प्रेम रावत जी:
मेरे श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!
जिस चीज के बारे में मैं चर्चा करने जा रहा हूं वह यह है क्योंकि, मैं जब प्रश्न पढ़ रहा था और मैंने काफी सारे प्रश्न पढ़े तो मुझे एहसास हुआ कि लोगों को अभी भी डर है इस कोरोना वायरस को लेकर के। देखिये! आप डर सकते हैं, अगर आप डरना चाहते हैं तो यह आपके ऊपर निर्भर है। परंतु आपको मैं यह बताना चाहता हूं कि डरने से कुछ हासिल नहीं होगा, कुछ भी नहीं होगा। होगा क्या ? आप परेशान होंगे, जब आप परेशान होंगे तो आपका शरीर और कमजोर होगा आपका शरीर अगर कमजोर होगा तो यह वायरस जिससे आप डर रहे हैं यह और आप पर आक्रमण कर सकती है। सबसे बड़ी बात है कि आप अंदर से खुश रहें और अंदर की खुशी कहां से आएगी, कैसे मनुष्य अंदर से खुश रह सकता है इन परिस्थितियों में ?
तो बात यह है कि यह सारी परिस्थिति जो हैं, जो भी परिस्थिति है इस समय, एक तो यह आपके अंदर नहीं है आपसे बाहर है। और दूसरी चीज इसका प्रभाव सबसे ज्यादा — उससे पहले कि आपको यह बीमारी हो या ना हो वह देखा जाए सबसे ज्यादा प्रभाव इस बीमारी का आपके कानों के बीच में पड़ रहा है। मैंने जो अभी नई किताब लिखी है इसमें मैं चर्चा करता हूं और चर्चा यही है कि जो बाहर की आवाज है उसको तो आप बड़ी आसानी से बंद कर सकते हैं, अपने कानों को बंद कर लीजिए और वह आवाज बंद हो जाएगी। पर, जो आवाज कानों के बीच में है उसको कैसे बंद किया जाए ?
तो यही सबसे बड़ी बात हो जाती है — एक, आपके अंदर क्या-क्या शक्तियां हैं, किन चीजों का आप उपयोग — जिन शक्तियों का आप उपयोग कर सकते हैं, कौन सी शक्तियां हैं आपके पास ? आपके पास सहनशीलता है, आपके पास सब्र है, आपके पास स्पष्टता है, आपके पास जानना है — मानना नहीं जानना, आपके अंदर वह — जो सारे सृष्टि का पालनहारा है वह भी आपके अंदर मौजूद है। तो मतलब, आपके अंदर की जो चीजें हैं उनमें कोई कमी नहीं है और आप किसी, किसी भी परिस्थिति का बुरे से बुरे समय में भी आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।
भगवान कृष्ण क्या कहते हैं अर्जुन को, (मैं आपको बताता हूँ) कहते हैं — “अर्जुन तू युद्ध भी कर और मेरा सुमिरन भी कर! मेरे को अंदर याद रख, मेरा सुमिरन भी कर और युद्ध भी कर!”
तो समझने की बात है कि क्या कहा जा रहा है कि — यह जो सारी चीजें हो रही है बाहर इनके बावजूद भी एक चीज तुम्हारे अंदर हो रही है और उसका सुमिरन करना तुम्हारे लिए बहुत जरूरी है कि मैं सबके हृदय में विराजमान हूं। भगवान कह रहे हैं कि “मैं सबके हृदय में विराजमान हूं और जो मेरा सुमिरन करता है, जो मेरा ध्यान करता है।” तो कैसा ध्यान अब यह भी समझने की बात है, क्योंकि हमलोगों ने भगवान की फोटो देखी हैं। चित्रकारों ने अपने मन से जो उनके मन में था कि — “भगवान ऐसे होंगे, भगवान ऐसे होंगे” जो वर्णन उन्होंने सुना, उसके आधार पर उन्होंने चित्र बनाये। भगवान को आंखें भी दीं, भगवान को नाक भी दिया, भगवान को केश भी दिये, भगवान को ये भी दिया, भगवान को सबकुछ..बिलकुल मनुष्य की तरह भगवान को बनाया।
लोग जब भगवान का सुमिरन करते हैं, वह जब तस्वीरों को देखते हैं, मूर्तियों को देखते हैं, आकार को देखते हैं तो वह समझते हैं कि भगवान का आकार है। परंतु वह, जो समय से पहले था, जो है और हमेशा रहेगा; जब मनुष्य नहीं रहेंगे तब भी वह रहेगा; जब मनुष्य नहीं थे तब भी वह था; आज मनुष्य है तब भी वह है। उसका आकार क्या है, उसको आकार की क्या जरूरत है ? हमको आंखों की जरूरत है, हमको नाक की जरूरत है क्योंकि हम स्वांस लेते हैं नाक से, सूंघते हैं नाक से। मुँह — मुँह से बोलते भी हैं, खाना भी खाते हैं। कान की हमको जरूरत है, कान से हम सुनते हैं। पर, जो सब जगह व्यापक है जो सब जगह है, जिसके लिए सुनना न सुनना इसका कोई महत्व नहीं है यह हमारे लिए तो है। तो क्या हम भगवान को अपने रूप में बना रहे हैं या भगवान का असली रूप स्वीकार कर रहे हैं ?
अगर भगवान का हम असली रूप स्वीकार करना चाहते हैं, तो उसका हमको एहसास करना पड़ेगा हमारे अंदर। वह इस तरीके से नहीं है कि हमारे कोई ख्याल हैं, कोई विचार हैं और उन विचारों में वह सृष्टि का पालनहारा जो है, पालनहार जो है, वह हमारे विचारों में; हमारे दृष्टिकोणों में; हमारे चित्रों में — हम जो अपने मन से चित्र बनाते हैं उसमें वह फंसा हुआ है। नहीं! उसको फंसने की क्या जरूरत है। मैं कई बार कहता हूँ कि भगवान — वह भगवान, जो असली भगवान है वही एक है, जो इधर से उधर नहीं जा सकता। क्योंकि वह इधर भी है और उधर भी है, यहां से जायेगा कहां ? वह यहां भी है, यहां भी है — सबसे बड़ी बात है, सबसे बड़ी बात है।
एक बार अकबर और बीरबल की बात आती है, तो एक बार अकबर के दरबार में एक कवि आया। उसने एक कविता लिखी अकबर के बारे में कि “कितना महान वह राजा है सबकुछ है उसके पास!” तो सब ने वाह-वाह की। सबने कहा , “यह तो बिल्कुल सच बात कही इसने, कितनी सुंदर इसने कविता बनाई है।” तो जब उसको लगा कि सब लोगों को यह पसंद है तो उसने फिर एक और कविता बनायी और उसमें और राजा की बड़ाई की। और जब उसने सुना कि लोग ताली बजा रहे हैं, सब बड़े प्रसन्न हो रहे हैं, राजा भी खुश हो रहा है, तो उसने एक और कविता बनायी। ऐसे वह कविता बनाते गया, बनाते गया, बनाते गया, बनाते गया, बनाते गया। अंत में ऐसी उसने कविता बनाई जिसमें उसने कहा कि “आप तो भगवान से भी बड़े हैं, आप तो भगवान से भी बड़े हैं!”
अब जैसे ही उसने यह कहा तो एकदम सन्नाटा छा गया। अब कोई राजा की तरफ देखे, कोई अकबर की तरफ देखे, कोई कहीं देखे, कोई कहीं देखे अब — क्या हमको ताली बजानी चाहिए या नहीं बजानी चाहिए! ताली बजाते हैं तो इसका मतलब है कि सचमुच में हम इससे सहमत हैं कि “अकबर भगवान से भी बड़ा है” और यह तो हो नहीं सकता। क्योंकि हमको मालूम था कि यह कैसे हो सकता है, यह कैसे संभव है। ताली बजा रहे हैं या नहीं बजाएं क्या करें, क्या नहीं करें! उनको हिचकिचाहट हुई।
राजा ने देखा कि कोई ताली नहीं बजा रहा है इसने इतनी बड़ी बात कह दी कि “यह भगवान से भी बड़े हैं और एकदम से सन्नाटा सा फैल गया सारे दरबार में।” तो यह कैसे हो गया ? तो अकबर को सूझी तो उसने बीरबल की तरह देखा कहा “बीरबल! क्या सचमच में मैं भगवान से बड़ा हूं ?”
तो बीरबल ने कहा “बादशाह! मेरे को एक दिन का टाइम दीजिए, दो दिन का टाइम दीजिए मैं सोचकर आपको बताऊंगा।”
अकबर ने कहा — ठीक है! जाओ।
तो दुविधा में पड़ा बीरबल, क्या कहूं ? अब अगर मैं यह कहता हूँ कि “हां आप भगवान से बड़े हैं!” तो यह तो गलत होगा। और अकबर को अच्छी तरीके से मालूम है कि “वह भगवान से बड़ा नहीं है।” तो वह मेरे को कोड़े — मेरे पर कोड़े बरसायेगा या मेरा सिर अलग कर देगा या मेरे को कोई न कोई पनिशमेंट (punishment) देगा। तो मैं क्या करूं, क्या करूं, क्या करूं! सोचता रहा! सोचता रहा! फिर उसको एक ख्याल आया।
दूसरे दिन गया, बड़ा खुश होकर गया अकबर के दरबार में, उसने कहा कि “मेरे को जवाब मिल गया है आपके प्रश्न का बादशाह।”
तो अकबर ने कहा, क्या ? क्या मैं सचमुच में भगवान से बड़ा हूँ ?
कहा — “बड़े-छोटे की बात नहीं है, पर आप एक चीज कर सकते हैं, जो भगवान नहीं कर सकता।” सारे दरबार में एकदम सन्नाटा फैल गया कि, यह तो कुछ न कुछ ऐसा कहेगा कि गड़बड़ होगी।
तो अकबर को भी लगा कि “मैं कुछ ऐसा कर सकता हूँ, जो भगवान नहीं कर सकता है। यह तो बहुत बड़ी बात हो गयी।”
अकबर ने कहा, “बीरबल बताओ, क्या ऐसी बात है, जो मैं कर सकता हूँ, भगवान नहीं कर सकता।”
तब बीरबल ने कहा, “आप किसी को अपने देश से, जहाँ तक आपका राज्य है, अपने राज्य से बाहर निकाल सकते हैं। परन्तु, वह जो सारे संसार का पालनहारा है, वह किसको अपने राजदरबार से कहां बाहर निकल सकता है! जहां तक उसका राज्य है, जहां तक उसकी सृष्टि है, जहां तक उसकी रचना है वही सबकुछ है और वह किसको बाहर निकालेगा ? कहाँ भेजेगा ? कौन सी ऐसी जगह है जहां वह नहीं है, जहां उसका नहीं है!”
तो जहां तक कहानी की बात है तो अकबर को यह बात बहुत अच्छी लगी।
जब मैं इस कहानी को याद करता हूँ तो मेरे को यही लगता है कि “हां सचमुच में, कौन सी ऐसी जगह है, कौन सी ऐसी चीज है, जहां वह नहीं है! वह जब मेरे अंदर है तो, मुझे डरने की क्या जरूरत है। इस चीज से, जिससे लोग डर रहे हैं और सबका यही है कि “अब क्या होगा ?” “ठीक होगा! तुम चिंता मत करो।” वैज्ञानिक लोग लगे हुए हैं इसका हल देखने के लिए और जैसे ही इसकी वैक्सीन (vaccine) निकलेगी तो फिर लोग बाहर जा सकते हैं और जो कुछ भी है कर सकते हैं। उनको अगर बीमारी लगी भी तो उस पर उनको कोई असर नहीं होगा। लोग कोशिश कर रहे हैं, दवाइयां ढूंढ रहे हैं इसके लिए। तो सबसे बड़ी बात है कि आप सबकी मदद करें और कैसे कर सकते हैं सबकी मदद — आइसोलेट रहें और खुश रहें। असली खुशी तभी होती है जब आदमी जानता है अपने आपको, जानता है कि मेरे अंदर क्या विराजमान है, मेरे अंदर क्या है —
“इस घट अंदर बाग-बगीचे” — कितनी सुंदर बात कही है कि इस घट के अंदर सुंदर-सुंदर बाग हैं, सुंदर सुंदर बगीचे हैं, सबकुछ हैं, फव्वारे हैं, हीरे हैं, मोती हैं, सबकुछ है। परन्तु सिर्फ इतनी कमी है लोगों में कि वह अपने अन्तर्मुख होकर के इस बात को समझें।
एक, किसी ने एक सवाल यह भी पूछा है कि “मेरे जो दोस्त हैं उन सबके पास नए-नए फोन रहते हैं, नए-नए गैजेट्स रहते हैं, लेटेस्ट टेक्नोलॉजी रहती है और जब मैं अपने मां-बाप से पूछता हूं कि मेरे को भी यह चीज चाहिए मेरे दोस्तों के पास हैं मेरे पास क्यों नहीं हैं तो, मेरे मां-बाप कहते हैं कि तुम पढ़ो-लिखो, कमाओ और फिर तुम यह सारी चीजें खरीद सकते हो तो, प्रश्न यही है कि आप क्या सोचते हैं इसके बारे में ?”
मैं कहता हूं कि आपके माँ-बाप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं, आपके माँ-बाप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। आपको ईर्ष्या नहीं होनी चाहिए। उनको यह सारी चीजें बिना मेहनत किये जो मिल रही हैं इसका उनको फल भोगना पड़ेगा और इसका फल अच्छा नहीं है इसका फल बिल्कुल अच्छा नहीं है। क्योंकि जो बिना मेहनत के चीज हाथ में लग जाती है उसकी आदमी कभी कदर नहीं कर सकता है, कभी सोच नहीं सकता है उसके बारे में ढंग से। और ऐसे बच्चे जिनको मां-बाप देते रहते हैं, देते रहते हैं, फिर बड़े होकर गड़बड़ काम करते हैं, गड़बड़ काम करते हैं और फिर उनकी आँखें खुलती हैं कि ऐसा मेरे साथ नहीं होना चाहिए।
हमको मालूम है, हम बहुत जेलों में जाते हैं, लोगों से बात करते हैं और यही सारी चीजें होती रहती हैं — जब उनको मिलता रहता है, मेहनत करनी नहीं पड़ती है, कभी सोचना नहीं पड़ता है, कदर नहीं होती है चीजों की तो फिर आगे जाकर उनके साथ गड़बड़ी होती है। अपने माँ-बाप की बात सुनो, वो ठीक कह रहे हैं। जब तुम मेहनत करोगे — वह यह नहीं कह रहे हैं कि तुम्हारे पास ये चीजें नहीं होनी चाहिए, वो यह कह रहे हैं कि तुमको अगर ये चीजें चाहिए तो मेहनत करो और मेहनत करके खरीदो। अपने पैसों से खरीदो। तुम बढ़िया से बढ़िया चीज खरीदोगे, तुमको पसंद भी आएगी, तुमको अपने पर गर्व भी होगा। तुमको अच्छी भी लगेगी वह चीज और ईर्ष्या की बात नहीं। ईर्ष्या नहीं होनी चाहिए किसी पर भी। किसी के पास तुमसे कोई अच्छी चीज है तो तुमको हमेशा अपने हृदय में यही सोचना चाहिए, अपने अंदर यही सोचना चाहिए — “ठीक है! अच्छा है इसके पास है। क्या मेरे पास भी होना चाहिए ?”
क्यों जी! जब तुम किसी का एक्सीडेंट होते हुए देखते हो, कोई पड़ा हुआ है रोड के साइड में, तो तुम कहते हो यह मेरे साथ भी होना चाहिए। तुम जिस चीज को अच्छा समझते हो उसी चीज के पीछे पड़ते हो। तुम जानो तुम्हारे पास क्या है! अगर तुम, अगर जान गए कि यह जो तुम्हारे अंदर स्वांस आ रहा है, जा रहा है यह कितनी कीमती चीज है और तुम्हारे दोस्तों को नहीं मालूम तो, तुमको कुछ मालूम है जो तुम्हारे दोस्तों को नहीं मालूम तुमको ईर्ष्या करने की जरूरत नहीं रहेगी।
अपना यह जो समय है इसको अच्छी तरीके से बितायें और आनंद लें खुश रहें क्योंकि खुशी तुम्हारे अंदर है और सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!