लॉकडाउन प्रेम रावत जी के साथ #45 (9 मई,2020) – Hindi

“पहले तुम अपनी समस्या को समझो! तुम नये हो, समस्या पुरानी है। समस्या नई नहीं है, तुम नये हो। और तुम्हारे जाने के बाद यह किसी और को पकड़ेगी। तुम समस्या से दूर रहो।” —प्रेम रावत

प्रेम रावत जी “पीस एजुकेशन प्रोग्राम” कार्यशालाओं की वीडियो श्रृंखला को आप तक प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहे हैं। इस दौरान हम उनके कुछ बेहतरीन कार्यक्रमों से निर्मित लॉकडाउन वीडियो आप के लिए प्रसारित करेंगे।

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प्रेम रावत जी:

यह जीवन है। अगर हमारी इच्छाओं की पूर्ति न भी हो, फिर भी हमको यह जीवन मिला हुआ है। हम कौन हैं, हम क्या हैं, हम भूल चुके हैं। एक आदमी कैनेडा से, जिसने कभी हाथी नहीं देखा था। उसकी एक दिन इच्छा हुई कि वह हाथी देखना चाहता है। तो उसने मालूम करने की कोशिश की कि कहां वह अच्छी तरीके से हाथी को देख सकेगा ? उसको किसी ने कहा कि ‘‘तू हिन्दुस्तान जा! साउथ में जा, वहां बड़े-बड़े हाथी हैं। वहां गांव हैं, जहां हाथियों को पाला जाता है और वहां जा करके तू हाथी देख सकता है।’’ तो उसने ठान ली और गया साउथ में। एक गांव में गया, वहां उसने देखा कि बहुत सारे हाथी एक जगह खड़े हुए हैं और साथ में, बगल में गांव का प्रधान बैठा हुक्का पी रहा है। तो उसने हाथियों को देखा, पहले कभी अपने जीवन में हाथियों को देखा नहीं था। उसको बड़ा अचम्भा हुआ कि ऐसे होते हैं हाथी! इतनी बड़ी सूंड है, इतने बड़े उनके कान हैं, इतना बड़ा वह जानवर है! इतने बड़े उसके दांत हैं। और वह यह पहचान सका कि हाथी बहुत ही शक्तिमान है! बहुत ही बलवान है!

फिर उसने देखा कि हाथी एक ही जगह हैं। हिल नहीं रहे हैं वहां से। कहीं जा नहीं रहे हैं। तो उसके मन में प्रश्न हुआ कि ‘‘यह भाग क्यों नहीं जाते ? यहां यह क्यों खड़े हुए हैं ?’’ तो उसने देखा कि एक बहुत पतली-सी रस्सी उनकी टांगों में बंधी हुई है और उसको पेड़ के साथ बांध रखा है और हाथी कहीं नहीं जा रहे हैं। तो उसके मन में प्रश्न आया कि ‘‘यह हाथी इतना बलवान जानवर है, यह डोर जो बांधी हुई है इसके पैर में, यह तो बहुत ही पतली है! इसको तो यह तोड़ सकता है!’’

तो वह प्रधान के पास गया। कहा, ‘‘प्रधान जी! क्या सचमुच में यह हाथी बलवान हैं ?’’

कहा, ‘‘बिल्कुल! यह तो बड़े-बड़े पेड़ उठा सकते हैं! पता नहीं, क्या-क्या यह कर सकते हैं! बहुत ही बलवान हैं!’’

तो कहा, ‘‘यह भाग क्यों नहीं जाते ? वह जो डोर, पतली-सी डोरी बांधी हुई है इनके टांगों पर, इसको तो यह तोड़ सकते हैं, नहीं ?’’

प्रधान ने कहा, ‘‘ हां बिल्कुल!’’

‘‘फिर क्यों नहीं तोड़ते हैं ?’’

कहा, ‘‘जब यह बच्चे थे तो इन्हीं डोरियों से इनको बांधा जाता था और जब यह बच्चे थे, तब यह इतने शक्तिशाली नहीं थे कि इस डोर को तोड़ सकें। धीरे-धीरे करके इसी डोर से बंधे रहना, इनको अहसास हो गया कि इस डोर को हम नहीं तोड़ सकते हैं। अब यह बड़े हो गये, बड़े हो गये, शक्तिशाली हैं, पर इन्हें यही अहसास होता है कि इस डोर को तोड़ नहीं पाएंगे। और इसलिए ये यहां बंधे हुए हैं।’’ हो गयी न बात ?

यही हाल हमलोगों का है। हम अपनी शक्ति को नहीं जानते हैं। हम अपनी शक्ति को नहीं पहचान पाते हैं, क्योंकि वह जो डोर, कल्पना की डोर, संस्कार की डोर, जो हमारे पर डाली हुई है, जब हम छोटे थे तो उसे तोड़ नहीं सकते थे, परंतु आज तोड़ सकते हैं, पर हमको ऐसा लगता है कि हम नहीं तोड़ पाएंगे, इसीलिए बंधे रहते हैं, बंधे रहते हैं, बंधे रहते हैं और गुलाम की तरह यह जिंदगी बिताते हैं। गुलामी किसकी ? उसकी नहीं, जिसकी गुलामी करनी चाहिए पर उसकी, जिसकी गुलामी करके कुछ नहीं मिलेगा। कुछ नहीं मिलेगा! जिसके पास न देने को कभी था, और न है और न रहेगा, उसकी गुलामी करते हैं।

मो सो कौन कुटिल खल कामी।

या तन दियो, ताहि बिसरायो, ऐसो नमक हरामी।।

भरि भरि उदर विषयों को ध्यावै, जैसे सूकर ग्रामी।।

सूर पतित को ठौर कहां है, सुनिये श्रीपति स्वामी।।

कहां जाऊं ? क्या करूं ? चक्की चल रही है समय की, इसको मैं रोक नहीं सकता। चक्की चल रही है समय की, इसको मैं रोक नहीं सकता। मैं कोशिश करता हूं, इसको धीमा करने की, पर यह धीमी होती नहीं है। चक्की चल रही है, चक्की चल रही है, चक्की चल रही है, चक्की चल रही है, चक्की चल रही है और मुझे मालूम है कि घुन की तरह एक दिन मुझे पीसना है। परंतु घुन, जो गेहूं में है — उसके बारे में कभी सोचा आपने ? गेहूं रखते हैं न बोरी में — यहां चक्की है, यहां बोरी है। उसमें गेहूं रखा हुआ है और घुन उसमें है। घुन की हालत के बारे में कभी आपने सोचा है ? कितना प्रसन्न है वह घुन! एक पूरी बोरी गेहूं की उसकी है! और वह जितना खाना चाहे, खा सकता है और खा रहा है। उसको नहीं मालूम कि क्या हो रहा है! क्या होने वाला है, उसको वह भूल गया है।

एक समय था कि तुममें वह हिम्मत थी, वह साहस था, जिसकी जितनी दाद दो, उतना ही कम होगा। एक ऐसा तुमने कुछ किया अपने जीवन के अंदर, जो इतने साहस का काम था कि पूछो मत! और वह सबने किया हुआ है। सबने! क्या है ? क्या था ? जब तुमने चलना सीखा। सिर्फ एक चाह थी और उठे तुम। और जैसे उठे, अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश की, तुम लड़खड़ा गए। क्योंकि तुम्हारे पैर इतने मजबूत नहीं थे कि तुम्हारा वजन उठा सकें। गिर गए। गिर गए! गिरे नहीं ? गिर गए! नाकामयाब रहे!

फिर क्या किया ? फिर उठे। फिर उठे! फिर कोशिश की। फिर नाकामयाब रहे और गिर गए! उसके बाद फिर क्या किया ? फिर उठे। ऐसा करते-करते-करते तुम्हारी टांगें मजबूत होती गयीं, मजबूत होती गयीं, मजबूत होती गयीं, मजबूत होती गयीं। क्योंकि तुम नाकाम होते तो जरूर रहे। नाकामयाब होते तो जरूर रहे, परंतु तुमने उस बात को कभी स्वीकार नहीं किया कि ‘‘मैं नाकाम रहा, मैं नाकामयाब रहा!’’ उठते रहे साहस के साथ। फेल होते रहे, पर फेलियर को कभी अपने दिल तक नहीं आने दिया। अपने तक नहीं पहुंचने दिया। और एक दिन क्या हुआ ? तुमने पहला कदम लिया, फिर दूसरा, फिर तीसरा, फिर चौथा और तुम चलने लगे। और जब चलने लगे तो तुमने एक ऐसा ताला अपने लिए खोल दिया कि ‘‘अब तुम इस सारी दुनिया में कहीं भी जा सकते हो!’’

दीवालें टूट गयीं! फाटक खुल गये! रस्सियां गिर गयीं! वह जो रस्सियां — चल पाएगा, नहीं चल पाएगा, कभी यह नहीं रहा। साहस! आज उसी की हालत कैसी है ? छोटे-से काम में फेल होते हैं! सिर पकड़ लेते हैं — ‘‘हमसे नहीं होगा! हम नहीं कर पाएंगे! हमारे भाग्य — भाग्य, हमारे कर्म, हमारे कर्म — हमारा दुर्भाग्य है। हमारे जीवन के अंदर बहुत ही दुर्भाग्य है! इसलिए यह नहीं हो रहा है। हम सफल नहीं हो पाएंगे।’’ ना। गिरे, फिर खड़े हुए! यह तो नाम ही नहीं लेना है कि हो नहीं सकता।

अब लोग आते हैं हमारे पास कि ‘‘जी! हमारी यह समस्या है। हम क्या करें ?’’

मैंने कहा, पहले तुम अपनी समस्या को समझो! तुम नये हो, समस्या पुरानी है। यह समस्या बहुत समय से है यहां। यह पता नहीं, कितने आदमियों को, कितने लोगों को इस समस्या ने सताया हुआ है! समस्या नई नहीं है, तुम नये हो। और तुम्हारे जाने के बाद यह किसी और को पकड़ेगी। तुम समस्या का हल नहीं — समस्या से दूर रहो। अपने पास मत आने दो उसको! क्यों ?

जो कुछ भी तुम्हारी निराशा है अपने जीवन के अंदर, जिसको छोड़ने के लिए तैयार हो। सिर्फ वही बात है।

तुम वह हाथी हो, तुम वही हाथी हो, जो इतना शक्तिशाली है कि अगर वह सचमुच में अपना कदम बढ़ाए आगे तो वह रस्सी की कोई ऐसी शक्ति नहीं है उसके अंदर कि वह तुमको रोक पाए। परंतु वह जो संस्कार तुमने अपने में डाले हुए हैं, ‘‘इसको मैं कभी तोड़ नहीं पाऊंगा’’, जिस दिन तुम वह जो असली साहस है, जो तुम्हारे पास एक समय था, जब तुम उस साहस को आगे लाओगे और उस कदम को बढ़ाओगे, उस दिन तुम्हारी जिंदगी बिल्कुल बदल जाएगी क्योंकि उस दिन — उस दिन तुम उसके हो जाओगे, जो तुम्हारे मन के मंदिर में है। उस दिन उस मंदिर के दरवाजे खुल जाएंगे। किसी और के लिए नहीं, तुम्हारे लिए। तुम्हारे लिए!

तो सबसे बड़ी बात है कि जो कुछ भी हो रहा है, होगा। यह मेरे जीवन की बात नहीं है, तुम्हारे जीवन की बात है। तुम्हारी खुशी! मेरी खुशी का जिम्मेवार मैं हूं! तुम्हारी खुशी के जिम्मेवार तुम हो! मेरे जीवन का जिम्मेवार मैं हूं, तुम्हारे जीवन के जिम्मेवार तुम हो, और कोई नहीं। और यह किसने बनाया है कानून ? उसी ने, जिसने तुमको बनाया, मुझे बनाया और इस सारी पृथ्वी को बनाया। समझो और अपने जीवन को सफल करो!