मुस्कराये और मुझसे कहा, ‘‘बहुत अच्छा। जितना जरूरी है उतना तुम जानते हो। लोग वो ही महसूस करेंगे जो तुम कह रहे हो, शब्दों में खो नहीं जाएंगे।“

उन्होंने मुझे पश्चिमी देशों में पहुंचने पर मेरा व्यवहार कैसा हो, इसके बारे में सलाह दी, ना तो किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन की आलोचना करना और ना ही समर्थन करना। ‘‘अगर तुम उनकी आलोचना करोगे, तो वे कभी वापस नहीं आएंगे। अगर तुम उनका समर्थन करोगे, तो अधिकारी लोग तुम्हें गिरफ्तार करके इंग्लैंड से बाहर निकाल सकते हैं। तो इसमें नहीं पड़ना। बस मेरे संदेश का प्रचार करना। जो भी रुचि रखते हैं, उन्हें आत्म-ज्ञान की क्रियाएं सिखाना और उन्हें अभ्यास करने के लिए प्रेरित करना। वही उनमें वास्तविक खुशी और परिवर्तन लाएगा।“

उस समय प्रेम 11 साल के थे।

प्रेम रावत (बाएं) बिहारी सिंह और चरण आनंद (दाएं) के साथ टोरंटो, कनाडा में – 1971

प्रेमरावत.कॉम: 1971 में पश्चिम के लोगों की मानसिकता आज की तुलना में कैसे अलग थी, अगर थी तो। आपके दृष्टिकोण से क्या बदलाव आया है, अगर आया है तो ?

चरण आनंद: इस दुनिया में इतने सारे बदलाव! फिर भी, चाहे वर्ष कुछ भी हो, बहुत से लोग जो प्रेम रावत के सन्देश को सुनते हैं , उसे बहुत ही प्रेरणादायी पाते हैं। यह संदेश समय से परे है। यह सन्देश अपनी संतुष्टि की प्यास को खोजने के बारे में है। कोई यहां किसी को राजी करने के लिए नहीं है। इस दुनिया में सभी तकनीक और बदलावों के बावजूद, आत्म-ज्ञान की जरूरत फिर भी है। हां, विज्ञान, तकनीक और सम्पूर्ण शिक्षा प्राप्त करना महत्वपूर्ण है। फिर भी, हमें प्राचीन ज्ञान को भी प्राप्त करने की आवश्यकता है जो हमें शांति, गरिमा और समृद्धि के साथ जीने में मदद करता हैं। हर आयु में, प्रेम ने अपने ह्रदय से और आत्मविश्वास के साथ बात की हैं। जब प्रेम 13 साल के थे, तब वो लॉस एंजिल्स आए थे और किसी ने उनसे पूछा, ‘‘मृत्यु के बाद क्या होता है, हमें बताएँ।“
वो मुस्कराये और कहा, ‘‘मुझे नहीं पता, मैं अभी जीवित हूँ। चिंता मत करो, तुम वहां पहुँचोगे और फिर तुम किसी को नहीं बता पाओगे कि क्या होता है। मैं यहां अमेरिका में इस सब के बारे में बात करने के लिए नहीं हूँ। मुझे एक बात पता है कि जीवन कीमती है। इसे खुशी से और सचेत रहकर के जियो।“

बोल्डर, कोलोराडो में प्रेम रावत के साथ चरण आनंद – 1971

अमेरिका के अलग अलग शहरों में टूर के दौरान , लोगों ने बहुत सवाल पूछे। उन्होंने आख़िरकार कहा , “तुम ये सब सवाल मुझसे क्यों पूछ रहे हो ? मैं बस 13 साल का हूँ। मेरे ये सब सवाल नहीं हैं। क्योंकि मेरे गुरु ने ज्ञान के उपहार के द्वारा मुझे अपने ह्रदय से जोड़ दिया है। तुम लोग उसके बारें में क्यों नहीं पूछते जिससे तुम्हे अपने जवाब स्वयं मिल जायेंगे?”

मुझे लगता है कबीर (15वीं सदी के भारतीय संत-कवि) जरूर मुझसे सहमत होते , ‘तुम उसकी बात करते हो जो तुमने पढ़ा है, और मैं अपने अनुभव की बात करता हूँ। “

प्रेमरावत.कॉम: मैं समझता हूँ कि आपने दुनिया के अधिकांश शास्त्रों को पढ़ा है। आपके अनुसार उनमे क्या समानता है ?

चरण आनंद: मेरी समझ से, जिन सभी पुराणों को मैंने पढ़ा है, वे सभी अपने समय की विभिन्न भाषाओं और माध्यम से शांति के एक ही आंतरिक अनुभव की बात करते हैं। प्रेम उसी प्राचीन संदेश के बारें में बताते हैं और इसे जानने के लिए हमें एक व्यवहारिक तरीका दिखाते हैं। वे उस चीज के बारे में बात करते हैं जिसकी हमारे हृदय को सचमुच आकांक्षा होती है। वो कहते हैं, ‘‘अगर तुम मेरी मदद चाहते हो उसमें, तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ।“ वही उनका उपहार है।

प्रेमरावत.कॉम: आप उन लोगों से क्या कहेंगे जिनका मानना है कि प्रेम जिस बात की चर्चा करते हैं वह “धार्मिक” या “आध्यात्मिक” है ?

चरण आनंद: मेरे अपने अनुभव के अनुसार, यह ज्ञान धार्मिक या आध्यात्मिक नहीं है। यह आंतरिक शांति का सीधा अनुभव है। क्या हमारी स्वांस धार्मिक या आध्यात्मिक होती है? उसका अपना एक अस्तित्व है। उदाहरण के लिए, जब आप खाते हैं, तब आप बात नहीं करते। जब आप पीते हैं, तब आप बात नहीं करते। आप सिर्फ खाने और पीने के उस अनुभव का आनंद लेते हैं। यही बात इस आंतरिक अनुभव के साथ है, यह आनंद लेने के लिए है। यह एक बहुत स्वाभाविक प्रक्रिया है।

प्रेम मुझे याद दिलाते हैं कि जीवन में मूलभूत आवश्यकताएं हैं, जिसमें हमारी शांति की आवश्यकता भी शामिल है। मैं इस बात की प्रशंसा करता हूँ कि कैसे प्रेम इस विषय को ताजगी और सरलता प्रदान करते है। इससे उन्हें पूरी दुनिया में सभी प्रकार के लोगों तक पहुंचने में आसानी होती है। एक अद्भुत उदाहरण है प्रेम का सन्देश (14 मिनट) नॉर्डिक शांति सम्मेलन में जो ओस्लो, नॉर्वे में छात्रों ने आयोजित किया था।

प्रेमरावत.कॉम: आपके जीवन में विश्व भर के अनुभव के अनुसार वह क्या एक सबसे बड़ी रुकावट है जो लोगो को प्रेम के सन्देश को अपनाने से रोकती है? और लोगों को इस चीज में मदद करने के लिए आप क्या कहना चाहेंगे ?

चरण आनंद: बहुत से लोग प्राचीन और वर्तमान की अलग-अलग शिक्षाओं के बारे में पढ़ते हैं। वे प्रेम की दूसरों के साथ तुलना करना चाहते हैं, जो वो सुनाते है उसकी और उनके जीवन जीने के तरीके की। इन अवधारणाओं को पकड़े रहना व्यक्ति के जीवन में वास्तविक आनंद के अनुभव में बाधा डाल सकता है। बच्चे जानते हैं कि कैसे खुले रहना है। उनका जीवन के प्रति बहुत सरल तरीका हैं। जब उन्हें भूख लगती है, तब वे खाते हैं। जब उन्हें थकान महसूस होती है, तब वे सोते हैं। उसी तरह, जब आपको आंतरिक शांति की आवश्यकता महसूस होती है, तो सबसे अच्छा है कि आप प्रेम की बातें बच्चे के ह्रदय से सुनें। हाँ, अपने सवाल पूछना अच्छा है। फिर एक समय आता है जब आप अपने सवालों और अवधारणाओं से ऊपर उठकर व्यक्तिगत शांति का अनुभव करें।

जब आप प्रेम को सुने तो सबसे अच्छा तरीका है की आप उसे अपने ह्रदय से पकड़ने की कोशिश करें।

चरण आनंद

प्रेमरावत.कॉम: आप अपनी बढ़ती हुयी आयु के बारें में क्या सोचते हैं? कोई सलाह लम्बी उम्र के लिए ?

चरण आनंद: मुझे बूढ़ा होने की चिंता नहीं होती है। बहुत समय पहले, प्रेम ने कहा था, ‘‘जब हम शरीर पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तब हमें अपनी उम्र का एहसास होता है। जब हम अंदर के अनुभव पर ध्यान देते हैं, तब हमें उम्रहीन होने का एहसास होता है। “उन्होंने मुझे वह दिखाया है जो कि अविनाशी है, और मुझे उसी पर ध्यान देना पसंद है।

पर साथ ही, मेरा शरीर मेरा घर है। मुझे इसका भी ध्यान रखना चाहिए। एक कहावत है, ‘‘60 के बाद, अगर सोकर उठने के बाद ठंड और दर्द और जकड़न का अहसास नहीं होता हैं, तो इसका अर्थ है कि आप मर चुके हैं।“ बेशक, मैं कुछ ऐसे दर्दों के साथ उठता हूं। मैंने हाल ही में 2 मई 2023 को 92वां जन्मदिन मनाया है। फिर भी, मैं अपनी सेहत के प्रति अपना प्रयास करता हूं। यह मेरे लिए महत्वपूर्ण है। जैसे कि एक घर या एक कार, इसे भी देख भाल की आवश्यकता होती है। मैं सही खाना खाने, रोजाना व्यायाम करने और अच्छी नींद लेने का प्रयास करता हूं। व्यायाम करने के कई तरीके हैं। आपको उन तरीकों को खोजना होगा जिनसे आपको खुशी मिलती है। मेरे लिए, मैं गोल्फ, योग, ताजी हवा में टहलना, संगीत सुनना और गाना गाने का आनंद लेता हूं।

शुरूआती वर्षों में, मैं गोल्फ का व्यायाम के रूप में आनंद लेता था, और मैंने प्रेम रावत फाउंडेशन के जन भोजन कार्यक्रम के लिए धन राशि इकट्ठा करने हेतु चैरिटी गोल्फ टूर्नामेंट आयोजित किए। फूड फॉर पीपल (एफएफपी) कार्यक्रम गरीबों को पौष्टिक भोजन, स्वच्छ पानी और शिक्षा के अवसर प्रदान करता है।

मैं जानता हूँ कि एक दिन सब कुछ पीछे छूट जायेगा और मैं चाहता हूँ कि शांति के उस अहसास से जुड़ा रहूँ।

चरण आनंद

ज्ञान का रोजाना अभ्यास करना मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह मुझे अपनी अंदर की गहराईयों में ले जाता है। प्रेम ने यह सिखाया है, ‘‘ज्ञान को एक उचित मौका दें।“ मैं जानता हूँ कि एक दिन सब कुछ पीछे छूट जायेगा और मैं चाहता हूँ कि शांति के उस अहसास से जुड़ा रहूँ।

एक दिन श्री महाराजी ने मुझे एक मार्गदर्शन पत्र भेजा। उनका मेरे लिए पहला वाक्य था, ‘‘अपनी सेहत का ध्यान रखें।“ दूसरा, ‘‘ज्ञान के अभ्यास का आनंद लें।“तीसरा, ‘‘मेरे संदेश को सुनें और सहायता करते रहें।‘‘

मैं इसके लिए बहुत ही कृतज्ञ हूं कि मैं स्वस्थ और खुश महसूस करता हूँ। मैं प्रेम का धन्यवाद करता हूँ उस सबके लिए जो उन्होंने मुझे दिया है। धन्यवाद है कि मैं अभी भी अपनी देखभाल कर सकता हूं। इसलिए, कृपया अपना ध्यान रखें।

प्रेमरावत.कॉम: चरण आनंद जी, आपने जो कुछ भी दिया है और देते रहेंगे , उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। अंदर की शांति के प्रति आपकी निष्ठा की कहानी उल्लेखनीय है। आपकी दयालुता जो आपने दुनिया भर के इतने सारे मनुष्यों के लिए दिखाई है, हमेशा सराहनीय रहेगी।

चरण आनंद: मेरे आनंद के इस सफर को आपके साथ शेयर करना मेरे लिए बड़े गर्व की बात है। मैं हमेशा हमेशा के लिए श्री महाराजी का शुक्रगुजार रहूँगा उनके साथ अपने आनदंमय जीवन को बिताने के लिए और अब प्रेम के साथ। मैं उन्हें गहरे प्रेम और आदर के साथ, मेरे ह्रदय के बहुत ही करीब रखता हूँ।

मालिबू, कैलिफोर्निया में चरण आनंद – 2017

यदि आप चरण आनंद को कुछ प्रशंसा सन्देश भेजना चाहते है तो editor@premrawat.com

पर संपर्क करें।

मर्सिआ न्यूमन धन्यवाद देना चाहती है लैरी लेफ्कोविच, डेविड शिमबर्ग, मिच डिकॉफ और हेनरी रीफ को उनके मिले जुले प्रयासों के लिए जिसकी वजह से चरण आनंद जी के साथ यह विशेष इंटरव्यू संभव हो पाया।

लीड फोटो – चरण आनंद मोंटपेलियर, फ्रांस में बोलते हुए – 1985

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