साथ साथ, न० : 2 – असली संभावना

“हम भूल जाते हैं कि हम अपने जीवन में उस प्रेम का, उस सच्चाई का, उस आनंद का एक स्रोत बन सकते हैं और बन क्या सकते हैं बल्कि हम तो हैं। हैं! परन्तु हम समझते नहीं हैं कि हम हैं।” —प्रेम रावत

प्रेम रावत जी:

हमारे सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

आज फिर मैं कुछ आपसे कहना चाहता हूं। लम्बी-चौड़ी बात नहीं है, वैसे तो छोटी-सी बात है और छोटी-सी बात यह है कि हम जानते हैं कि दरअसल में इस संसार में बहुत कुछ होता है अच्छा भी होता है, बुरा भी होता है। और यह भी हम अच्छी तरीके से जानते हैं कि जो अच्छा होता है उसमें अगर हमारा कुछ लाभ हो, तो हम उसको अच्छा मानते हैं और अगर कुछ ऐसा होता है जिसमें हमारा भी बुरा होता है तो उसको हम बुरा मानते हैं।

अब आप देख लीजिए कि इस सारे संसार के अंदर कितने ही लोग लगे हुए हैं राजनीति में कई-कई पार्टियां हैं — कुछ किसी पार्टी को वोट देते हैं, कुछ किसी पार्टी को वोट देते हैं। और क्यों ? जो पार्टी उन बाधाओं को आगे रखती है जिनसे कि उनका भला होगा, तो वो लोग उस पार्टी को वोट देंगे। और दूसरे, जो देखते हैं कि उनका भला होगा, तो वो उस पार्टी को, दूसरी पार्टी को वोट देंगें। तो इस प्रकार से सारा चक्कर इस संसार का चलता है। परन्तु भला क्या है ? असली भला क्या है और असली बुरा क्या है ? इसमें और कोई पार्टी नहीं है, इसमें और कोई राजनीति नहीं है, इसमें कोई बैंक नहीं है, इसमें कोई पैसा नहीं है, इसमें कोई खाने की चीज नहीं है।

मैं बात कर रहा हूं जिंदगी की। अगर यह मनुष्य तन मिला है और अगर आप जीवित हैं, तो यह भला है, भला है। कई परिस्थितियां हैं जो हो सकता है कि आपकी इच्छा के अनुकूल न हों, परन्तु वो परिस्थितियां तो बदलेंगी। एक समय था कि वो वैसी परिस्थिति नहीं थी। आज वो हैं, कल वो हो सकता है ना रहें। परसों नई वाली आयें, नितरसों पुरानी वाली आयें। यह सारा चक्कर इस संसार का तो चलता रहता है। इसमें फिर दो बातें आती हैं। क्या यह हमको मालूम है कि सबसे बड़ी चीज जो हमारे जीवन में होगी, उससे बड़ी चीज कोई हो नहीं सकती है। वो यह है कि हमको यह जीवन मिला। इससे बड़ी चीज हो नहीं सकती।

पर क्या जब हम बैठे हुए हैं कोई हमसे यह बात आकर कहता है तो हम कहेंगे “हां, आप सच कह रहे हैं, सच कह रहे हैं, सच कह रहे हैं।” दो मिनट के बाद वह हाल नहीं है — मतलब पानी में हाथ डाला पर पानी में हाथ तो जरूर गया, परन्तु हाथ गीला नहीं हुआ। कह तो दिया कि “हां सबसे बड़ी चीज यह है कि मेरा जन्म हुआ, मैं जीवित हूं, परंतु उसका कोई असर नहीं हुआ।” फिर जैसे ही, जैसे मौसम बदलता है या घड़ी की सूई चलती है ठीक उसी प्रकार से दो मिनट में कुछ और हो रहा है। क्या हो रहा है ? “वही दुनियादारी की बातें, वही चिंता, वही अब क्या होगा, यह होगा, वह होगा, वह करना है, यह करना है, वह करना है” इन्हीं सब चीजों में ध्यान जा रहा है।

आज पता नहीं कितने लोग सारी स्थिति को देखकर के घबराए हुए हैं और यह कोई नहीं सोच रहा है कि मैं जीवित हूं। ठीक है, ये परिस्थितियां हैं जैसी हैं, पर मैं जीवित हूँ। और क्योंकि मैं जीवित हूँ मैं कुछ कर सकता हूँ। एक तो मैं यह कर सकता हूं कि मैं अपनी सुरक्षा कर सकता हूं, क्योंकि मैं जीवित हूं। और दूसरी चीज, मैं अपने जीवन के अंदर आनंद ला सकता हूं। इस महामारी से मैं बच सकता हूं, इस कोविड-19 से मैं बच सकता हूं और अपने जीवन के अंदर मैं आनंद भी ला सकता हूं। और यह संभावना कि “मैं अपने जीवन में आनंद लाऊं” इस कोविड-19 से पहले भी थी और इस कोविड-19 के बाद भी रहेगी। जबतक आप जीवित हैं आपके अंदर यह स्वांस आ रहा है, जा रहा है तबतक यह संभावना बनी हुई है। तो यह तो मैंने कह दिया, (वहां, जो आप लोग बैठे हैं जहां कोई अपना सिर भी हिला रहा होगा “हां जी, ठीक कह रहे हैं।”)

परन्तु बात यह वही है कि हाथ पानी में डाला, हाथ तो जरूर डाला, पर हाथ भीगा नहीं — मतलब, यह जो संदेश है कि “आपके जीवन के अंदर सबसे बड़ी चीज यह होगी कि आप जीवित हैं। मतलब आप, आप नहीं होते अगर यह स्वांस आपके अंदर नहीं आता। आप, आप नहीं होते अगर आपके अंदर यह स्वांस नहीं आता। लोगों को चंद मिनटों का दुख जरूर होता, फिर आगे गाड़ी चलती रहती और चलती रहती। आप, आप हैं क्योंकि आपके अंदर यह स्वांस है आ रहा है और जा रहा है। परंतु यह बात कि “आपके अंदर यह स्वांस आ रहा है, जा रहा है” यह संदेश चढ़ता नहीं है।

लोगों से हम पूछते हैं कि “भाई, इतनी सुन्दर बात तुमने समझी अपने जीवन के अंदर इसका कुछ तो प्रभाव होना चाहिए तुम्हारे जीवन में ?” लेकिन लोग हैं “अजी हमारे पास यह समस्या है, हमारे पास यह है, हमारा यह नहीं हो रहा है, हमारा वह नहीं हो रहा है, आप यह कर दीजिये; वह कर दीजिये।”

अब हिंदुस्तान में कितने ही हैं। लोग आते हैं अपनी समस्या लेकर आते हैं, हॉल भर जाते हैं — “समस्या है जी, हमारी यह समस्या है, हमारा यह नहीं हो रहा है, हमारा बिज़नेस दस साल पहले हमने एक बिजनेस खोला था वह सक्सेसफुल नहीं हो रहा है, हम क्या करें ?” हां बच्चा! तुम जाओ, पीछे जाओ तुमको एक भूरा कुत्ता मिलेगा उसको सैंडविच खिला देना।” कुत्ते को सैंडविच ? कुत्ता कहाँ से सैंडविच — कुत्ता प्रकृति में कहाँ से लाएगा सैंडविच ? प्रकृति में क्या खाने का प्रबंध है उसके लिए ? उसके लिए वह वही खाएगा जो उसके लिए प्रबंध है — मांस खाने वाला है वह। पर उसको क्या खिला दो ? सैंडविच खिला दो। कमाल है। एक तो उसकी तबीयत खराब होगी और आप समझते हैं कि उसको सैंडविच खिलाने से आपका बिज़नेस चल जाएगा। ऐसा बिज़नेस होना चाहिए आपका कि कुत्ते को, कुत्ते को सैंडविच खिलाओ! लोगों को बेवकूफ बनाया जाता है, लोग बेवकूफ बनने के लिए तैयार हैं। जो असली बात है कि तुम्हारे अंदर यह स्वांस है आ रहा है, जा रहा है, इसको समझो। यह बात जो मैं कह रहा हूँ, यह बहुत पुरानी बात है।

नर तन भव बारिधि कहुँ बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो॥

“इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है” — ये कहते हैं भगवान।

यह नर तन भवसागर से पार होने का तरीका है, सैंडविच खिलाने का नहीं।

“अजी हमारी शादी नहीं हो रही है!”

अब शादी नहीं हो रही है तो नहीं हो रही है। क्या कर लोगे ? जबरदस्ती तो कर नहीं सकते। और जिनकी हो गई है उनसे पूछो कि तुम कितने भाग्यशाली हो! मज़ाक-मज़ाक में ये बात भी आ जाती है। तो चढ़ती क्यों नहीं है यह फिर ? समझ में आई तो जरूर, पर चढ़ती नहीं है। क्यों ? क्योंकि हजारों बहाने बना रखें हैं — “अजी! हमारे पास टाइम नहीं है।” तुम्हारे पास टाइम नहीं है, तो फिर टाइम का मतलब क्या हुआ तुम्हारी जिंदगी के अंदर! जो चीज जरूरी है जब तुम्हारे पास उसी के लिए टाइम नहीं है, तो फिर तुम्हारे पास टाइम हो या न हो उसका फायदा क्या है! भाई, तुम जीवित हो, तुम अपने जीवन में निर्णय ले सकते हो, जबतक तुम जीवित हो अपने जीवन में तुम निर्णय ले सकते हो। क्या निर्णय लिया है तुमने ? क्या निर्णय लिया है कि तुम उस चीज को समझोगे! इस हृदय को तुम आनंद से, असली आनंद से भरोगे या नहीं या अपनी जेब भरना चाहते हो ? मैं नहीं कह रहा हूं कि तुमको जेब नहीं भरनी चाहिए, परन्तु एक बात याद रखो अपनी जेब के बारे में उसको चाहे तुम कितना भी भर लो इतना भर लो, इतना भर लो, इतना भर लो कि पूछो मत, परन्तु उसमें से एक पैसा, आधा पैसा, चौथाई पैसा भी तुम अपने साथ नहीं ले जा सकोगे।

तुम एक ही चीज अपने साथ ले जा सकोगे और वह है आनंद। जब मनुष्य अपने जीवन के अंदर उस आनंद से भर जाता है, तो उसकी सारी जिंदगी बदल जाती है। उसके लिए सबकुछ सक्सेसफुल है। वह जब देखता है अपनी जिंदगी को और इस संसार को देखता है तो उसको और यह लगता है कि मैं कितना भाग्यशाली हूँ। वह किसी का बुरा नहीं चाहता। कई बार मेरे को यही बात याद आती है कि —

कबीरा खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर,

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।

समाज में कैसे रहना चाहिए ? इस तरीके से रहना चाहिए। ये सोशल मीडिया वाले जितने भी हैं, अगर ये पूछना चाहते हैं कभी कि कैसे मनुष्य को रहना चाहिए इस संसार के अंदर और सोशल मीडिया के बारे में क्या राय है आपकी ? तो मैं यह कहूंगा कि —

कबीरा खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर,

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।

कर लो यह। सोशल मीडिया में या तो दोस्ती होगी या बैर होगा। वो कह रहे हैं कि खड़ा हूँ मैं सब ठीक है। “कबीरा खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर” — मैं चाहता हूँ कि सब ठीक रहें, सब अच्छा हो, सबके लिए अच्छा हो। सिर्फ यह नहीं कि मेरे दोस्तों के लिए अच्छा हो, यह नहीं कि मेरी पार्टी के लिए अच्छा हो या ये नहीं कि “यह होना चाहिए इसी में मेरा फायदा है।” नहीं! वो, वो फायदा, वो देखो जिसमें सबका फायदा है।

अगर सचमुच में संसार ऐसा होता तो आज जो गरीबी की समस्याएं हैं, क्या ये कभी होती ? ना! सब अपनी जेब भरने में लगे हुए हैं और किसी से मतलब ही नहीं है। दिखावे का सब दान करते हैं — “हम दे रहे हैं जी।” देना है तो वो दो जिससे सचमुच में हृदय प्रसन्न होता है। छोटा बच्चा है, साल भर का है, दो साल का है उसको दे दो, तीन-चार हजार रुपए उसको दे दो, कोई मतलब नहीं है उसको। कोई मतलब नहीं है। प्यार दो, आनंद दो — खुश!

अभी हाल में मैं अपनी पोती के साथ खेल रहा था, तो वह वहां नहीं रहती जहां मैं रहता हूं। तो गया था मैं देखने के लिए कि सब ठीक-ठाक है। तो वह आई और थोड़ा-थोड़ा उसको याद था कि मैं कौन हूँ। वह आई और हमने खेलना शुरू किया, प्यार दिया, समय दिया, खुश हो गई। और फिर जहां मैं जाऊं पापा, पापा, पापा, पापा, पापा, करके मेरे पीछे पड़ी हुई।

क्यों ? यही तो चीजें हम भूल जाते हैं कि हम अपने जीवन में उस प्रेम का, उस सच्चाई का, उस आनंद का एक स्रोत बन सकते हैं और बन क्या सकते हैं बल्कि हम तो हैं। हैं! परन्तु हम समझते नहीं हैं कि हम हैं। हम खड़े हैं बाजार में हमको यह नहीं मालूम कि सबकी खैर कैसे मांगे। हां, तो खड़े हैं बाजार में तो क्या करना पड़ता है ? “हेलो, हेलो, हेलो, यह है, वह है, हाथ हिलाओ, यह करो, वह करो, कैसे हो, ठीक हो, अच्छे हो, यह है, वह है” पर — सबकी मांगे खैर, ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।

नदी को देखो चलती है, चलती है, चलती है, चलती है, चलती है। अभी मैं सोचता हूं कि कितने ही लोग हैं हिंदुस्तान में जो छुआछूत को मानते हैं, “तुम हमारी कैटगरी के नहीं हो” — जात-पात का अंतर है, तो मैं जात-पात का अंतर तब मानूं जब नीची जाति वाला गंगा के पास जाए और गंगा रुक जाए कि “यह नहीं आ सकता।” जब गंगा मना नहीं कर रही है, तो हम लोग मना क्यों करते हैं! और यही सबकुछ लेकर डूबेगा। जब मनुष्य मनुष्य के साथ नहीं रह सकता, तो वह प्रकृति के साथ कैसे रहेगा! और अगर प्रकृति के साथ वह नहीं रह सकता है, तो एक बात मनुष्य को याद होनी चाहिए, हमेशा याद होनी चाहिए कि प्रकृति मनुष्य से बड़ी है।

आपको शक हो रहा है कि मैं जो कह रहा हूं वह गलत है! कोरोना वायरस से क्या किया ? आंख से तो देख नहीं सकते उसको, उसके लिए माइक्रोस्कोप चाहिए इतना छोटा है वह, इतनी छोटी-सी वायरस है, जिन्दा भी नहीं है और सारे संसार को हाथ पर बिठा दिया। कैसे हो गया ये ? क्योंकि वह प्रकृति है और वह मनुष्य से बड़ी है। प्रकृति के साथ रहेगा कैसे जब वह अपने साथ नहीं रह सकता है।

लोग हैं, गवर्नमेंट कहती है “भाई! अपने घर में रहो, मास्क पहनो, हाथ धोओ।” “नहीं, हम तो जाएंगे, बाहर जाएंगे, हमको मास्क नहीं पहनना है, हमको यह नहीं करना है, हमको वह नहीं करना है।” क्यों ? कच्छा नहीं पहनते हो, कपड़े नहीं पहनते हो, बनियान नहीं पहनते हो! यह तो सिर्फ तुम्हारी भलाई के लिए ही है। तुम्हारी भलाई के लिए है पहनो और सुरक्षित रहो। परंतु लोगों के लिए यह नहीं है, “हमको यह करना है, हमको वह करना है, ऐसा ये होना चाहिए, ऐसा वो होना चाहिए।”

खैर! मैं न तो गवर्नमेंट हूँ, न मैं कोई पॉलीटिकल पार्टी हूँ। मैं तो इतना ही जानता हूं कि —

“नर तन भव बारिधि कहुँ बेरो” — यह इस भवसागर से पार उतरने का साधन है।

“सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो” — इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है।

इतना मैंने समझा है, इतना मैंने समझा है। और यह भी है —

“करूणधार सद्गुरु दृढ नावा, दुर्लभ काज सरल करी पावा” — ऐसे सद्गुरु की जरूरत है जो खेकर के इस नौका को इस भवसागर के पार उतार दें। बस! बस।

तो यह मैं कहना चाहता था। सभी लोग सुरक्षित रहें, कुशल-मंगल रहें यही मेरी आशा है। और सबसे बड़ी चीज चाहे कैसा भी माहौल हो आनंद से यह समय भी गुजारें।

सभी को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!