लॉकडाउन प्रेम रावत जी के साथ #29 (21 अप्रैल, 2020) – Hindi

“अपने आप को देखो, जानो, पहचानो और अपने अंदर स्थित जो चीज है जब उसको तुम जानोगे, पहचानोगे तो सचमुच में तुम यह जानोगे कि तुम कितने भाग्यशाली हो। तुम्हारे पास सबकुछ है।” —प्रेम रावत (21 अप्रैल, 2020)

यदि आप प्रेम रावत जी से कोई प्रश्न पूछना चाहते हैं, तो आप अपने सवाल PremRawat.com (www.premrawat.com/engage/contact) के माध्यम से भेज सकते हैं।

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प्रेम रावत जी:

सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

मुझे आशा है कि आप सब लोग मंगलमय होंगे और आनंद में होंगे। क्योंकि सिर्फ किसी का कह देना कि आप लॉकडाउन में हैं तो इसका मतलब यह थोड़े ही है कि आप लॉकडाउन महसूस करें। अपने आप को अंदर से स्वतंत्र भी महसूस कर सकते हैं। मैं एक चीज पढ़ना चाहता हूं, क्योंकि एक-दो दिन पहले मैंने एक पंक्ति इस दोहे की पढ़ी थी। मैं पूरे दोहे को आपके सामने पढ़ना चाहता हूँ।

करता था चुप क्यों रहा —

करता था चुप क्यों रहा, अब करी क्यों पछताय।

बोवे पेड़ बबूल का, आम कहाँ से लाय॥

तो जब गलत किया तो किसी से कहा नहीं चुप रहे और अब पछता रहे हैं। अब जोर-जोर से सबको समझा रहे हैं, “अब क्या हो गया, अब यह क्या हो गया, अब यह क्या हो गया!”

कई चीजें है, कई चीजें हैं लोग अपने को भाग्यशाली नहीं समझते हैं। समझते हैं उनके साथ यह गलत है, यह गलत है, यह ठीक नहीं है, वह ठीक नहीं है, बहुत सारी चीजें हैं ऐसी। परन्तु समझने की बात यह है कि असली में क्या है, असली में क्या चीज हो रही है। ठीक है, आपके सामने बहुत समस्याएं हैं, आपके परिवार में समस्याएं हैं, आपके बिज़नेस में समस्याएं हैं, आपके घर में समस्याएं हैं, आपके सब चीजों में समस्याएं हैं। पर दरअसल में असलियत क्या है ? असल में क्या हो रहा है ? तो क्या हो रहा है कि नर तन — एक तरफ तो, एक तरफ तो सारी आपकी समस्याएं हैं। और दूसरी तरफ, “नर तन भव वारिधि कहुँ बेरो” — दुख को महसूस करने का साधन नहीं बताया है इसे। दुखी होने का साधन नहीं बताया है इसे। दुख क्यों होगा ? जब, जो चीज आपको मिली है उसका आप दुरुपयोग करेंगे तो दुख मिलेगा। कुछ ना कुछ गड़बड़ होगी, कुछ ना कुछ गड़बड़ होगी।

अगर मटकी को आप पानी से भी भरें या किसी भी चीज से भरें। पर उसको हथौड़े के रूप में इस्तेमाल करना शुरू करें मटकी को तो उसका दुरूपयोग है। तो क्या होगा मटकी के साथ ? मटकी टूटेगी। कोई भी चीज हो, अगर आपके पास पेंसिल है और आप पेंसिल से हथौड़ी का काम लेने लगें तो पेंसिल टूटेगी। क्योंकि पेंसिल हथौड़ा नहीं है। हथौड़ा, हथौड़ा है। पेंसिल, पेंसिल है। ठीक इसी प्रकार, यह जो मनुष्य शरीर मिला है क्या है यह ? “नर तन भव वारिधि कहुँ बेरो”— आप लगे रहते हैं अपनी समस्याओं को सीधा करने में। यह सारी चीजें होती रहती हैं, पर कहा है

नर तन भव वारिधि कहुँ बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो॥

इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है। मैं बार-बार सुनाता हूं लोगों को यह। क्योंकि यह है दरअसल में बात और इस स्वांस का आना-जाना ही कृपा है, उनका आशीर्वाद है। किस चीज की जरूरत है ?

करण धार सदगुरु दृढ़ नावा, दुर्लभ काज सुलभ करी पावा॥

जो असंभव लगता है वह भी जब समय का सतगुरु मिले, तो वह उसको बड़ा आसान बना सकता है। नहीं तो क्या होगा—

मो सम कौन कुटिल खल कामी।

जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नमक हरामी॥

भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी।

सूर, पतित कों ठौर कहां है, सुनिए श्रीपति स्वामी॥

जो मनुष्य शरीर मिला है उसका दुरूपयोग क्या है ? वह जिस चीज के लिए मिला है उसी को आप ठुकरा दें। वह जिसकी कृपा से मिला है, उसको ठुकरा दें। तो असलियत क्या है और हो क्या रहा है ? असलियत क्या है, हो क्या रहा है ?

यह कुछ इस तरीके से बात है कि जंगल के बीच में एक जगह है और पेड़ भी सब सूखे हुए हैं। पेड़ भी सब सूखे हुए हैं। नदियां हैं एक-दो वह भी सूखी हुई हैं। कहीं पानी नहीं है और एक झोपड़ी है और झोपड़ी में से रोने की आवाज आ रही है। मां भी रो रही है, बाप भी रो रहा है, बच्चे भी रो रहे हैं। बच्चे दुखी हैं उनको भूख लगी है, मां दुखी है कि बच्चे दुखी हैं और बाप दुखी है कि मां और बच्चे दुखी हैं। उसको मालूम नहीं कि वह खाना कहां से लाये! सबकुछ सूख गया है। उसको कुछ ऐसा नजर नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं! वह दरिद्र है, उसके पास कोई पैसे नहीं है। वह समझता है कि उसमें कोई क्षमता नहीं है। वह समझता है कि उसमें कोई बल नहीं है। बस एक छोटी-सी झोपड़ी है उसकी और कुछ नहीं है। एक छोटा-सा कुआं भी खोदा हुआ है झोपड़ी के पास और वह भी सूखा हुआ है। ऐसी हालत में कोई अगर आए और उससे कहे कि “क्यों रो रहे हो?” और वह अपनी विपदा सुनाये कि “मेरे साथ यह हो रहा है, मेरे पास कुछ नहीं है।” और वह जो व्यक्ति है वह उस दरिद्र व्यक्ति से कहे कि “नहीं तुमको रोने की जरूरत नहीं है। तुम्हारे पास बेशुमार दौलत है और दौलत तुम्हारी ही झोपड़ी के नीचे सोना, अशर्फियां, हीरे-मोती, जवाहरात ये सारे दबे पड़े हैं। यहां सब दबे पड़े हैं। खोदो, निकालो जो निकालना चाहते हो और जाओ और अपने परिवार के लिए भोजन लाओ, अपने परिवार के लिए सबकुछ जो लाना चाहते हो, लाओ।”

ऐसे व्यक्ति को क्या करना चाहिए ? मैं पूछता हूं कि ऐसे व्यक्ति को क्या करना चाहिए ? रोता रहे — मेरे पास कुछ नहीं है, मेरी पत्नी है वह भी दुखी है, मैं कितना अभागा हूं, उसको तो एक और कान मिल गया ना सुनाने के लिए। अपना रोने के लिए, धोने के लिए उसको एक और कान मिल गया। परन्तु जिसको वह समझता है कि एक और कान मिल गया वह यह कह रहा है कि “तेरी झोपड़ी के नीचे बेशुमार दौलत है, खोद उस दौलत को और जा और जाकर के अपना भाग्य पलट।” तो वही मेरा पूछना है कि उसको क्या करना चाहिए ? उसको — रोते ही रहे वह या उसको यह कहना चाहिए या यह करना चाहिए कि “अच्छा! क्या सचमुच में मेरे झोपड़ी के नीचे यह हीरे-मोती सबकुछ हैं मैं भी देखूं! मैं अपने आप देखना चाहता हूं।” यह नहीं कि आपने कहा और अब आप जाइए और फिर कल मैं निकाल लूंगा। नहीं! आप खड़े हैं यहां, मैं निकालता हूं। तो वह जाता है और उसने खोदे और उसको हीरे मिले, जवाहरात मिले। खुश होकर वह जाए अपने बच्चों के लिए पानी, भोजन, यह सारी चीजें — पहले तो यह चीजें ताकि वह अच्छी तरीके से उनका रोना-धोना बंद हो। उसके बाद वह धीरे-धीरे उसको और निकाल सकता है, अपना बड़ा मकान बना सकता है या सारा धन लेकर के कहीं और जा सकता है। अब कुछ भी कर सकता है वह।

यहां जो बात हो रही है वह कुछ ऐसी हो रही है, क्योंकि जो लोग हैं वह समझते हैं कि वह निर्धन हैं पर किस — धन की बात नहीं हो रही है, सोने और जवाहरात की बात नहीं हो रही है। बात हो रही है निर्धन हैं वह आनंद के मामले में कि उनके जीवन में आनंद नहीं है। उनके जीवन में निराशा है। उनके जीवन में ऐसी-ऐसी चीजें हुई हैं जिससे कि वह अपने आपको भाग्यशाली नहीं समझते हैं। हां, स्वांस आ रहा है, जा रहा है वह नहीं समझते हैं कि यह भाग्यशाली है। उनका जन्म हुआ वह यह नहीं समझते हैं कि भाग्यशाली हैं। वह जीवित हैं वह यह नहीं समझते हैं कि भाग्यशाली हैं। यही तो जवाहरात हैं, यही तो सोना है, यही तो चांदी है, जो तुम्हारे अंदर है। यह सारी चीजें जब तुम जानने लगोगे और अच्छी तरीके से जान लोगे कि कोई अमीर आदमी ऐसा नहीं है इस सारे संसार के अंदर जो एक स्वांस खरीद सके, एक स्वांस भी कोई नहीं खरीद सकता है। इतनी अनमोल चीज, जिनके पास अरबों-खरबों-खरबों डॉलर हैं वह भी एक स्वांस नहीं खरीद सकते हैं और तुम हर एक दिन वह स्वांस ले रहे हो।

तो भाग्यशाली तुम हुए या नहीं हुए ? जब तुम जानते ही नहीं हो कि तुम्हारी ही कुटिया के नीचे, तुम्हारी ही झोपड़ी के नीचे क्या है। क्योंकि तुमने कभी ध्यान ही नहीं दिया। कोई आता है, कोई बताता है तो ठीक है, उस पर शक करेंगे लोग। क्योंकि जो झूठ बोलता है उस पर कोई शक करता नहीं है।

लोग हैं, ऐसे ठग हैं आते हैं और लाखों-लाखों का माल चोरी करके ले जाते हैं। वह भी ऐसे चोरी करके ले जाते हैं कि आदमी ने खुद उसको दे दिया। उसको बताएंगे कि “बहुत इन्वेस्टमेंट की। यह मौका है और आप इसमें पैसा लगाइये आपको बहुत पैसे मिलेंगे।” हिंदुस्तान से और कई देशों से लोग फोन करते हैं और अमेरिका में यहां फोन करते हैं लोगों को और कहते हैं “हम गवर्नमेंट ऑफिस से बोल रहे हैं (अमेरिका गवर्नमेंट ऑफिस से बोल रहे हैं) और तुम फलां-फलां यह जुर्माना है यह जल्दी से जल्दी इस पते पर भेज दो नहीं तो हम तुम्हारा बैंक-अकाउंट यह सबकुछ खत्म कर देंगे।” तो भाई!, लोग हैं डरकर करते हैं।

तो कोई झूठ बोले तो उस पर सब विश्वास करने के लिए तैयार हैं और जो सच बोले उस पर कोई विश्वास करने के लिए तैयार नहीं है। मैं तो यही कहता हूँ कि मेरे पर विश्वास मत करो। जो तुम्हारे अंदर की चीज है उसको तुम जानो, उसको तुम पहचानो और अगर तुम्हारे हृदय में आनंद नहीं आए तो फिर हमसे बात करो।

एक बार यही हुआ दिल्ली में इसका मैंने बहुत बार उदाहरण भी दिया हुआ है। तो एक बड़ा हॉल था और उसमें जिज्ञासु लोग बैठे थे। सब जिज्ञासु, जो ज्ञान लेने के लिए तैयार हो रहे थे वहां बैठे हुए थे और पीछे कुछ लोग थे। तो प्रश्न-उत्तर हो रहे थे, तो एक महिला ने हाथ उठाया तो वह बोलती है “जी मेरे को हाल ही में ज्ञान हुआ है आपका। और मैं तो कोई चीज नहीं महसूस करती हूँ।” वह देखने की चीज थी, क्योंकि जितने भी जिज्ञासु उस हॉल में बैठे हुए थे, काफी सारे सब मेरी तरफ देख रहे थे पहले तो। जैसे ही उसने यह कहा कि “मेरे को कुछ नहीं हुआ, मैंने आपका हाल ही में ज्ञान लिया है।” तो सब के सब, एक भी नहीं था जिसने यह नहीं किया हो, सब के सब पीछे मुड़े और उसकी तरफ देखा। उसकी तरफ देखा फिर मेरी तरफ देखा कि “अब इसका उत्तर दीजिए!”

मैंने कहा, “देखो भाई! अगर तुमको नहीं होता है, कोई चीज महसूस नहीं होती है तो छोड़ दो इसको। हमने कब कहा कि इसी को पकड़े रखो। नहीं है तो नहीं है।”

कहा, “नहीं, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं ! मेरे को बहुत कुछ महसूस होता है। मेरे को शांति महसूस होती है।”

तो मैंने कहा कि “मैंने और क्या कहा था, क्या महसूस होगा?”

कल्पना की बात लोग कल्पना में रह जाते हैं। कल्पना करते हैं कि वह कितने अभागी हैं और उनके साथ यह नहीं हुआ, उनके साथ यह नहीं हुआ, हर एक मनुष्य के साथ तुलना करने लगते हैं, तुलना करने लगते हैं। अब हिन्दुस्तान में तो वह बात है ही। कई लोग हैं जो, काला रंग उनको पसंद नहीं है तो बड़ी-बड़ी क्रीम लगाते हैं, क्योंकि तुलना करते हैं। यह नहीं है कि अपना चेहरा देख करके आईने में संतुष्ट हो जाएं। नहीं, किसी और का चेहरा देखते हैं और फिर कहते हैं कि “मेरा चेहरा इसकी तरह होना चाहिए!” यही हो रहा है।

जब यह सोशल मीडिया नहीं था लोग एक-दूसरे को अपनी फोटो नहीं भेजते थे, यह सारी चीजें नहीं होती थीं। तो हिन्दुस्तान में जिस तरह के लोगों के बाल होते थे, बाल काटते थे वह बिल्कुल अलग थे, विदेश में अलग थे, कहीं और जाओ तो वहां अलग थे। परंतु अब जहां भी जाओ सब युवकों के बाल वैसे ही कटे हुए हैं। क्योंकि देखते हैं “मैं ऐसा होना चाहता हूँ, मैं ऐसा होना चाहता हूँ!” नाई की दुकान में जाओ क्या मिलेगा आपको ? फोटो लगी हुई हैं ताकि आप नाई को ऊँगली दिखाकर कह सको कि मेरे को ऐसा बना दे, मेरे को ऐसा बना दे, मेरे को ऐसा बना दे, मेरे को ऐसा बाल काट दे।” बाल तो — बाल तो अब मेरे बड़े हो रहे हैं। अब लॉकडाउन में हूँ तो पता नहीं कौन आकर काटेगा! पता नहीं क्या होगा पर बड़े हो रहे हैं अब काटने का समय भी हो रहा है।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि तुम अपने आप को देखो, अपने आप को जानो, अपने आप को पहचानो और अपने अंदर स्थित जो चीज है जब उसको तुम जानोगे, पहचानोगे तो सचमुच में तुम यह जानोगे कि तुम कितने भाग्यशाली हो। तुम्हारे पास सबकुछ है, क्योंकि तुमने अपने अंदर स्थित उसको पा लिया, जो सारे संसार की रचना करता है। जो सारे संसार को चलाता है। तो सबसे बड़ी बात तो यह है कि अपने आपको भाग्यशाली पाओ — अभागा नहीं, भाग्यशाली!

तो सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!