लॉकडाउन प्रेम रावत जी के साथ #2 (25 मार्च, 2020)

प्रेम रावत जी:

मेरे श्रोताओं को मेरा नमस्कार!

इस माहौल में किस चीज के बारे में बात की जाए, तो ध्यान आता है — तो एक बात तो स्पष्ट है कि इस कोरोना वायरस से पहले लोगों का मन उनको परेशान करता था। और आज यह कोरोना वायरस है, लॉकडाउन है, ये सारी चीजें हैं और यह मन सबसे ज्यादा लोगों को परेशान करता है। तो एक दोहा है कि —

कुंभ का बाँधा जल रहे, पर जल बिन कुंभ न होय,

ज्ञान का बाँधा मन रहे, पर गुरु बिन ज्ञान न होय।

समझिये कि जो कुंभ है, जो मटका है, उसमें एक क्षमता है और वह क्षमता यह है कि वह बड़ी आसानी से जल को रख सकता है। जल इधर-उधर भागेगा नहीं, जो मटके में रहेगा वह मटके में रहेगा। परंतु बिना उस जल के वह मटका बन नहीं सकता, वह मटका तैयार नहीं हो सकता। उसमें — उससे पहले वह क्या है ? उससे पहले वह मिट्टी है, कुछ नहीं है। अगर उसमें जल डालें आप तो वह जल को रखेगा नहीं बल्कि गाड़ा बन जायेगा, कीचड़ बन जायेगा। और जब कुम्हार उस मिटटी को लेगा, उसमें जल मिलाएगा, पानी मिलाएगा; उसको मटका का आकार देगा, फिर उसको पकायेगा वो, तो अपने आप उसमें एक क्षमता आएगी कि वह उस जल को रख सके। इसी प्रकार यह उदाहरण दिया है कि जो मन है, ज्ञान उस मन को बाँध सकता है — मैं बताऊंगा ज्ञान, जो मन बाँधने की बात है, क्या है। परंतु गुरु के बिना वह ज्ञान नहीं होता है, जो उस मन को बाँध ले।

तो आज हो क्या रहा है ? वही हो रहा है, कोई इधर भाग रहा है; कोई उधर भाग रहा है। कोई किसी चीज के बारे में सोच रहा है; कोई किसी चीज के बारे में सोच रहा है। कोई यह सोच रहा है कि — मेरे साथ क्या होगा, मेरा क्या होगा; ये नहीं है मेरे पास; वो नहीं है मेरे पास। मैं जाऊँगा, क्या होगा — इस देश का क्या होगा; नेताओं का क्या होगा; पुलिस का क्या होगा। सब, सब लोग — मन जो है, कोई रोक नहीं है इसके लिए, यह भाग रहा है, भाग रहा है, भाग रहा है, भाग रहा है। कभी किधर भागता है; कभी किधर भागता है; कभी किधर भागता है।

सबसे बड़ी बात यह है कि इस मन के भागने में कोई समस्या है। तो अगर कोई समस्या है, तो सबसे बड़ी समस्या इस मन के भागने में यह है कि — यह मन लोगों को परेशान करता है, बिना बात के। अब जो होगा सो होगा, उसको तो कोई टाल नहीं सकता। पर लोगों को सब्र नहीं है कि देखें जो कहा जा रहा है, उसका पालन करें, आइसोलेट करें, घर में रहें, बाहर नहीं जाएँ। और कंटैमिनेशन जो होता है — अगर किसी को यह बीमारी है, कोरोना वायरस की या वायरस लगा हुआ है और वो जंप (jump) करे किसी पर तो अच्छी बात नहीं है।

तो साधारण सी बात है कि आप वहां मत जाइये जहां यह हो सकता है। संभव हो रहा है, कुछ समय लगेगा, बैठिये! परंतु यह मन ही है, जो बैठने नहीं देता है, घर में नहीं बैठने देता है, घर से बाहर भागता है कि — “तू भी आ जा, तू भी आ जा मेरे साथ, चलते हैं वहां चलें, वहां बड़ा मज़ा आता है, वहां बड़ा मज़ा आता है; वहां बड़ा मज़ा आता है!”

यह सबको मालूम है कि यह मन लोगों को सब जगह भगाता है और फिर जब भगाता है, भगाता है, भगाता है, जब दूर ले जाता है। तब किस चीज की याद आती है ? घर की याद आती है। और जब घर में बैठ जाते हैं तो किस चीज की याद आती है ? “वहां चलेंगे, वहां चलेंगे, वहां चलेंगे, वहां चलेंगे!”

स्पष्ट बात तो यह है कि यह परेशान करता है। तो “ज्ञान और मन का बाँधना”, इसका मतलब क्या हुआ ?

जब मनुष्य अपने आपको जानता है, अपने आपको पहचानता है। जब वह ये जानता है कि मैं कहाँ हूँ और घर में अगर कोई — अगर आप बैठे हैं अपने घर में; अपने अपार्टमेंट में; अपने घर में, अपने मकान में और कोई दरवाजा खटखटाये, तो आपको अच्छी तरीके से मालूम है कि आपने नहीं खटखटाया है वो, तो कोई और है! कोई और दरवाजा खटखटा रहा है। अगर आपके घर में आपकी मिसेज़ हैं, आपकी घरवाली हैं और आप दोनों के दोनों बैठकर टेलीविज़न देख रहे हैं और दरवाज़ा कोई खटखटाये, तो आपको अच्छी तरीके से मालूम है कि आपने दरवाज़ा नहीं खटखटाया है और आपकी मिसेज़ ने दरवाज़ा नहीं खटखटाया है, तो कोई और है।

अच्छा! अगर आपका कोई बच्चा है, लड़का है और वह भी आपके साथ है और यही आपकी फैमिली है उस जगह — आप हैं; आपकी मिसेज़ हैं और आपका बच्चा है और आप सब बैठे हुए हैं एक ही कमरे में और कोई दरवाजा खटखटा रहा है तो आपको भी मालूम है कि आपने दरवाज़ा नहीं खटखटाया है; आपकी मिसेज़ ने दरवाज़ा नहीं खटखटाया है; आपके बच्चे ने दरवाज़ा नहीं खटखटाया है, तो कोई और होगा!

यह एक सिंपल सी बात है, बड़ी साधारण सी बात है, परंतु जब आप अपने आपको जानते ही नहीं है कि आप कहां हैं, कौन हैं, क्या हैं, तो जब कोई दरवाज़ा खटखटायेगा तो आपको यह भी नहीं मालूम है कि “यह मेरा कमरा है या किसी और का कमरा है।”

कौन खटखटा रहा है ? मैं तो नहीं खटखटा रहा या मैं खटखटा रहा हूँ ? अपने आपको जब मनुष्य जानता ही नहीं है, जब अपने आपको मनुष्य समझता ही नहीं है, तो जो कुछ भी उसके इर्द-गिर्द हो रहा है वह कैसे समझेगा कि क्या ठीक है उसके लिए, क्या गलत है उसके लिए। क्या अच्छा है उसके लिए; क्या बुरा है उसके लिए। समझ नहीं सकता। क्योंकि उसको मालूम ही नहीं है कि वह कौन है, क्या है ?

सबसे बड़ी चीज ज्ञान की यह है, इसे कहते हैं — आत्मज्ञान! और आत्मज्ञान की सबसे बड़ी चीज यह है कि “अपने आपको जानना! अपने आपको पहचानना!” और जबतक हम अपने आपको नहीं पहचानेंगे, अपने आपको नहीं समझ पाएंगे कि हम कौन हैं। तो ये सारी की सारी दुनिया जो हमारे इर्द-गिर्द है, इसका क्या तुक है, इसका क्या मतलब है हम नहीं समझ पाएंगे। और मन — यह भागेगा, यह भागेगा, कभी कहीं जाएगा, कभी कहीं जाएगा, कभी कहीं जाएगा! किसी चीज की और कोशिश करेगा, इच्छा करेगा और इन सारी चीजों में हम पड़े रहेंगे, जो हमारे पास है उसका भी हम आनंद नहीं ले पाएंगे, क्योंकि मन कहेगा — “नहीं और होना था!”

अब जैसे कोई गया, किसी ने सूट खरीदी या साड़ी खरीदी। तो खरीद कर ले तो आये, पर कहीं धक-धक होती है कि — “नहीं, उसके बगल में जो साड़ी थी, वो कहीं अच्छी न हो, इससे ज्यादा अच्छी न हो। तो ये सारी चीजें हमको परेशान कर रही हैं और इस समय जब यह कोविड19 है, जो यह कोरोना वायरस है। इससे जब लोग परेशान हो रहे हैं तो सबसे ज्यादा परेशानी इसकी यह नहीं है कि लोगों को बीमारी भी लग गयी। नहीं, अभी हो सकता है बीमारी लगी नहीं है और हो सकता है कि बीमारी लगे भी ना। परन्तु लोग परेशान हो रहे हैं, क्यों परेशान हो रहे हैं ? क्योंकि यह मन है और यह सब जगह भाग रहा है।

देखिये! आपके अंदर अच्छाई भी है; आपके अंदर बुराई भी है; आपके अंदर अंधेरा भी है; आपके अंदर दिया भी है; आपके अंदर उजाला भी है। और अगर आप चाहें तो उस उजाले को, उस दिये को जलाकर आप अपने हृदय में उजाला उत्पन्न कर सकते हैं। यह क्षमता आप में है। और इस क्षमता को यह समझिये कि यही आपकी असली ताकत है।

अपबल, तपबल और बाहुबल! अपबल — अपबल तो गया! तपबल — जो कुछ भी किया है लोगों ने, उसका बल — हां! मैंने ये किया, मैंने ये किया, मैंने ये किया, मैंने ये किया! मैं फलां-फलां देश का ये हूँ, मैं फलां-फलां देश का ये हूँ।

बात यह है कि कोरोना वायरस यह नहीं समझती हैं कि कितनी डिग्री आपके पीछे लगी हुई हैं। कितनी डिग्री आपकी दीवाल पर टंगी हुई हैं — उसको कोई मतलब नहीं है उनसे। आप जिंदा हैं और अगर उसको मौका मिला और अगर किसी कंटैमिनेशन के रूप से आप तक पहुंच गया वह कोरोना वायरस, तो फिर वह अपना काम कर देगा। उसके लिए यह नहीं है कि यह बहुत पहुंचे हुए संत हैं, यह बहुत पहुंचे हुए महात्मा हैं। यह बहुत पहुंचे हुए ये हैं; यह बहुत पहुंचे हुए वो हैं, उसके लिए कुछ नहीं।

तो अपबल, तपबल और बाहुबल! अब कोई बलि भी हो, वह कोरोना वायरस तो बहुत ही छोटा है, माइक्रोस्कोपिक है। आँख से देखेंगे तो दिखाई नहीं देगा। और वह इतना ताकतवर है कि बड़े-बड़े ताकतवरों को पलंग पर सुला दे, पलंग पर बिठा दे।

तो अपबल, तपबल और बाहुबल! और एक ही बल बचा है और वह बल है, चौथो बल है “राम!” वो अगर हमारे — वो हमारे पास है वह बल। जिस राम की बात हो रही है, वह राम —

एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट-घट में बैठा।

एक राम का जगत पसारा, एक राम जगत से न्यारा।।v

वह राम जो हमारे घट में बैठा है, उसको हम जान सकते हैं, उसको हम पहचान सकते हैं। उसकी मदद से, वही ज्ञान जो उस तक पहुंचा दे तो —

कुंभ का बाँधा जल रहे, पर जल बिन कुंभ न होय,

ज्ञान का बाँधा मन रहे, पर गुरु बिन ज्ञान न होय।

और इसलिए इस ज्ञान की जरूरत है, इसलिए इस ज्ञान की जरूरत है कि यह ज्ञान अगर हमको मिल जाए, तो फिर इस ज्ञान से हम अपने आपको पहचान सकेंगे, अपने आपको जान सकेंगे। और अगर हमने अपने आपको जान लिया तो फिर वाह ही वाह है।

चाहे कोई भी स्थिति आये, कोई भी स्थिति आये — अभी, मैं एक बात कहता हूँ सभी लोगों से — देखिये! अगर आप अपने आपको भाग्यशाली नहीं समझ रहे हैं और इन परिस्थितियों के कारण आप अपने आपको भाग्यशाली नहीं समझ रहे हैं, तो एक बात याद रखना, भगवान राम की बात — उस दिन उनका राज्याभिषेक होना था। दशरथ ने पहले ही अनाउंस (announce) कर दिया कि “अच्छा ठीक है अब समय आ गया है, अब राम का क्राउनिंग (crowning) होगा और राम राजा बनेंगे।” उस दिन सबलोग तैयारी में लगे हुए थे, सभी लोग खुश थे, सारे अयोध्या के वासी चाहते थे कि भगवान राम बनें। सभी चाहते थे। पर उस दिन, उस दिन क्या हुआ ?

एक तरफ तो वो खुशी है। सीता को भी खुशी थी। लक्ष्मण को भी खुशी थी। भगवान राम को भी खुशी थी। सारे अयोध्या वासियों को खुशी थी। दशरथ, जो इतने बलवान थे, ‘दशरथ’ — क्या ताकत थी उनकी, जैसे, नाम ही उनका था ‘दशरथ’ — दस रथों के बराबर उनकी ताकत थी, वह भी खुश थे। सभी लोग खुश थे कि आज भगवान राम का राज्याभिषेक होगा। पर उस दिन हुआ क्या ?

उस दिन उनको कहा गया कि, “तुम चौदह साल के लिए वनवास जाओ और तुम्हारा राज्याभिषेक नहीं होगा, भरत का होगा। भरत राजा बनेंगे और तुम चौदह साल के लिए वनवास जाओ।”

जिस दिन इतना खुशी का दिन हो और ऐसी खबर मिले। और यह हुआ, यह हुआ! और तुरंत छोड़कर भगवान राम ने कहा, “ठीक है! जैसा पिताजी चाहते हैं, मैं वैसा ही करूँगा।

सीता ने कहा – “मेरे से बात मत करो, मैं तो आउंगी तुम्हारे साथ। मैं तुम्हारी अर्धांगिनी हूँ, कैसे छोड़ दूँ।” वो जमाना अलग था, वो जमाना अलग था। और लक्ष्मण ने कहा, “मेरे को तो आना ही है तुम्हारे साथ।”

तो अगर अपने आपको तुम भाग्यशाली नहीं समझ रहे हो, समझ रहे हो कि “तुम्हारा दुर्भाग्य है, ये कैसे फँस गए तुम; ये क्या हो रहा है; ये क्या नहीं हो रहा है।”

तो जरा बैठो और सोचो! भगवान राम के बारे में सोचो कि “उनके साथ कैसा अनर्थ हुआ!” क्योंकि वो तो सबकुछ — मतलब उस दिन कितना हर्ष होगा। सभी लोगों को कितनी खुशी होगी। कितनी एक्साइटमेंट (excitement) जिसे कहते हैं और हुआ क्या — “चौदह साल के लिए वनवास जाओ और तुम्हारा राज्याभिषेक नहीं होगा भरत का होगा!”

तो भाई! विचारो, समझो और इस समय भी तुम्हारे अंदर एक दिया जल रहा है, उसके प्रकाश में; उस दिये के प्रकाश में, अँधेरा मत होने दो; उसको जलने दो और अपने जीवन में प्रकाश ही प्रकाश पाओ।

सभी लोगों को मेरा नमस्कार!