लॉकडाउन प्रेम रावत जी के साथ #26 (18 अप्रैल, 2020) – Hindi

“सुख और शांति में यह अंतर है कि जिसके पास शांति है, उसके पास एक बहुत ही अद्भुत सुख है और वह सुखी है। परन्तु जो सुखी है, उसके पास जरूरी नहीं कि शांति भी है।” —प्रेम रावत (18 अप्रैल, 2020)

यदि आप प्रेम रावत जी से कोई प्रश्न पूछना चाहते हैं, तो आप अपने सवाल PremRawat.com (www.premrawat.com/engage/contact) के माध्यम से भेज सकते हैं।

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प्रेम रावत जी:

अब यह दूसरा हिस्सा है। यह आया है चंचल, चंदौली उत्तर प्रदेश से — “आप मन और हृदय की बात करते हैं। मन चंचल है परंतु हृदय की बात समझ नहीं आती है। हृदय को कैसे समझें ?”

हृदय को समझने की बात नहीं है, हृदय को एहसास करने की बात है। जैसे जो मिठास का स्वाद है वह एहसास करने की चीज है। वह समझने की चीज नहीं है। अगर आप किसी को समझाने की कोशिश करेंगे कि मिठास क्या होती है तो वह किसी की समझ में नहीं आएगी। परन्तु एहसास करने की कोशिश करेंगे तो बिल्कुल कोई भी उसका एहसास कर सकता है। तो इसी प्रकार हृदय की बात, समझने की बात नहीं है। हृदय की बात आप अपने दिमाग से नहीं समझ पाएंगे, हृदय की बात आपको उसका एहसास करना पड़ेगा और जब आप उसका एहसास करेंगे, जब उसका अनुभव करेंगे तो वह अनुभव करने की बात है तब आपको समझ में आएगा कि हृदय क्या कह रहा है और क्या कहता है।

“क्या सुख और शांति में अंतर है ?” तो संजय कुमार का मुजफ्फरपुर से बिहार से यह प्रश्न है — “क्या सुख और शांति में अंतर है ?”

देखिये! शांति, शांति है और सुख, सुख है। सुख, आपको इस संसार का भी सुख मिल सकता है पर यह जरूरी नहीं है कि जब आप इस संसार का सुख ले रहे हैं तो आपको शांति भी मिलेगी। कई बार तो यह होता है कि आपको इस संसार का सुख तो मिल रहा है, परन्तु शांति नहीं मिल रही है। और कई बार यह होता है तो — “क्या सुख और शांति में अंतर है?” बिलकुल अंतर है। परन्तु जिस आदमी के पास शांति है उसको एक ऐसी, उसको एक ऐसा सुख मिलेगा, वह ऐसा सुखी होगा कि वह संसार नहीं समझ पायेगा कि तू क्यों सुखी है। “तेरे पास यह नहीं है, तेरे पास यह नहीं है, तेरे पास यह नहीं है।”

आज हैप्पीनेस जिसे कहते हैं — “सुखी, हैप्पीनेस, आर यू हैप्पी, तुम हैप्पी हो।” तो बड़े-बड़े आर्गेनाईजेशन्स ने इसकी परिभाषा बनाई है कि सुखी का क्या मतलब होता है ? तुम्हारे पास नौकरी हो, तुम्हारे पास परिवार हो, तुम्हारे पास यह हो, तुम्हारे पास वह हो, परन्तु यह सब चीजें होने के बावजूद भी यह जरूरी नहीं है कि मनुष्य सुखी है। बड़े बड़े लोग हैं, बड़े बड़े लोग हैं और अब एक आदमी को तो मैं जानता हूं मतलब, निजी रूप से नहीं जानता हूं, पर जानता हूं वह — अब मैं नाम नहीं लूंगा ऐसे देश का वह, इतना बड़ा इंचार्ज है और उसके पास बहुत, स्वयं भी उसके पास बहुत पैसा है, पर मैं नाम नहीं ले रहा हूं किसी का और बहुत-बहुत शक्तिशाली देश है और शक्तिशाली देश का वह इतना बड़ा नेता है तो वह भी शक्तिशाली हो गया। परन्तु जब भी उसको मैं देखता हूँ, तो ऐसा लगता है कि एकदम नाखुश है, खुश है ही नहीं। छोटी-छोटी-सी बातों से ऐजिटेटेड (agitated) रहता है, गुस्सा उसको हमेशा आता रहता है। कोई कुछ थोड़ा-सा भी गलत बोल दे तो बड़ा गुस्सा आ जाता है उसको। तो इतना सबकुछ होने के बाद भी उसके पास शांति नहीं है। पैसा है, यह नहीं है कि उसको किसी से उधार लेने की जरूरत है। कहीं भी वह जा सकता है, कुछ भी वह खरीद सकता है। हां, उसके घर में मेरे ख्याल से अच्छे-अच्छे सोफे होंगे, बैठने के लिए बढ़िया-बढ़िया चीजें होंगी, देखने के लिए बढ़िया -बढ़िया चीजें होंगी। वह सारा सुख तो है, परन्तु शांति उसके पास नहीं है। तो सुख और शांति में यह अंतर है। तो जिसके पास शांति है, उसके पास एक बहुत ही अद्भुत सुख है उसके पास और वह सुखी है। परन्तु जो सुखी है, उसके पास यह नहीं है कि उसके पास शांति है। तो यह अंतर है। बड़ा अच्छा सवाल पूछा आपने।

“जिस परमानंद को अपने ही अंदर देखने को आप कहते हैं यह कैसे संभव है समझाने की कृपा करें क्या यह कार्य किसी भी परिस्थिति में संभव है” — अर्चना सिंह, मिर्जापुर उत्तर प्रदेश से यह प्रश्न पूछ रही हैं — “जिस परमानंद को अपने ही अंदर देखने को आप कहते हैं यह कैसे संभव है?” यह इसलिए संभव है क्योंकि आपके अंदर वह है इसलिए संभव है। आपने सुना होगा मैंने पहले भी कहा हुआ है कि —

एक राम दशरथ का बेटा। एक राम घट-घट में बैठा।।

एक राम का जगत पसारा। एक राम जगत से न्यारा।।

जो आपके घट में बैठा है वह आपके अंदर है उसको देखना, देखना कैसे ? इन आँखों से नहीं, उसको देखना है अनुभव की आँखों से। और जब वह अनुभव की आँखों से आप उसको देखेंगे, तो आपको आनंद मिलेगा। यह उसकी प्रकृति है। तो ऐसे यह संभव है। और क्या यह किसी भी परिस्थिति में किया जा सकता है ? थीअरेटिक्ली (theoretically) यह किसी भी परिस्थिति में किया जा सकता है। भगवान कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं लड़ाई के मैदान में कि “तू मेरा सुमिरन भी कर और लड़ाई भी कर!” जब समय आया तो उस चीज को दिखाने के लिए भगवान कहते हैं “तू इन आँखों से नहीं देख सकेगा, मैं तेरे को दिव्य नेत्र देता हूँ।” वह दिव्य नेत्र क्या हैं ? वह अनुभव के जो नेत्र हैं, जो तुम्हारे अंदर हैं, उनसे तुम उस चीज का दर्शन कर पाओगे। तो मेरे को यही आशा है कि आपको आपका उत्तर मिला।

यह निराकार पटेल, रायगढ़ छत्तीसगढ़ से इन्होंने प्रश्न पूछा है “सभी व्यक्ति सफल होने के लिए अपने-अपने स्तर पर प्रयास करते हैं इसमें कुछ व्यक्ति को सफलता प्राप्त होती है, जैसे दो व्यक्ति कुआं खोदते हैं तो एक में स्वच्छ और एक मीठा पानी प्राप्त होता है और दूसरे वाले के में पानी ही नहीं मिलता है ऐसा क्यों?”

जो हर एक व्यक्ति कुआँ खोदता है, जो हर एक व्यक्ति कुआँ खोदता है उसको अच्छी तरीके से मालूम है कि हो सकता है पानी न निकले या खारा पानी निकले! मुझे कैसे मालूम। जब पानी निकलता है तो उसको चखते हैं। क्यों चखते हैं कि मीठा है या खारा है। यह किसी को नहीं मालूम कि पानी निकलेगा या नहीं निकलेगा। यह रिस्क आप जब कुआं खोदते हैं तो यह रिस्क आप ले रहे हैं। निकले, पानी है तो निकलेगा, पानी नहीं है तो नहीं निकलेगा। और ऐसे भी कुएं हैं जिनमें पानी निकलते हैं फिर सूख जाते हैं। और ऐसे भी कुएं हैं जिनमें पानी नहीं निकलता है और फिर बारिश का पानी उनमें आ जाता है तो थोड़ा-बहुत पानी कुछ महीनों के लिए उनमें बना रहता है।

देखिये! बात सफलता की नहीं है, कई चीजें हैं जिनमें यह रिस्क लेना पड़ता है। नहीं लेंगे रिस्क तो कुछ भी नहीं होगा आगे। अगर कोई यह बोले कि मैं तो कुआं खोदूंगा ही नहीं, क्योंकि हो सकता है कि कुएं में पानी नहीं निकले, तो ना कभी आपके पास कोई कुआं होगा ना कभी पानी निकलेगा। परन्तु यह रिस्क हर एक व्यक्ति लेता है। जब किसान अपनी फसल बोता है, तो वह भी यह रिस्क लेता है कि यह उगेगी या नहीं उगेगी। और उग भी गयी तो अगर बेटाइम पानी पड़ा या ओले पड़े तो यह सारी की सारी फसल बर्बाद हो सकती है। यह रिस्क हम लोग लेते हैं। परंतु रिस्क लेते हुए भी हम रिस्क को समझते नहीं हैं और समझना चाहिए।

अब जैसे कहीं जा रहे हैं आप, बस से जा रहे हैं बस का एक्सीडेंट हो गया और सबको लगता है कि यह तो बड़ी बुरी बात हुई। परन्तु यह रिस्क आप लेते हैं जब आप बस में सफर करते हैं तो यह रिस्क आप लेते हैं तो यह तो सारी बातें इस संसार की ऐसी ही हैं, ऐसा लगता नहीं है कि ऐसी हैं, पर ऐसी हैं और यह तो कहा है संत महात्माओं ने कि “इस स्वांस के ऊपर इसकी कदर समझो क्योंकि ना जाने इस स्वांस का आना होय न होय।” कब, कैसे ?

सबसे बड़ी बात तो यह है आप तो कुएं की बात कर रहे हैं। मैं दूसरी बात करता हूं कि आपका यह शरीर है, आपको भी नहीं मालूम कब तक यह आपके पास है। कभी है, और आज है, हो सकता है कल न हो। तो इस बात को समझिये कि रिस्क तो हम हमेशा ले रहे हैं हम समझते हैं कि यह हमारे भाग्य का फल है। यह भाग्य का फल नहीं है यह हम रिस्क ले रहे हैं और जबतक यह रिस्क, इस दुनिया के सारे कार्यों में यह रिस्क हैं तब तक यह सारा चक्कर बना रहेगा।

उत्तम नगर, दिल्ली से यह प्रश्न है — “आप शांति के बारे में बात करते हैं, आप प्यास की बात करते हैं मुझे कैसे पता चलेगा कि शांति मिल गई। शांति की प्यास को कैसे समझें ?”

हां! यह तो वही वाली बात हो गई — जब एक राजा के पास एक दूत आया और उसने कहा “महाराज हमारे राजा ने आपके लिए यह आम के फल भेजे हैं उपहार के रूप में।”

राजा ने पूछा — “यह आम क्या होता है हमको मालूम ही नहीं है ?”

उसके राज्य में आम नहीं थे तो राजा ने एक व्यक्ति को अपने दरबार से कहा, “तुम चखो और और चखकर मेरे को बताओ कि आम क्या होता है, कैसे होता है?”

उसने चखा और उसने बताने की कोशिश की कि — “आम ऐसा होता है, ऐसा होता है पर राजा को समझ में नहीं आया।” ऐसे करते-करते-करते-करते जितने भी दरबारी थे राजा के दरबार में सबका नंबर आया, सबने कोशिश की पर किसी को भी, कोई भी इसमें सक्सेसफुल नहीं हुआ, समर्थ नहीं हुआ कि वह राजा को समझा सके कि आम क्या होता है।

उसके बाद एक जो आखिरी वाला था उसने लिया आम को और उसको काट करके एक प्लेट में रखा और राजा के पास ले गया और कहा “यह चखिए महाराज!”

जैसे ही राजा ने चखा तब राजा को मालूम पड़ गया कि आम क्या होता है।

जैसे आपने प्रश्न पूछा है ठीक वही बात है। आप पूछ रहे हैं कि शांति कैसे मालूम पड़ेगी ? क्या-क्या शांति — जब आप शांति का अहसास करेंगे तक आपको मालूम पड़ेगा कि शांति क्या है। उससे पहले एक थ्योरी है, उससे पहले एक थ्योरी है। उससे पहले कोई समझा दे, समझ में आएगी या नहीं आएगी परंतु मुंह में तो स्वाद आएगा नहीं। शांति का अनुभव तो होगा नहीं। कितने ही लोग हैं जो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं शांति के बारे में पर लोगों को शांति तो मिलती नहीं है। लोग यह भी करते हैं जब अपना भाषण खत्म किया — “ओम शांति, शांति, शांति, शांति!” किसी को शांति नहीं मिलती। शांति तुम्हारे अंदर है और वह एहसास करने की चीज है जबतक उसका एहसास नहीं करोगे, जबतक उसका अनुभव नहीं करोगे तब तक क्या समझोगे कि शांति क्या है। शांति परिभाषाओं की चीज नहीं है, शांति परिभाषाओं में नहीं फंसी हुई है।

आतम अनुभव ज्ञान की, जो कोई पुछै बात

सो गूंगा गुड़ खाये के, कहे कौन मुख स्वाद।

तो वही वाली बात है। कैसे समझाएं स्वाद तो आ रहा है, पर कैसे समझाएं। तो आपको ही इसका स्वाद लेना पड़ेगा।

“मैं एक संयुक्त परिवार में रहता हूं — यह हैं संजय मिश्रा, दिल्ली से — बहुत कोशिश करने के बाद भी मेरे परिवार में शांति नहीं हो पा रही है हर वक्त क्लेश होता है। मैं हिम्मत हार चुका हूं कृपया मार्गदर्शन कीजिए।”

देखिये! जबतक वह परिवार आपका परिवार है आप हौसला मत खोइए। क्लेश जो होता है, फाइटिंग, इनफाइटिंग जिसे कहते हैं अपने आप में नहीं होती है। यही प्रश्न, ऐसा ही एक प्रश्न एक लड़की ने पूछा था मेरे से एक जगह यूनिवर्सिटी में मैं गया था कहीं तो मैंने कहा कि “तुम इसमें कितना हिस्सा लेते हो, तुम्हारा क्या रोल है इसमें।” तो वही वाली बात है कि कुछ-कुछ मतलब, बाहर खड़े होकर के और लोगों को उकसाते हैं कि “हां यह ठीक है, यह ठीक है, यह ठीक है, यह ठीक है, यह ठीक है।”

देखिये! आप भी कुछ कर रहे हैं उस क्लेश के बारे में, उस क्लेश को आगे बढ़ने में आप उस क्लेश की मदद कर रहे हैं। यह जानिए कि आप क्या कर रहे हैं जिससे कि वह क्लेश बढ़ रहा है। आप क्या कर रहे हैं और लोग नहीं, आप क्या कर रहे हैं ? जब आप उस क्लेश को समझेंगे और कुछ ऐसा करेंगे कि वह क्लेश आगे ना बढ़े और लोगों के लिए नहीं, आप अपने लिए जो कर रहे हैं। साइकिल होती है न — बाइसाइकिल उसकी चेन होती है। अगर उसमें से एक चेन का लिंक निकाल दें आप तो वह सारी की सारी चेन किसी काम की नहीं रह जाती। एक लिंक निकालने में, एक लिंक उसका निकाल दें तो फिर वह चेन नहीं रह जाती। फिर उससे साइकिल नहीं चलेगी, चाहे सारी की सारी हों और सिर्फ एक ही नहीं है, साइकिल नहीं चलेगी। ठीक इसी तरीके से यह बात है कि यह जो चेन है इसके एक हिस्से आप भी हैं और अगर आप इसमें से अलग हो जाएं, आप उस क्लेश की मदद न करें तो यह चेन फिर आगे चल नहीं पाएगी।

बहुत कुछ कह सकता हूं इसके बारे में मैं, परंतु यही मैं कहना चाहता हूं अभी तो अगर आपकी समझ में आए मैं क्या कह रहा हूं तो इस बारे में कम से कम थोड़ा सोचिये, थोड़ा विचारिये!

सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!