लॉकडाउन प्रेम रावत जी के साथ #9 (1 अप्रैल, 2020) – Hindi

प्रेम रावत जी:

सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

आज के दिन जो मैं कहना चाहता हूं वह यही है कि वैसे तो काफी दिन निकल गए हैं और लॉकडाउन के लिए तो अभी थोड़े दिन और बाकी हैं। और मेरे को तो यही आशा है कि सभी लोग जो हैं जो यह समय बिताने की कोशिश कर रहे हैं सबका समय अच्छी तरीके से बीत रहा है। कुछ समझ रहे है, यही नहीं है कि परिस्थिति पर गुस्सा हो गए और सब काम ठीक हो जाएगा। गुस्सा होने से कुछ नहीं होगा यह समझने की बात है।

एक किस्म से अगर देखा जाए तो जो कुछ भी अब यहां हो रहा है आपके जीवन में, लॉकडाउन में, कहीं जा नहीं सकते, तो यह जीवन का भी एक ऐसा ही दृश्य है, क्योंकि आपको इन परिस्थितियों में सीखना पड़ेगा कि आप अपने साथ कैसे रहें। आप और लोगों के साथ कैसे रहेंगे यह तो आपको अच्छी तरीके से मालूम है। जब दोस्त होते हैं तो दोस्तों के पास चले गए गपशप मारी, इसकी बात की, उसकी बात की, यह बात की, वह बात की, घर आ गए। कोई अपने बच्चों के साथ है तो, बच्चों से ये बात की, वो बात की। फिर वह सब अपने कमरे में गए और आप अपने कमरे में गए। इन परिस्थिति में आपको अपने साथ कैसे रहना है यह सीखना पड़ेगा। क्या आप और चीजों में व्यस्त हो करके अपने आप को खो देते हैं ? लोग अधिकतर यही करते हैं।

देखिये तीन प्रकार के लोग हैं। एक, वह जो किसी चीज का ख्याल नहीं करते हैं । एक, वह जो सारे समाज का ख्याल करते हैं लोग क्या कहेंगे, ऐसा करना है, ऐसा करना है, ऐसा करना है। और एक इस प्रकार के लोग जिनको कि इस सारे समाज से कुछ लेना-देना नहीं है, सन्यासी! और कबीरदास जी भी बात करते हैं इनकी कि —

जल बिच कमल, कमल बिच कलियां, जा में भंवर लुभासी।

सो मन तिरलोक भयो सब, यती सती संन्यासी।।

इसमें तीनों प्रकार के आ गए। जो सबकुछ — जो समाज कहता है, समाज के अनुकूल करते हैं और कुछ लोग हैं जो कहते हैं “नहीं मेरे को समाज से कुछ मतलब नहीं है।” जैसे ब्रह्मानंद जी का भी एक भजन है कि —

मुझे है काम ईश्वर से जगत रूठे तो रूठन दे

जगत से कुछ काम नहीं है, कुछ मतलब नहीं है। और एक, वह जो कुछ कहा जाता है उसका उल्टा, उसके विपरीत करते हैं। इसमें यति में — दानव आ गए, यह सब कुछ आ गए। मतलब, जिनका जंगल रूल (rule) है, वह उस तरीके से काम करते हैं। आप कोई भी हों आपको इस संसार के अंदर भी रहना है, परन्तु सबसे बड़ी बात है कि आप अपने साथ अगर नहीं रह सकते हैं, तो आपने कुछ जाना नहीं, आपने कुछ सीखा नहीं, आपने कुछ समझा नहीं। और यही बात है अपने आपको जानने की, अपने आपको समझने की, क्योंकि जब मनुष्य को कहा जाता है कि “तुम धीरज रखो”, तो जो धीरज रखने वाले हैं ठीक है उनके लिए अच्छी बात है “धीरज रखो”, परन्तु कई लोग ऐसे हैं जिनको यह मालूम नहीं है कि धीरज कैसे रखा जाए!

देखो! हम बड़ी आसानी — बड़ी आसान बात है कि हम हर एक चीज को कंट्रोल करना चाहते हैं ताकि वही हो जो हम चाहते हैं और जो हम नहीं चाहते हैं वह न हो। और सोक्रेटीज़ का भी एक quote है कि — “हम तब खुश नहीं होते हैं, जब जो हम चाहते हैं वह न हो और वह यह भी कहते हैं कि हम तब भी खुश नहीं होते हैं, जब जो हम चाहते हैं वह होता है तब भी हम खुश नहीं होते हैं।” क्योंकि वह वैसा नहीं रहता है वह बदल जाता है समय के साथ, तो हम चाहते हैं कि हम खुश हों, हम चाहते हैं कि कोई चीज बदले ना और प्रकृति की — प्रकृति का कानून यह है कि हर एक चीज बदलेगी तुम्हारा चेहरा बदलेगा, तुम्हारा शरीर बदलेगा, तुम क्या खाते हो यह बदलेगा, तुम किस चीज को पसंद करते हो यह बदलेगा, तुम्हारा परिवार बदलेगा। जब बच्चे छोटे-छोटे होते हैं सबको अच्छा लगता है, पर फिर धीरे-धीरे-धीरे-धीरे जब बड़े होते हैं और बड़े होकर फिर कोई अपनी तरफ चाहता है, कोई इधर जाता है, कोई किधर जाता है। यह भी सब बदलेगा। इसको तुम काबू इस पर कर नहीं सकते हो, इसको तुम अपनी जेब में नहीं रख सकते हो, ये सारी चीजें बदलने वाली हैं।

अब जो बदलाव आया है, यह बदलाव यह है, बड़ी साधारण सी बात है कि — तुम और लोगों से दूर रहो, और लोगों से दूर रहो ताकि अगर किसी को वह कोरोना वायरस की बीमारी है तो वह तुमको ना लगे। इससे साफ बात क्या हो सकती है, इससे साधारण बात क्या हो सकती! परन्तु यह इतनी साधारण बात नहीं है। क्यों नहीं है ? क्योंकि लोग जब लॉकअप में हैं तब क्या करें, करने के लिए क्या है। कोई कुछ करने की कोशिश कर रहा है, कोई कुछ करने की कोशिश कर रहा है, बोर्डम आने लगती है। ये सारी बातें होने लगती हैं। पर बात दरअसल में वही है न, काबू में सारी चीजें हों, जैसे आप चाहते हैं वैसे ही सारी चीजें हों। आप जो नहीं चाहते हैं वह ना हो। किसी चीज को चाहने से वह चीज आपके चाहत के अनुकूल हो यह तो किसी चीज को नहीं मालूम। चिड़िया है, चिड़िया उड़ती है। अब चिड़िया को अगर कोई चाहता है कि “नहीं, तू वही रहे।” वह तो नहीं रहेगी उसको — वह जो करना चाहती है, वह करना चाहती है, क्या वह आपकी इच्छा के अनुकूल होगा ? आपको नहीं मालूम हो या ना हो।

कोई किसान है वह बीज बोता है, वह चाहता है कि “यह बीज जल्दी-जल्दी उगे।” वह उगेंगे, तब उगेंगे जब वो जैसा चाहते हैं। जब ऋतु आएगी तब फल होगा। यही तो है न बात कि —

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,

माली सींचे सौ घड़ा, जब ॠतु तब फल होय।

उसके बाद नहीं, उसके पहले नहीं ‘जब ऋतु तब फल होय।’ और इस समय इस बात की बहुत ज्यादा कीमत है, इंपोर्टेंस (importance) है कि आप अपने जीवन में इस बात को सीखें कि सब्र क्या होता है! सब्र करने में भी जो आनंद ले लेता है उसके लिए सबकुछ है, जो सब्र में आनंद नहीं ले सकता उसके लिए कुछ नहीं है। किसी भी परिस्थिति में जो उस परिस्थिति में से आनंद ले सकता है —

देखिये! शांति की बात करते हैं, तो अगर कोई यह कहे कि “भाई तुम जेल चले जाओ, जेल में तुमको शांति मिलेगी” तो लोग कहेंगे यह तो संभव नहीं है आप गलत कह रहे हैं। परन्तु एक व्यक्ति था साउथ अफ्रीका में तो वह पीस एजुकेशन प्रोग्राम कर रहा था। जब मेरे को सुन रहा था वह — तो मैं जब बात करता हूं उनलोगों से तो मैं उनके स्वांस की बात करता हूँ कि तुम्हारे अंदर स्वांस आ रहा है, जा रहा है। तो वह एक दिन, उसने सोचा कि मैं जाऊंगा अपने कमरे में, जब जाऊँगा अपने लॉकअप में, जब जाऊँगा, तो मैं जानना चाहता हूँ कि यह स्वांस क्या है! तो वह लेट गया — तो वह किसी को बता रहा था कि वह लेट गया और वह अपने स्वांस के ऊपर उसका ध्यान गया — अंदर आ रहा है, जा रहा है, अंदर आ रहा है, जा रहा है। उसका ध्यान स्वांस के ऊपर गया। तो वह कहता है कि वैसे तो उसके कमरे में — और कमरा ही क्या, क्या कमरा है, उसमें सलाखें लगी हुईं थी। जेल थी वह। मेरे को ऐसा भी नहीं लगता कि उसका जो बैड था, पलंग था वह कोई अच्छा पलंग था या सॉफ्ट था या कम्फर्टेबल (comfortable) था, आरामदायक था। नहीं! जेल में तो यह सारी चीजें उपलब्ध नहीं होती हैं, परन्तु वह वहां लेटा हुआ और अपने स्वांस के ऊपर उसका ध्यान गया। और जब स्वांस के ऊपर उसका ध्यान गया, तो वह कहता है कि मेरे को शांति का अनुभव होने लगा और धीरे-धीरे-धीरे-धीरे-धीरे मैं उस शांति के अनुभव को करता चला गया और इतनी शांति हुई, इतनी शांति हुई, इतनी शांति का अनुभव किया कि मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि मेरे अंदर इतनी शांति होगी। यह कैसे संभव हुआ ? यह जेल में संभव हुआ ? जेल में एक व्यक्ति शांति का एहसास कर रहा है यह कैसे कैसे संभव है ?

मेरा कहने का मतलब यही है कि कोई भी परिस्थिति हो उस परिस्थिति में से आप उस मूल चीज को ले सकते हैं। कोई भी चीज हो, कोई भी बात हो रही हो। वह स्वांस जबतक आपके अंदर आ रहा है, जा रहा है तब तक उस शांति का अनुभव आप कर सकते हैं। अब शांति का मतलब क्या है ? कई लोगों के लिए तो शांति का मतलब है कि बाहर अगर ज्यादा आवाज है, तो वह आवाज खत्म हो गई तो अब शांत हो गया। वह शांति नहीं है, वह शांति नहीं है, वह आवाज कम हो गई। यह है वो, आवाज कम हो गई। कहीं जाते हैं जंगल है वहां पर झिंगुर चें-चें कर रहे हैं तो लोगों को लगता कि बड़ी शांति है। नहीं! वह झींगुर की आवाज है। तो शांति क्या है ? शांति वह चीज है जो आपका हृदय आपको बताएगा कि हां यह शांति है। जब शांति का अहसास होगा तब। असली शांति वह है, वह परिभाषा में नहीं पड़ती। जैसे मीठा क्या है! उसकी कोई परिभाषा नहीं है। जब मीठा आप खाते हैं, आपको जब वह एहसास होता है आप कहते हैं “हां! यह मीठा है।”

अब यह बात नहीं है कि — एक बार मैं एक उदाहरण देता हूँ — एक बार मुंबई में मेरे को किसी आदमी ने बुलाया अपने घर में खाने के लिए। तो मेरे को यह लगा कि खाना बड़ा अच्छा बनेगा, तो मैंने नाश्ता भी ज्यादा नहीं किया। दोपहर में खाना था, दोपहर में हम गए। भूख खूब लगी हुई थी, खूब भूख लगी हुई थी। और यह मैं चाहता था कि खाना — मेरे को यह एहसास हुआ कि खाना अच्छा बनेगा। तो मैं गया। जब खाना आया तो सच में बहुत सुंदर और तरह-तरह के पकवान बने हुए और सबकुछ बहुत बढ़िया बना हुआ। मैं बहुत छोटा था उस समय। तो मेरे को लगा यह तो बहुत बढ़िया हो गया। जैसे ही मैंने पहला खाना थोड़ा सा लिया और अपने मुंह में रखा, मीठा! तो मेरे को लगा कि यह कैसे संभव है ? मैंने दाल थी, वह मुँह में डाली, वह भी मीठी। सब्जी बनी हुई थी, वह भी मुंह में डाली, वह भी मीठी। सारी चीजें देख करके — मतलब मन में तो यह धारणा थी कि सबकुछ नमकीन होगा। क्योंकि उससे पहले मैंने ऐसा मीठा खाना कभी खाया नहीं था कि सब चीजों में मिठास। ऐसा कभी खाया नहीं था। जो भी घर में मिलता था खाना, वह सब नमकीन होता था।

तो जब वह मीठा उसका एहसास हुआ तो यह बात नहीं है कि “नहीं यह मीठा हो नहीं सकता।” मैं जिस चीज का एहसास कर रहा हूं वह गलत है, नहीं! मीठा, मीठा है। नमकीन, नमकीन है। उसमें यह बात नहीं है कि मेरी जो धारणा है वह अलग है और यह इसका स्वाद अलग है। कोई भी धारणा हो, कोई भी — यह बनाई हुई है कि “भाई! यह नमकीन खाना है, यह मीठा खाना है।” पर अगर उसमें नमक पड़ा हुआ तो वह नमकीन होगा और चीनी पड़ी हुई है तो वह मीठा होगा। और जब वह मुंह में जाएगा तो मुँह थोड़ी यह कहेगा कि “भाई! नहीं तुम तो सोच रहे थे कि नमकीन है तो मैं इसको नमकीन बना देता हूं।” मुँह या जो जुबान है, वह जो चखने की उसमें गुंजाईश है, ताकत है वह खाने को मीठा या नमकीन नहीं बनाती है वह तो सिर्फ बताती है कि यह मीठा है या नमकीन है। जो चखने से पता लगता है कि यह मीठा है या नमकीन है।

ठीक इसी प्रकार शांति भी ऐसे ही है। जब शांति होती है तब मनुष्य कह सकता कि “हां! मेरे को इस शांति का अनुभव है।” और जब नहीं होती है तब मन अशांत रहता है। कहीं इधर भाग रहा है, कभी उधर भाग रहा है। परन्तु सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह तो चक्कर ऐसा हो जाता है कि इतना मन भागता है, इतना मन भागता है, इतना मन भागता है और सारे दिन, सारी रात भागता रहता है कि लोगों को यह नॉर्मल हो गया है, यह नॉर्मल हो गया है। और अब जो स्थिति हुई है आपको अपने साथ रहना है, अकेले में रहना है वह सारी चीजें, जो इधर भागते थे, उधर भागते थे, यह सब खत्म। तो अब क्या करोगे ? अब लगता है कि अब नॉर्मल है, ठीक नहीं है। परन्तु भाई! तुम हो और तुम्हारे में यह ताकत है धीरज से, प्रेम से, प्यार से अपने हृदय के अंदर जो आपके अंदर शांति है उसका अनुभव कीजिए और इस परिस्थिति में भी आनंद लीजिए। आनंद आप इस परिस्थिति में भी ले सकते हैं।

तो सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!