लॉकडाउन प्रेम रावत जी के साथ, #58 (5 जून)

“एक-एक कदम अगर हम सोचकर, समझकर आगे रखेंगे तो इस जीवन में जिम्मेवारियों के होते हुए भी, समस्याओं के होते हुए भी हमको आनंद मिलेगा।” —प्रेम रावत जी

प्रेम रावत जी “पीस एजुकेशन प्रोग्राम” कार्यशालाओं की वीडियो श्रृंखला को आप तक प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहे हैं। इस दौरान हम उनके कुछ बेहतरीन कार्यक्रमों से निर्मित लॉकडाउन वीडियो आप के लिए प्रसारित करेंगे।

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प्रेम रावत जी:

हमारे सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

आज फिर मौका मिला है आपलोगों के साथ बात करने का। मेरे को जो खबर मिली है उसके अनुसार बहुत ही शीघ्र हिंदुस्तान में जो लॉकडाउन है वह इज अप होगा, थोड़ी-सी उसमें स्वतंत्रता मिलेगी। और धीरे-धीरे फिर इसको और बढ़ाया जाएगा। तो यह तो एक किस्म से खुशखबरी भी है, परंतु यह एक गंभीर बात भी है और गंभीर इसलिए है, क्योंकि अब कन्टैमनैशन के जो चांसेज हैं, जो संभावना है कन्टैमनैशन होने की, वह और भी बढ़ गई है। और जैसे-जैसे लोग आपस में मिलेंगे, रेस्टोरेंट्स में जाएंगे, मंदिरों में जाएंगे, जहां भी जाएंगे तो यह कन्टैमनैशन जो है, यह जो महामारी की बीमारी है यह और फैलेगी। क्योंकि लोग जो नहीं जानते हैं कि वह इसको अपने साथ ले जा रहे हैं इन जगहों में, तो उनके साथ यह मतलब — कोई यह जानबूझकर नहीं करेगा, परंतु गलती से यह सबकुछ संभव है।

तो हम इसके बारे में क्या करें ? एक तो वही बात आती है कि — एक तो जितना संभव हो सके उतना मास्क पहनिये और वही दो बातें — “एक किसी को दो मत और एक किसी से लो मत!” तो वही अगर थोड़ा-सा आप ध्यान रखें उसमें तो ठीक है, सबकुछ ठीक रहेगा। परन्तु सबसे बड़ी बात है कि जो यह है, जो मन है इसको कैसे समझायें ? क्योंकि इसमें तो सारी वहीं फीलिंग्स आती हैं। उसमें डर भी है, उसमें ये सारी चीजें हैं कि “अब मेरा क्या होगा, यह नहीं होना चाहिए, यह नहीं होना चाहिए।” और कहीं किसी ने छींक भी दिया तो गड़बड़ हो जायेगी। क्योंकि फिर वही विचार आने लगेंगे।

अभी मैं पढ़ रहा था कुछ लोगों के प्रश्न, तो उसमें कई लोग हैं कि “भाई! हम जब बैठते हैं तो हमारे विचार इधर-उधर भागते हैं।” कभी इस तरफ भागता है, कभी उस तरफ भागता है। अब सबसे बड़ी बात यह है कि यह जो मन की प्रकृति है इधर-उधर भागने की, यह तो तब भी है जब सबकुछ यह महामारी नहीं थी। कबीर दास जी इसके बारे में कहते हैं। उसके बारे में मैंने काफी कहा भी है, तो ये सारे झंझट तो हमेशा मन के चलते ही रहते हैं। बात यह है कि यह जो रेलगाड़ी है, यह जो गाड़ी है इसकी एक संभावना यह है कि यह ऐसे रास्ते से गुजरेगी जिसमें गड्ढे बहुत हैं, ऊपर-नीचे होगा और जो भी उस गाड़ी में बैठा हुआ है उसको अच्छा नहीं लगेगा, क्योंकि सारी चीजें हिलेंगी। बात यह है कि यह जो मन की गाड़ी है क्या आपको इसमें बैठना ही है, क्या यह जरूरी है या आपको इसमें नहीं बैठना है ? खड़े हैं — बगल में खड़े हैं गाड़ी आ रही है, जा रही है, ठीक है कोई बात नहीं।

यह प्रश्न — आपको इसका उत्तर देना है कि आप अपने जीवन में क्या चाहते हैं ? क्योंकि दुनिया है और दुनिया लगी हुई है “कोई कुछ कह रहा है; कोई कुछ कह रहा है; कोई कुछ कह रहा है; कोई कुछ कह रहा है” और लोगों को दिक्कत हो रही है। कुछ लोगों की बात सुन रहे हैं लोग — “यह उसने कैसे कह दिया, यह उसने कैसे कह दिया, यह उसने कैसे कह दिया।” भाई! कह दिया उसका मुंह है। अब जैसे आप बोलते हैं, वैसे उसने बोल दिया। इसका यह मतलब थोड़े ही है कि उसने वह सोचा या विचारा कि “मेरे को क्या कहना चाहिए!” कई लोग हैं जो मुँह खोलते हैं और कुछ भी बक देते हैं। परन्तु क्या यही मनुष्य की सबसे अच्छी चीजें हैं मनुष्य के अंदर ? जो कुछ भी बढ़ियापन है मनुष्य का वह क्या है ? खो जाना चीजों में या अपने जीवन के अंदर उस चीज के बारे में चिंता करना जैसे कहा है कि —

“चिंता तो सतनाम की और न चितवे दास” — उसके बारे में मैं बहुत सोचता हूँ, क्योंकि हर एक चीज की चिंता होती है — “कभी यह करना है, कभी यह करना है, कभी यह करना है, कभी यह करना है।” परंतु चिंता किस चीज की होनी चाहिए ? चिंता होनी चाहिए कि यह मेरा जो शरीर है जबतक मैं यहां जीवित हूं मेरा समय बेकार न जाए। जो कुछ भी मेरे को करना है — पहले तो यह मालूम करना चाहिए अपनी जिंदगी के अंदर कि करना क्या है! कौन-सी ऐसी चीज है जो करनी चाहिए! दुनिया के लोग बताते हैं कि “यह करना चाहिए; वह करना चाहिए; ऐसा होना चाहिए; ऐसा होना चाहिए” उसके पीछे हम लग जाते हैं। परन्तु इसके लिए आपको मनुष्य शरीर नहीं मिला है। मनुष्य शरीर किसी और चीज के लिए मिला है। क्या ? “साधन धाम मोक्ष कर द्वारा” — यह साधना का धाम है, मोक्ष का दरवाजा है — इसके लिए आपको यह शरीर मिला है। इसके लिए नहीं कि हम यह कर लेंगे, हम ये चला लेंगे!” हवाई जहाज मैं भी चलाता हूं पर मेरे को अच्छी तरीके से मालूम है कि हवाई जहाज चलाने के लिए मेरे को यह मनुष्य शरीर नहीं मिला है।

अभी कुछ ही दिन पहले 40 साल हो गए मेरे को हवाई जहाज उड़ाते हुए। मेरे को तो याद भी नहीं कि कब मैंने चालू किया। किसी ने कहा कि “आपको बहुत-बहुत मुबारक हो 40 साल हो गए!” मैंने कहा, “बड़ी अच्छी बात है।” परन्तु जो सारी चीजें मैं करता हूँ, “कभी ये हो रहा है, कभी ये हो रहा है, कभी ये हो रहा है” — यह मेरे को अच्छी तरीके से मालूम है कि इसलिए मेरे को यह मनुष्य शरीर नहीं मिला है। करता हूं मैं ये सारी चीजें जो करनी हैं, जो मेरी जिम्मेवारियां हैं उनको मैं पूरी करता हूं, परंतु मेरे को अच्छी तरीके से यह ज्ञान है कि मेरे को मनुष्य शरीर इसलिए मिला है कि मैं वह साधना करूं और अपने समय को, अपने शरीर को यह जो मेरे को मौका मिला है इसको मैं सफल करूं। कई लोग हैं जो यह कहते हैं इसका क्या मतलब हुआ जी ? इसका मतलब हमको ये नहीं करना चाहिए, हमको वो नहीं करना चाहिए।

नहीं! बात यह नहीं है कि आपको ये नहीं करना चाहिए, वो नहीं करना चाहिए। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप अपनी सारी जिम्मेवारियों को छोड़ दीजिए। अगर आपके बच्चे हैं आपकी वो जिम्मेवारियां हैं। परन्तु इन जिम्मेवारियों के होते हुए भी उस जिम्मेवारी को भी समझिये जो जिम्मेवारी है। जिसके लिए आपको यह मनुष्य शरीर मिला है। यह ज्यादा दिन के लिए नहीं है। ये सारी चीजें जो हो रही हैं इससे आप विचलित नहीं होइए, क्योंकि यह सचमुच में मनुष्य को बेचैन बनाने वाली चीजें हैं। जिससे मनुष्य बेचैन होता है, चैन नहीं है। और आपको चाहिए चैन और वह चैन कहां है ? वह आपके अंदर है। जो शक्तियां आपके पास हैं आप उनको भूल जाते हैं। भ्रमित होने का सबसे बड़ा कारण मनुष्य का यही है कि जो वह जानता है उसी चीज को वह भूल जाता है। उसी चीज को वह भूल जाता है। जब भूल जाता है तो उसको यह समझ में नहीं आता अब मैं क्या करूं ? किस तरफ जाऊं ? मेरे साथ क्या होगा ? तो सचमुच में एक-एक कदम — अगर हम अपनी जिंदगी के अंदर एक-एक कदम देखकर चलें। यह नहीं है कि पीछे से हमको लोग धक्का मार रहे हैं भेड़ की तरह हम भी चल रहे हैं। परंतु सचेत होकर के यह जानकर के कि “यह मेरी जिंदगी है, यह मुझे मिली है, एक-एक कदम अगर हम सोचकर, समझकर के आगे रखेंगे तो हमको इस जीवन के अंदर जीने में जिम्मेवारियों के होते हुए भी, समस्याओं के होते हुए भी हमको आनंद मिलेगा।

कैसा आनंद ? वैसा आनंद जब मनुष्य समझता है कि यह जो आवाज आ रही है जिससे कि मैं विचलित हो रहा हूं। ये जो समस्याएं आ रही हैं जिससे मैं विचलित हो रहा हूं, मेरे को विचलित होने की जरूरत नहीं है अर्थात ये समस्याएं भी चली जाएंगी। फिर नई वाली आएंगी, पुरानी वाली जाएंगी, फिर नई वाली आएंगी। आप अपने जीवन को देख सकते हैं, जो समस्याएं आपके पास तब थीं जब आप 5 साल के, 6 साल के, 7 साल के थे, अब वह समस्याएं नहीं हैं। अब दूसरी तरह की समस्याएं हैं और ये भी चली जायेंगी। फिर नयी समस्याएं आएंगी, वो भी चली जायेंगी। फिर दूसरी किस्म की समस्याएं आएगीं, वो भी चली जाएंगी। अर्थात आप यह जानकर के चलिए कि इन समस्याओं का आना-जाना लगा रहेगा। आपको विचलित होने की जरूरत नहीं है; आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। और एक चीज का और आना-जाना रहेगा। क्या है वो चीज ? और जबतक उस चीज का आना-जाना है — देखिये समस्याएं आयीं और चली गयीं; आयीं और चली गयीं। कुछ समस्याओं पर आपने ध्यान दिया, कुछ समस्याओं के कारण आप बहुत परेशान हुए, समय आया वह भी चली गयीं।

परन्तु एक है चीज, जो आपके अंदर आ रही है और जा रही है। जबतक वह आ रही है और जा रही है और आ रही है और जा रही है और आ रही है और जा रही है तबतक सबकुछ ठीक है — सबकुछ ठीक है अर्थात सबकुछ ठीक है। परन्तु जिस दिन वह नहीं आएगी उस दिन सबसे बड़ी समस्या आपके पास होगी, परंतु उस समस्या का कोई भी हल आपके पास नहीं होगा। और वह ऐसी समस्या होगी कि आपको खुद ही वह अपने साथ ले जाएगी, जो कहते हैं कि मनुष्य चला जायेगा। बात जाने की नहीं है, बात उस समस्याओं की नहीं है, बात है उस स्वांस को स्वीकार करने की, उस चीज को समझने की जो आपके अंदर है। आप जानें उस चीज को, आप पहचानें उस चीज को कि वह चीज क्या है ? और जबतक आपका ध्यान उसमें है, तबतक आपके जीवन में आनंद है। जब ध्यान उस चीज से हट जाएगा तो फिर वह मन जो है सब जगह भ्रमण करने लगता है — कभी कहीं जाता है, कभी कहीं जाता है, कभी कहीं जाता है, कभी कहीं जाता है।

समझने की बात है कि जिन दुखों से आप भाग रहे हैं, ये दुःख भी जा रहे हैं — आ रहे हैं, जा रहे हैं, आ रहे हैं, जा रहे हैं, आ रहे हैं, जा रहे हैं। जैसे नदी का पानी आता है, जाता है, बहता है। समुद्र की लहरें आती हैं, जाती हैं, आती हैं, जाती हैं। हवा के झोंके में पेड़ झूलते हैं कभी इधर जाते हैं, कभी उधर जाते हैं, कभी इधर जाते हैं, कभी उधर जाते हैं। ये सबकुछ होता रहता है। परंतु आपकी लहर, सबसे बड़ी लहर इस स्वांस की है, जो आपके अंदर आ रहा है, जा रहा है। मनुष्य जब इस संसार को देखता है तो बहुत भ्रमित होता है। कितने ही प्रश्न मेरे पास हैं — “अरे यह गलत हो रहा है, यह ठीक नहीं हो रहा है, ये ठीक नहीं हो रहा है मेरे साथ, ये ठीक नहीं हो रहा है, मेरे साथ यह जुर्म हो रहा है, और लोग कर रहे हैं।” बात जुर्म की नहीं है, बात और क्या कर रहे हैं इससे आपका क्या मतलब है ? सबसे बड़ी बात है आप क्या कर रहे हैं!

मैं एक उदाहरण देता हूं आपको। कई लोग हैं जो कहते हैं, “जी उसने ये कर दिया, उसने वो कर दिया, उसने वो कर दिया, उसने वो कर दिया।” ठीक है! मैं उदाहरण देता हूं कि आपके घर के पास एक गली है। हैं जी? और उस गली में दो मंजिल के मकान हैं। ऊपर एक कोई रहता है और 9 बजे, ठीक 9 बजे, ठीक 9 बजे, एक बरामदा है ऊपर वाले मकान में, बरामदे के पास वह आता है — बरामदे पर वह आता है और जो सब्जियों के छिलके हैं, जो कुछ भी कूड़ा-करकट घर में है वह टोकरी में रहता है उसके और ठीक 9 बजे वह आकर के अपनी बालकनी से, अपनी छज्जे से और उस कटोरी को, उस टोकरी को खाली करता है और जो गली है नीचे वहां फेंक देता है। अब कोई नीचे आ रहा है, जा रहा है तो सारा कूड़ा-करकट उसके ऊपर पड़ता है और वह मैला हो जाता है। आपको भी उसी गली से गुजरना है, पर आपको मालूम है कि 9 बजे, ठीक 9 बजे वह यह गड़बड़ काम करता है, तो आप क्या करेंगे ?

मेरे को अच्छी तरीके से मालूम है कई लोग वहाँ बैठे हुए होंगें अपने लिविंग रूम में और कह रहे होंगे “जी अब उसको जाकर के घूसा मारेंगे!” उससे कहेंगे कि “ऐसा मत कर!” पुलिस के बारे में — पुलिस के पास जाएंगे एफ आई आर लिखवाएंगें। अखबार में हम इख़्तियार देंगें कि “यह ऐसा-ऐसा करता है।” फेसबुक में डालेंगे, टि्वटर में डालेंगे, व्हाट्सएप में डालेंगे, यह करेंगे, वह करेंगे, ऐसा कर देंगे, उसकी यह शिकायत कर देंगे, उसके साथ यह कर देंगे। परन्तु अगर आपको मालूम है कि वह ठीक 9 बजे यह करता है — 1 मिनट आगे नहीं, 1 मिनट पीछे नहीं, 9 बजे, ठीक 9 बजे वह करता है तो आप वहां से 8:55 मिनट पर भी तो चल सकते हैं! 5 मिनट ज्यादा, ज्यादा से ज्यादा 5 मिनट पर। यह सबकुछ करने की जरूरत है ? एफ आई आर में लिख देंगे, ये कर देंगें, फेसबुक में लिख देंगें, उसके साथ ये कर देंगें, उसकी हड़ताल कर देंगें, ये कर देंगें, वो कर देंगें, धरना देंगे उसके घर के आगे या अपना थोड़ा-सा टाइम 1 मिनट भी थोड़ा-सा आगे कर लीजिये — 1 मिनट, 1 मिनट। अगर वह ठीक 9 बजे आता है तो 1 मिनट ऐसा टाइमिंग कर लीजिये कि उसके घर के आगे से आप 1 मिनट पहले, 9 बजने से 1 मिनट पहले गुजर जाएं — 1 मिनट, 1 मिनट। अगर वह इतना ही पक्का है अपने टाइम का तो 30 सेकंड भी बहुत हैं।

पर ये नहीं सोच रहे लोग। क्या सोचते हैं ? वही जो मैंने कहा — “ये कर देंगें, वो कर देंगें, ऐसा कर देंगें, वैसा कर देंगें।” तो यह है इस मन की चंचलता, इस मन के काम करने के तौर और तरीके और वह तौर-तरीके नहीं हैं कि “भाई मेरे को भी तो कुछ करना है!” जो मैं यहां आया हूं ये सब लड़ाइयों के लिए थोड़ी आया हूं। मुझको यह जो मनुष्य शरीर मिला है — अगर संत-महात्माओं की बात के तौर पर देखा जाए तो उनका तो कहना है कि इसलिए नहीं मिला है। तो जब इसलिए नहीं मिला है तो मैं क्या वह कर रहा हूं, वह काम मैं कर रहा हूं जिसके लिए मुझको मिला है या नहीं ? वह मैं काम कर रहा हूं या नहीं ?

अब एक गिलास है — हिंदुस्तान में पीतल के भी गिलास मिल जाते हैं, टीन के भी गिलास मिल जाते हैं, स्टील के भी गिलास मिल जाते हैं। पर गिलास है काहे के लिए ? पानी पीने के लिए ताकि होंठ पर अच्छी तरीके से आ जाये, पानी भी उसमें आ जाए, पानी इधर-उधर नहीं जाए, पानी को रखें और उससे पानी पी सकें। अब अगर उस गिलास से आप अपना घर बनाना चाहते हैं और उसको उस काम में लगाएं तो लगा तो सकते हैं, क्यों नहीं लगा सकते हैं, परन्तु कब तक चलेगा, कब तक चलेगा वह ? उसके लिए वह बना नहीं है। हर एक चीज के लिए औजार होता है और उस औजार को इस्तेमाल करने से अच्छा रहता है। क्यों ? अच्छा रहता है। यह छोटी-मोटी बात नहीं है, यह बहुत बड़ी बात है “अच्छा रहता है।” अगर आप अपने से हमेशा यह बोल सकें “कैसा चल रहा है ? अच्छा चल रहा है!” क्योंकि यह शरीर, यह समय जो कुछ भी आपको मिला है — जो कुछ भी आपको मिला है उसको आप सही तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं तो अच्छा चल रहा है। जिस चीज के लिए वह बना नहीं है, उसको इस्तेमाल करेंगे; उस तरीके से इस्तेमाल करेंगे; उसके लिए इस्तेमाल करेंगे जिसके लिए वह बना नहीं है, तो गड़बड़ तो होगी।

कैसी गड़बड़ होगी ? देख लीजिये इस संसार के अंदर क्या-क्या हो रहा है, जो कि इसके लिए नहीं बना है। यह जो स्वांस आपके अंदर आ रहा है, जा रहा है, यह इसके लिए नहीं बना है। यह आपके लिए है, यह जीवन ताकि आप उस आनंद को समझ सकें, उस चीज को समझ सकें जो आपके अंदर है। क्या होगा, क्या होगा ? यह होगा कि जिस मिट्टी से आप आए, उसी मिट्टी से जाकर के आप मिल जायेंगें — यह होगा! और कब तक उस मिट्टी से मिले रहेंगें ? करोड़ों साल ? हां! और क्या है यह मिट्टी ? यह धरती इससे नहीं बनी हुई है — सब चीजें जो आप देखते हैं तारे, सितारे, जो कुछ भी आप देखते हैं आकाशमंडल में वह सब इसी मिट्टी का बना है। इसी मिट्टी के आप बने हैं। इसी से आये हो, इसी में जाकर मिलना है — यह होना है! चाहे कोई भी आप डिग्री हासिल कर लीजिये, कुछ भी आप कर लीजिये, कहीं के भी मशहूर बन जाइए, पर यही होना है। क्योंकि यही होता आ रहा है और आगे भी होगा; अब भी हो रहा है, पीछे भी हो रहा था और यही होना है। अब यह आपके ऊपर निर्भर है — बाहर की कोई भी परिस्थिति हो, अंदर की परिस्थिति क्या है ? क्या आप वह कर रहे हैं जिसके लिए आपको यह शरीर मिला ?

नर तन भव बारिध कहुं बेरो, सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो।

इस भवसागर को पार करने का यह साधन है। इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है — भगवान राम कहते हैं!

जो आपके सामने चैलेंजेज हैं, बात उन चैलेंजेज की नहीं है। बात है उस चैलेंजेज को आप किस रूप में पूरा कर रहे हैं ? सबसे बड़ी बात यह है।

परिस्थितियां बदलेंगी, धीरे-धीरे यह लॉकडाउन भी बदलेगा और हम यही आशा करते हैं कि जैसे ही मौका मिलेगा हम हिन्दुस्तान आएंगे। जो कुछ भी हम कर पाएंगे — हम नहीं चाहते हैं कि हम इस महामारी को — हम कुछ ऐसा करें जिससे यह महामारी और फैले। पर, जो कुछ भी हम कर पाएंगे जिससे कि यह बीमारी नहीं फैले उस हद तक हम करने के लिए तैयार हैं। तो अब देखते हैं क्या होता है! कुछ ही दिनों में और खुलने वाला है हिन्दुस्तान, परंतु आप अपना ख्याल रखिए — “ना किसी को यह बीमारी दीजिए, ना किसी से यह बीमारी लीजिए” — और आनंद में रहिये!

सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!