प्रेम रावत जी:
हमारे श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार! आज फिर मौका है और आप लोगों के कुछ प्रश्न आये हैं, तो मैं उनका जवाब देने का प्रयास करूंगा।
कोरोना वायरस से जो माहौल हो रहा है और लोग डरे हुए हैं उनके लिए आपका क्या सन्देश है और कैसे हम अपने आपको बचा सकते हैं ? — यह शीला ने कक्षा 11 से भेजा है।
बड़ा अच्छा सवाल है कि सचमुच में लोग डरे हुए हैं। पर मैं दो-तीन बातें कहना चाहता हूँ डर के मामले में। एक तो, डरने से आप क्या सोचते हैं क्या ठीक हो जायेगा ?
देखिये! अगर कोई आपके परिवार में बीमार हो गया और आप वहां बैठ-बैठे कह रहे हैं “यह बीमार हो गया, यह बीमार हो गया, यह बीमार हो गया, यह बीमार हो गया! बाप रे बाप! यह बीमार हो गया!” तो आपके ये बार-बार उच्चारण करने से — यह बीमार हो गया, यह बीमार हो गया, आप समझते हैं वह ठीक हो जाएगा ? नहीं! उसको वैध के पास ले जाइये, उसको डॉक्टर के पास ले जाइये, तब जाकर वह ठीक होगा। ठीक इसी प्रकार से, डरने से कोई चीज सॉल्व नहीं होती है। डरने से कोई चीज बदलती नहीं है। नुकसान जरूर होगा और जब आप डरेंगे, तो यह एक — यह समझिये कि आपके शरीर के ऊपर यह एक टैक्स है। और इससे आपका शरीर और खराब होगा।
यह समय है इस बीमारी से बचने का। तो मैं तीन-चार चीजें कहना चाहता हूँ। डरने की कोई बात नहीं है, क्योंकि बहुत छोटी-छोटी चीजें अगर आप करें, तो आपको यह बीमारी नहीं लगेगी। क्या करना है ?
एक तो, अपने आपको साफ-सुथरा रखिये, अपने हाथ को धोइये। अब देखिये, यह तो हमेशा ही होना चाहिए कि आदमी अपने आपको साफ-सुथरा रखे। परन्तु हमलोग रखते नहीं हैं। दूसरी चीज, अपने मुँह को, नाक को, आँख को, इनको मत छुओ, इनको मत छुओ। और अगर किसी को यह बीमारी है, और मैं लोगों से यही कहता हूँ, “अगर तुमको यह बीमारी है तो किसी को यह बीमारी दो मत और किसी से यह बीमारी लो मत।”
इतना लिहाज़ रखो, आनंद से रहो, हर एक दूसरे व्यक्ति से, कम से कम 6 फीट, 6 फीट का डिस्टेंस (distance) की दूरी में रहो, ताकि उसको है अगर यह बीमारी, तो यह तुम तक न पहुंचें। कोरोना वायरस — जो जुकाम, सर्दी में जुकाम होते हैं, यह वही वायरस है। परन्तु यह पर्टिक्यूलरली (particularly) जो वायरस है, कोरोना वायरस, ये वाली — यह पहले जानवरों में थी, पर मनुष्य में पहले कभी नहीं आयी। और इस बार यह मनुष्यों में पहली बार आयी है। इसलिए लोग बीमार हो रहे हैं, क्योंकि उनकी जो इम्यून (immune system) सिस्टम है, वह काम नहीं कर रहा है इसके लिए। परन्तु जो लोग बीमार भी हो जाते हैं इससे, अगर और कोई कॉम्प्लीकेशन (complication) न हो, तो यह ज्यादा बीमार — मतलब यह नहीं है कि इससे ज्यादा दुःख होगा या इससे ज्यादा दर्द होगा या नहीं! बड़ा लाइट सिम्प्टंस (symptoms) रहते हैं, हल्के सिम्प्टंस रहते हैं और हफ्ते में, पांच दिन में, हफ्ते में, दो हफ्ते में लोग ठीक हो जाते हैं।
तो डरने की कोई बात नहीं है। अगर आप थोड़ा सा लिहाज़ करें और लिहाज़ यह है कि लोगों से 6 फीट की दूरी बनाये रखें कम से कम और अगर आप आइसोलेशन में हैं, अपने घर में हैं, तो एक-दूसरे से मिल-जुलकर रहिये। एक-दूसरे को रिसपेक्ट (respect) दीजिये। एक-दूसरे को स्पेस (space) दीजिये, थोड़ी दूरी दीजिये ताकि सबकुछ ठीक तरीके से हो सके। और सबसे बड़ी बात अगर किसी को यह बीमारी है तो वह आइसोलेट में रहें, आइसोलेशन में रहें। और जिनको नहीं है, वह अपने हाथ साफ रखें, अपने मुँह को नहीं छुयें, अपने नाक को नहीं छुयें, अपनी आँखों को नहीं छुयें। अगर इतना आप यह लिहाज़ रखेंगे और ऐसी जगह नहीं जायेंगे कि जहां कोई छींक रहा है, कोई खांस रहा है और हवा में वह वायरस है, सस्पेंडेड (suspended) तो आपको चिंता करने की कोई बात नहीं है।
तो इन थोड़ी-सी चीजों का ख्याल रखिये जैसे, आप जब रोड क्रॉस करने के लिए जाते हैं, रोड के एक तरफ से दूसरी तरफ जाते हैं, तो आपको कुछ चीजों का ख्याल रखना पड़ता है कि गाड़ी आ रही है या नहीं आ रही है, देखें, देखकर चलें। और अगर आप देखकर नहीं चलेंगे तो कोई मुसीबत आएगी।
ठीक इसी प्रकार इस वायरस से भी, इस समय में बचने के लिए बहुत ही थोड़ी-सी सावधानी बरतनी है कि हम अपना डिस्टेंस (distance) बनाकर रखें; अपने हाथ साफ करें; नाक, मुँह, आँखों को न छुएं इन हाथों से। और जब हाथ साफ करें तो उसको कम से कम 20 सेकंड के लिए हाथ को धोयें, अच्छी तरीके से, तब जाकर के पानी दें। साबुन जो है, वह एक ऐसी चीज है कि एक तरफ वह फैट को पकड़ता है, जो चर्बी है उसको पकड़ता है, दूसरी तरफ वह पानी को पकड़ता है। तो वह दोनों में एक लिंक बना देता है और यह कोरोना वायरस जो है, यह आर एन ए है, फैट से लिपटा हुआ, चर्बी से लिपटा हुआ, तो जो साबुन है, वह एक तरफ पानी को पकड़ता है और एक तरफ चर्बी को पकड़ता है। जिसमें आर एन ए इसका लिपटा हुआ है और फिर जब आप इसको पानी से धोते हैं, तो वह उस वायरस को धो देता है।
तो वह वायरस आपके हाथ से चली जाती है। बस इतना ही आपको सावधानी बरतनी है। और आनंद लीजिये। इस समय में भी आनंद लीजिये। क्योंकि आनंद आपके अंदर है। यह आपके पास मौका है। चिंता करने का नहीं। कहा है —
चिंता तो सतनाम की, और न चितवे दास
और जो चितवे नाम बिनु, सोई काल की फांस
चिंता करनी है तो, जो स्वांस आपके अंदर आ रहा है, जा रहा है, यह व्यर्थ न जाये इसकी चिंता कीजिये, आनंद लीजिये। तो मेरे को यही आशा है कि आपको इसका जवाब मिल गया।
जब कोई अपना सारा प्रयास करे, तब भी सफलता न मिले तो कैसे अपने आपको दिलासा दें ? — यह लता जी ने पूछा है। यह रेवाड़ी, हरियाणा से हैं।
देखिये, आपने पहले ही एक फोटो बना रखी है अपने दिमाग में। अगर मैं ऐसा, ऐसा, ऐसा करूँ, तो ये, ये, ये मेरे लिए संभव हो जाएगा। इस फोटो को फाड़ दीजिये, इस फोटो को फाड़ दीजिये। देखिये! जब आप किसी को देखें, कोई फुल्का बना रहा है, रोटी बेली, ऐसे किया (हाथ थपथपाते हुए) और तवे के ऊपर रख दिया। तवे के ऊपर रख तो दिया, पर अगर तवे के नीचे आंच नहीं है, तो क्या होगा ? वह फुल्का, वह रोटी पकेगी नहीं। तो उसको देखा जाता है, उसको ऐसे करके देखते हैं नीचे उसके कि यह तैयार हुई या नहीं ? अगर तैयार नहीं हुई तो आग ज्यादा तेज नहीं है इसका मतलब। तो आप एक लकड़ी का टुकड़ा और डालेंगे या उस लकड़ी को इधर-उधर करेंगे ताकि आग और बढ़े ताकि वह रोटी पक पाए।
आप कह रहे हैं कि मैंने आग हिलाई, मैंने लकड़ी को हिलाया, परन्तु फुल्का अभी भी पक नहीं रहा है। अगर नहीं पक रहा है तो क्या करेंगे आप ? और लकड़ी डालेंगे, मतलब तो लकड़ी का नहीं है, मतलब तो है फुल्का पकने का। जब आप कह रहे हैं कि आपने सारा परिश्रम किया और फिर भी आपको सफलता नहीं मिली। और परिश्रम कीजिये! यह तो आप कर सकते हैं। परिश्रम तो आप कर सकते हैं। यह नहीं है कि उसी तरीके का परिश्रम करें, कोई और चीज है उसकी कोशिश करें। नये नज़रिये से देखिये, अपनी समस्या को नये नज़रिये से देखिये।
कई बार मैं लोगों से कहता हूँ। लोग देखते हैं अपनी समस्या को, इतनी बड़ी समस्या मेरे सामने है, पहाड़ है। अरे! पहाड़ के ऊपर जाने की जरूरत नहीं है, पहाड़ के बगल से भी जा सकते हैं। अब लोग हैं, यही समझते हैं कि पहाड़ के ऊपर से ही जाना है। क्यों जाना है ऊपर से, बगल से भी तो जा सकते हैं ? और वह ज्यादा आसान रहेगा। तो जब कभी कोई समस्या आती है, अपने हौसले को न खोयें। हमेशा याद रखें कि अगर आपका हौसला बना हुआ है, तो आप फिर कोशिश कीजिये, फिर कोशिश कीजिये। जबतक यह स्वांस आपके अंदर है, जबतक यह जीवन आपकी दुनिया में है, जबतक आप जीवित है इस दुनिया में आप हौसला न भूलिये, मेहनत कीजिये।
मेरे को आशा है कि आपको अपने प्रश्न का जवाब मिला होगा।
नया सवाल है — मैं पांच साल से बहुत परेशान हूँ। शारीरिक रूप से परेशानी बढ़ रही है, कम नहीं हो रही है। दवाई भी काम नहीं कर रही है। मेरी दो बेटियां हैं और मैं बहुत गरीब हूँ। कोरोना तो अब एक और संकट लेकर आ गया है, बीमारी के कारण सभी मुझसे नफरत करते हैं।
देखिये! यह बहुत ही शर्मिंदा बात है। एक तो यह कि लोग आपसे नफरत कर रहे हैं। आपकी परिस्थितियों को नहीं समझ रहे हैं। खैर! वो समझें न समझें। आप अपने आपसे नफरत मत कीजिये। वो आपसे नफरत कर रहे हैं, वह बात अलग है। आप अपने से नफरत मत कीजिये। कई बार हम समझते हैं और वही बात आती है कि — “लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे ?!”
लोगों के पास टाइम नहीं है हमारे बारे में सोचने का। एक बार मैं साउथ इंडिया में एक जेल में गया, तो वहां लोगों को मैं सम्बोधित कर रहा था। तो वही बात आयी। एक आदमी उठा, उसने हाथ ऊपर किया कि मैं — थोड़े दिन में मैं छूटने वाला हूँ, जेल से और अपने गांव वापिस जाऊंगा। मैं आपसे जानना चाहता हूँ कि लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे ?
मैंने कहा कि मैं सच बात तेरे को बताऊँ, और वह बात यह है कि कोई तेरे बारे में नहीं सोच रहा है, सब अपने बारे में सोच रहे हैं। लोगों के पास वो समय नहीं है। मैं अगर किसी तरीके से मदद कर सकता हूँ, तो मैं मदद करने के लिए तैयार हूँ। कई डॉक्टर हैं उनकी टीम बनी हुई है, जो हो सकता है कि आपकी मदद करें। आप हरदोई से हैं, उत्तरप्रदेश से हैं। अगर आपका पता है हमारे पास तो या फिर हम — आर वी के से कहीं संपर्क आप कर लें, तो जो कुछ भी हम आपकी मदद कर सकते हैं, हम करेंगे। पर अपने आपसे नफरत मत कीजिये।
देखिये! बुरा समय सबका आता है। अगर आपको बुरे समय की कोई चिंता है, तो भगवान राम के बारे में सोचिये। उनके जीवन में क्या-क्या नहीं हुआ। एक तो बहुत ही बाल-अवस्था में उनको ले गये। ताकि वह राक्षसों को मारें। फिर उनकी शादी हुई, फिर उनका राज्याभिषेक होना था। और जिस दिन उनका राज्याभिषेक होना था, उसी दिन उनको क्या दिया गया ? इनका राज्याभिषेक नहीं होगा और इनको चौदह वर्ष का वनवास दे दो। चौदह वर्ष का वनवास! सीता माता के साथ!
सीता माता को भगवान राम ने कहा, “तेरे को आने की जरूरत नहीं है।”
तो उन्होंने कहा, “क्या कह रहे हैं आप? मैं आपकी अर्धांगिनी हूँ, कैसे नहीं आउंगी आपके साथ।”
तो वो भी — और लक्ष्मण, लक्ष्मण ने कहा, “मैं आपके बिना तो रह नहीं सकता, तो मैं भी आपके साथ आ रहा हूँ।” तो इन तीनों ने, ये तीन गए।
और एक बार जब युधिष्ठिर — यह बात है तब की, जब ऋषि मार्कण्डेय के आश्रम में युधिष्ठिर थे, तो युधिष्ठिर एक दिन बहुत ही डिप्रेस्ड (depressed) हो रखे थे। जैसे कि मेरे को लगता है आप डिप्रेस्ड हैं।
डिप्रेशन हो गया, तो मार्कण्डेय ने कहा — “क्या बात है युधिष्ठिर ?”
तो कहा — “जी! मैं तो बहुत अभागा हूँ। मेरे को तो इतने साल का वनवास हो गया, ये हो गया, मैंने ये खो दिया, मैंने वो खो दिया।” मार्कण्डेय ने कहा — “तेरे को भगवान राम की बात याद नहीं है।”
कहा— “नहीं! मेरे को नहीं मालूम कौन थे वो!”
कहा — मैं बताता हूँ, कौन थे वो।
“अरे! ये जो तू अपने राज-पाट को हारा है, वह तो तेरी करनी थी। तैंने हारा। तू जुआ खेलने के लिए गया था। परन्तु भगवान राम ने तो कुछ किया भी नहीं था और उनको चौदह वर्ष का वनवास हो गया। चौदह वर्ष का वनवास, मतलब राजा की तरह रह रहे थे वह ?
नहीं! कुटियों में रह रहे थे। क्या पहन रखा था ?
लकड़ी के छिलके के कपड़े पहने हुए थे। और जैसे जंगल में लोग रहते हैं, वैसे वह रह रहे थे। जो कुछ भी खाने-पीने के लिए था, वह जंगल से ही इकट्ठा करते थे।
तो बुरा समय भी आता है, अच्छा समय भी आता है। अच्छे समय में बुरे समय की तैयारी करो और बुरे समय में अच्छे समय की तैयारी का जो फल है, उसको खाओ और बुरे समय को ऐसे बिता दो अपने जीवन में।
तो कुछ भी हम मदद कर सकते हैं, तो हम मदद करने के लिए तैयार हैं।
यह चौथा प्रश्न है, यह आया है रमन पांडेय जी से, कानपुर, उत्तरप्रदेश से।
आप कहते हैं, “दिल की सुनो, दिमाग की नहीं।” कभी-कभी लगता है कि दिल भी सही बोल रहा है और दिमाग भी सही बोल रहा है। ऐसे में हम क्या करें ?
अब यह तो समस्या सभी के साथ है। हम यह नहीं कहते हैं कि दिमाग की मत सुनो। हम यह नहीं कह रहे हैं। हम यह कहते हैं कि — दिल की भी सुनो — भी,भी — मूल शब्द इसमें है, भी। ‘दिल की भी सुनो, हृदय की भी सुनो।’
क्योंकि लोग हृदय की बात नहीं सुनते हैं। सिर्फ अपने मन की बात सुनते हैं, अपने दिमाग की बात सुनते हैं। दिमाग, इस दुनिया के लिए है। हृदय, यह तुम्हारे लिए है।
तुम्हारा और उस आनंद का संबंध इस हृदय से है। दुनिया और दुनिया के आनंद का संबंध, तुम्हारे दिमाग से है। तो, यह छोटी-सी बात है। इसमें दुविधा की बात नहीं है। दुनिया के बारे में, दिमाग और सच्चिदानंद के बारे में, हृदय। बस! इसमें दोनों एक ही चीज के लिए कम्पीट (compete) नहीं कर रहे हैं। इसमें अलग-अलग है। और जब ऐसा है तो इसका आनंद लेकर अपने जीवन को सफल करें।
तो अभी कुछ और प्रश्न बाकी हैं और मैं उन प्रश्नों का जवाब भी दूंगा। सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!