लॉकडाउन प्रेम रावत जी के साथ #21 (13 अप्रैल, 2020) – Hindi

“इस समय, एक मानवता के नाते हम लोगों के लिए जो भी कर पायें वह पर्याप्त नहीं है।” —प्रेम रावत (13 अप्रैल, 2020)

यदि आप प्रेम रावत जी से कोई प्रश्न पूछना चाहते हैं, तो आप अपने सवाल PremRawat.com (www.premrawat.com/engage/contact) के माध्यम से भेज सकते हैं।

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प्रेम रावत जी:

सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

आज के दिन मेरे को यही आशा है कि आप सब कुशल-मंगल होंगे और सबसे बड़ी बात यह है कि जैसे भी आप हैं, जिस भी परिस्थिति में आप हैं इस कोरोना वायरस के समय में आप आनंद में हैं, आप मंगलमय हैं। क्योंकि यह चीज सभी लोगों को चाहे कोई भी हो, चाहे अमीर हो, चाहे गरीब हो, सभी लोगों को उपलब्ध है। यह उसकी कृपा है, उस बनाने वाले की कृपा है कि चाहे कैसा भी माहौल हो, चाहे कोई भी चीज हो रही हो, चाहे कैसा भी कुछ हो रहा हो, कैसा भी दुख हो, कैसा भी प्रकृति की तरफ से कुछ भी हो रहा हो, अगर मनुष्य चाहे अपने जीवन के अंदर तो उन परिस्थितियों में भी आनंदमंगल रूप से अपने जीवन को बिता सकता है।

यही सबसे बड़ी बात है कि हम को जो और लोग कर रहे हैं, और लोग परेशान हो रहे हैं, कोई कुछ कर रहा — हम पढ़ते हैं न्यूज़ में, समाचार जब आते हैं तो किसी ने कुछ कर दिया, किसी ने कुछ कर दिया, कोई इस चीज का विद्रोह कर रहा है, कोई उस चीज का विद्रोह कर रहा है। क्या मांगा जा रहा है लोगों से — छोटी सी बात है कि अपने घर में रहो ताकि तुम इस बीमारी को फैला न सको। यह नहीं है कि अब से लेकर जबतक तुम मर नहीं जाओगे तबतक तुम आइसोलेट रहोगे, यह कोई नहीं कह रहा है। यही कहा जा रहा है कि कुछ दिन रहो, कुछ दिन सब्र करो। क्या आज के मनुष्य में सब्र करने की कोई क्षमता नहीं रह गयी है ? क्या सुनने की कोई क्षमता नहीं रह गई है ? सारी बातें एकदम पॉलिटिकल हो गई हैं। भाई! आप मनुष्य हैं! सबसे पहले आप मनुष्य हैं और मनुष्य होने के नाते सबसे पहले आपका जो एक फर्ज़ बनता है वह यह बनता है कि आप अपने को भी सुरक्षित रखें और आपके एरिया में, आपके क्षेत्र में जो लोग हैं वह भी सुरक्षित रहें।

यह जानने की बात है, यह पहचानने की बात है, यह इंसानियत की बात है। जब आप हैं जिंदा तो आप अगर किसी की मदद कर सकते हैं कि उन तक यह बीमारी न पहुंचे। आपके घर रहने से आप उनकी यह मदद कर रहे हैं कि यह बीमारी और लोगों तक न पहुंचे। आपको लगेगी अगर यह बीमारी तो आपके घर में जो लोग हैं उनको लग सकती है यह बीमारी। यह समझने की बात है कि मनुष्य होने के नाते आप इस समय किन-किन की मदद कर सकते हैं। मैंने हमेशा ही लोगों से कहा है कि “भाई! शांति तब होगी जब हर एक दिया जलेगा!” मेरे को अच्छी तरीके से मालूम है कि लोग इस बात पर मेरे पर हंसते थे कि आप एक-एक की बात कर रहे हैं।

आज एक-एक की ही बात की जा रही है। गवर्नमेंट भी एक-एक की ही बात कर रही है कि सभी को रहना चाहिए, क्योंकि एक-दूसरे से अगर लोग मिलेंगे तो कितने ही कितने, कितने-कितने, कितने-कितने, कितने कि उनको — मल्टिप्लाई होंगे तो कितने ही हजारों लोग इस बीमारी से प्रभावित होंगे। और बात यह है कि जब अस्पताल में जगह नहीं है, डॉक्टरों के पास जगह नहीं है, वह मैक्सड आउट हैं तो फिर कैसे आगे चलेगा! परंतु लोग हैं जो इन बातों पर ध्यान नहीं देते हैं और चीजों पर ध्यान देते हैं। अपनी-अपनी बात पर ध्यान देते हैं स्वार्थ यह होता है — असली स्वार्थ यह है कि जब ऐसा समय आए तो लोग सबकी बात नहीं मान रहे हैं, सबकी बात नहीं देख रहे हैं, सबका भला नहीं देख रहे हैं, सिर्फ अपनी बात मानना चाहते हैं इससे बड़ा स्वार्थ और हो नहीं सकता। क्योंकि यह समय है, यह समय है उन चीजों को परखने का कि “क्या तुम में सहनशक्ति है या नहीं ?” या इसी शक्ति के पीछे तुम लगे हुए हो — बांहों कि जो शक्ति है इसी के पीछे लगे हुए हो पर यहां की शक्ति कोई शक्ति नहीं है, यहां की शक्ति कोई शक्ति नहीं है। जब अगर ऐसा होगा तो फिर जो सचमुच में, जिसको खोखला कहते हैं, खोखला — बाहर से तो सबकुछ ठीक लगता है, पर अंदर कुछ है नहीं। वह बात हो जाएगी, वह बात हो जाएगी।

क्योंकि मनुष्य की असली पहचान है कि उसके अंदर की चीज क्या है ? उसके अंदर गुस्सा भरा हुआ है या प्रेम भरा हुआ है। उसके अंदर वह डरा हुआ है या उसके पास हौसला है आगे बढ़ने का। यह चीजें मनुष्य को बनाती हैं। यह चीजें आगे आना जरूरी हैं। यह चीजें बहुत जरूरी हैं कि जबतक इन चीजों से लोगों की पहचान नहीं होगी, जबतक ये चीजें लोगों की जिंदगी में तराजू नहीं बनेंगी, तबतक हमारी सोसाइटी बदल नहीं सकती है।

क्योंकि किसी के पास बड़ी कार है तो हम समझते हैं कि सबकुछ है उसके पास। अगर किसी के नाम के आगे यह लगा हुआ है, किसी के नाम के आगे वह लगा हुआ है, तो उसके पास सबकुछ है। ना! जिसके पास शांति है, जिसके पास वह हौसला है अंदर, जिसके पास वह धीरज है अंदर, उसके पास सबकुछ है।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।

माली सींचे सौ घड़ा, जब ॠतु तब फल होय।।

अगर कोई पौधा लगाये, बीज बोये और वह उसके पास जाये — बीज के पास थोड़ा पौधा जब आ जाता है बाहर जमीन से, उसको खींचे कि “बड़ा हो जा, बड़ा हो जा, बड़ा हो जा” तो बड़ा होगा ? वह तो निकल आएगा बाहर और जब बाहर निकल आएगा तो वह मर भी जाएगा। तो इसलिए असली चीज वही है कि जो अपने जीवन के अंदर, अंदर का कनेक्शन बना करके भी रहता है। यही नहीं है कि बाहर का कनेक्शन है सारा, बाहर ही सबकुछ है, बाहर ही सबकुछ है, बाहर — जैसे घर में, अब वह घर किस काम का जिस घर में सारी बत्तियां बाहर हैं, सारे बल्ब बाहर लगे हुए हैं और अंदर बिल्कुल अंधेरा है।

अरे! उजाला तो अंदर होना चाहिए, बाहर हो या ना हो। कम से कम अंदर तो उजाला होना चाहिए। इसी प्रकार मनुष्य के अंदर यही बात होनी चाहिए, क्योंकि अगर वह उजाला उसके हृदय में नहीं है, उसकी जिंदगी के अंदर नहीं है, तो उसकी जिंदगी अँधेरी है। यह एक ऐसा समय है कि मेरे ख्याल से, जनवरी 2019 में किसी ने नहीं सोचा होगा कि ऐसा समय आएगा। फरवरी में नहीं सोचा होगा, मार्च में नहीं सोचा होगा, अप्रैल में नहीं सोचा होगा, मई में नहीं सोचा होगा, जून में नहीं सोचा होगा, जुलाई में नहीं सोचा होगा, अगस्त में नहीं सोचा होगा। धीरे-धीरे-धीरे फिर आखिरी में, 2019 आखिरी में यह खबर आने लगी कि चीन में कुछ हो रहा है। और तब भी लोगों ने नहीं सोचा होगा, उनका यही विचार होगा “वहां हो रहा है वो लोग संभाल लेंगें, फिर हमसब ठीक हैं!”

पर यह एक ऐसी बीमारी निकली कि वहां से चली, तो ऐसी चली, ऐसी चली, ऐसी चली कि सारे संसार में फैल गयी। क्यों ? क्योंकि वही — एक जमाना था, 1918 से लेकर 1920 का समय जब एक ‘स्पेनिश फ्लू’ हुआ था, तो सब जगह नहीं फैला वह, क्योंकि सब जगह लोग जा नहीं रहे थे। कई जगह थे कि लोग जा ही नहीं रहे थे। परन्तु अब तो ऐसा हो गया है कि लोग हवाई जहाज से सफर करते हैं और एक देश से दूसरे देश, दूसरे देश से तीसरे देश, तीसरे देश से चौथे देश, सब जा रहे हैं। एक ऐसा जाल बिछा दिया है कि कहीं से कहीं, कहीं से कहीं, कहीं से कहीं — अब ऑस्ट्रेलिया से फ्लाइटें चलती हैं, लंदन जाती हैं, ऑस्ट्रेलिया से फ्लाइट चलती हैं, दिल्ली रूकती हैं, फिर लंदन जाती हैं, फिर लंदन से चलती हैं, फिर लॉस-एंजेलिस जाती हैं। अब तो ऐसा हो गया है कि लोग सफर करते हैं, करते हैं, करते हैं, ट्रैवल करते हैं, जाते हैं, जगह-जगह जाते हैं।

तो भाई, लोगों ने तो यही समझा है कि वह तो अच्छी बात है और अच्छी बात है भी कि लोग देखते हैं, सारे संसार को देखते हैं कि और जगह क्या-क्या हो रहा है! परन्तु वही कारण है कि सब जगह फैल गया! अब फैल गया तो फैल गया, परन्तु अब क्या करना है ? बात फैलने की नहीं है, अब क्या करना है ? अब किस हौसले से काम लेना है ? किस शक्ति को इस्तेमाल करना है ? ताकि हम इस समय में आनंदपूर्वक रह सकें। इसके लिए यह नहीं, इसके लिए यह इस्तेमाल करने की जरूरत है, यह इस्तेमाल करने की जरूरत है। यह, यह आपको बोर्डम से बचाएगा, बोर नहीं होना पड़ेगा।

अगर इस हृदय के आनंद को आप समझ गए तो आपको बोर्ड (bored) नहीं होना पड़ेगा और बुद्धिमानी से काम लीजिए ताकि आप सुरक्षित रह सकें। हृदय से काम लीजिये, आनंद लीजिये, जीने का आनंद लीजिये; हर स्वांस का आनंद लीजिये। अपने हृदय में उस आभार को प्रकट होने दीजिए कि मेरा जीवन धन्य है क्योंकि मैंने किसी चीज को समझा है अपनी जिंदगी के अंदर। मैंने किसी चीज को जाना है अपनी जिंदगी के अंदर है और जबतक मैं जानूंगा नहीं, जबतक मैं पहचानूंगा नहीं, तबतक मेरे लिए कुछ नहीं है। इसीलिए कहा कि —

ज्ञान बिना नर सोहहिं ऐसे।

लवण बिना भव व्यंजन जैसे।।

खाने में दिखता तो सब ठीक है, क्योंकि नमक दिखाई नहीं देता है खाने में, परन्तु गड़बड़ रहती है।

देखिये अभी एक बात का मेरे को ख्याल आया कि लोग घर में हैं, अब घर में हैं तो बीवी से कभी नहीं बन रही है, कभी बच्चों से नहीं बन रही है, कभी यहां नहीं बन रही है, कभी कोई, किसी से नहीं बन रही है, झगड़ा होता है लोगों का आपस में तो, जब वहां से Persia से लोग आए हिंदुस्तान में पहली बार (तो उधर की तरफ उतरे जो वेस्ट में है) तो जब वह उतरे तो वह राजा के पास गए और राजा से कहा कि “जी हमको जगह दीजिए जहां हम अपना घर बना सकें, मकान बना सकें, अपना बिज़नेस कर सकें!”

तो राजा ने कहा, “देखो मैं तुमको एक उदाहरण देता हूं तो उसने एक दूध का गिलास मंगवाया और एक छोटे-से गिलास में और दूध मंगवाया, तो उसने उस छोटे गिलास का दूध जो था वह बड़े गिलास में डाला और जो बड़ा गिलास तो पहले से ही फुल था, भरा हुआ था तो दूध गिरने लगा। तो राजा ने कहा कि यह हालत है हम पहले से ही फूल हैं, हम पहले से ही फूल हैं और अगर तुम इसमें आओगे, यहां आओगे तो ओवरफ्लो होगा। तो हम नहीं चाहते हैं कि ओवरफ्लो हो, तुम जाओ।”

वहां से जो लोग आए थे, तो वहां एक बुद्धिमान आदमी था, बुजुर्ग आदमी था, तो उसने कहा “अच्छा ठीक है! मैं आपको उत्तर देना चाहता हूं। तो राजा को कहा कि, एक गिलास दूध का लाइए तो दूध का गिलास लाया गया। उसने कहा, चीनी लाइये तो उसने चीनी ली और उस गिलास में, उस दूध के गिलास में डाली और चीनी घोल दी। कहा, हम ऐसे हैं, हम चीनी हैं। हम घुलकर — हम ओवरफ्लो कुछ नहीं करेंगे हम घुलकर मिठास डालेंगे। हम घुलकर इसमें, घुलकर मिठास डालेंगे।” तब राजा को समझ में आया और उसने उनको वहां रहने दिया।

आपके घर में जितने भी लोग हैं, क्या वह चीनी नहीं बन सकते कि वह इस माहौल में सबके लिए मिठास लाएं ? यह नहीं है कि ओवरफ्लो सिचुएशन हो बल्कि सबके लिए मिठास लाएं। कड़वापन करने के लिए तो सारी जिंदगी है, परंतु यह समय है कि यह मिठास से, आनंद से बीते और अंदर की शक्ति से बीते और समझ से बीते, हृदय से बीते, आनंद से बीते।

सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!